वैश्विक स्तर पर ई-कचरे का उत्पादन 2018 में 13 करोड़ टन पर पहुंच जाने का अनुमान है। यह 2016 में 9.35 करोड़ टन रहने का अनुमान है। 2016 से 2018 के दौरान इसमें 17.6 प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि होगी। अध्ययन में कहा गया है कि भारतीय अमीर होने के साथ इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों तथा उपकरणों पर अधिक खर्च कर रहे हैं। कुल ई-कचरे में कंप्यूटर उपकरणों का हिस्सा लगभग 70 प्रतिशत बैठता है। दूरसंचार उपकरणों का इसमें हिस्सा 12 प्रतिशत है, जबकि इलेक्ट्रिकल उपकरणों का 8 प्रतिशत तथा चिकित्सा उपकरणों का 7 प्रतिशत है। अन्य में घरों से निकलने वाले कचरे का हिस्सा 4 प्रतिशत है।
इसमें कहा गया है कि देश के कुल ई-कचरे में से मात्र डेढ़ प्रतिशत की ही रिसाइक्लिंग हो पाती है। इसकी वजह खराब ढांचा, कानून व रूपरेखा है। अध्ययन में कहा गया है कि देश में उत्पन्न कुल ई-कचरे के 95 प्रतिशत का प्रबंध संगठित क्षेत्र और स्क्रैप डीलरों द्वारा किया जाता है।
ई-कचरे में मुख्य रूप से कंप्यूटर मॉनिटर, मदरबोर्ड, कैथोड रे ट्यूब्स, प्रिंटिड सर्किट बोर्ड (पीसीबी), मोबाइल फोन और चार्जर, कॉम्पैक्ट डिस्क, हेडफोन, व्हाइट गुड्स मसलन क्रिस्टर डिस्प्ले-प्लाज्मा टीवी, एसी और रेफ्रिजरेटर आदि आते हैं।