द ह्यूमन राइट्स वाच ने स्टिफलिंग डिसेंट- द क्रिमिनलाइजेशन आफ पीसफुल एक्सप्रेशन इन इंडिया शीर्षक वाले 108 पृष्ठों की रिपोर्ट में इस बात पर जोर दिया कि भारतीय अधिकारियों को आलोचकों से अपराधी की तरह व्यवहार करना बंद करना चाहिए। इसमें कहा गया है कि अधिकारियों को अस्पष्ट शब्दों वाले कानूनों, अत्यधिक व्यापक कानूनों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए जिनके दुरूपयोग होने का खतरा है तथा जिनका इस्तेमाल राष्ट्रीय एवं राज्य स्तर पर आलोचकों के खिलाफ राजनीतिक उद्देश्यों के लिए बार-बार किया जाता है। रिपोर्ट में सरकार से ऐसे सभी कानूनों की समीक्षा करने और उन्हें रद्द करने या उनका संशोधन करने को कहा गया है ताकि उन्हें अंतरराष्ट्रीय कानून और भारत की संधि प्रतिबद्धताओं के अनुरूप लाया जा सके।
रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत का संविधान अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा करता है। हाल के और औपनिवेशिक काल के कानून जैसे राजद्रोह और आपराधिक मानहानि का इस्तेमाल बार- बार आलोचकों पर शिकंजा कसने के लिए किया जाता है। एचआरडब्ल्यू ने रिपोर्ट में कहा, भारतीय अधिकारी नियमित तौर पर अस्पष्ट शब्दों वाले कानूनों का इस्तेमाल राजनीतिक हथियार के तौर पर आलोचकों को चुप कराने और उन्हें प्रताड़ित करने के लिए करते हैं। एचआरडब्ल्यू में दक्षिण एशिया निदेशक मीनाक्षी गांगुली ने कहा, भारत के अनुचित कानून जीवंत लोकतंत्र के नहीं बल्कि दमनकारी समाज की पहचान हैं। उन्होंने कहा, आलोचकों को जेल में डालना या उन्हें लंबे और महंगे अदालती कार्यवाही में स्वयं का बचाव करने के लिए बाध्य करना, इंटरनेट युग में एक आधुनिक देश के तौर पर भारत को पेश करने के सरकार के प्रयासों को कमजोर करता है।
रिपोर्ट में इस वर्ष जेएनयू छात्र नेता कन्हैया कुमार की गिरफ्तारी और उसके बाद विश्वविद्यालय में होने वाले आंदोलनों का उल्लेख किया गया है। इसमें कहा गया है कि आपराधिक कानूनों का इस्तेमाल भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को सीमित करने के लिए किया जाता है। रिपोर्ट में कहा गया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जहां अक्सर कहते हैं कि वह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को बरकरार रखने को प्रतिबद्ध हैं, उनकी सरकार न केवल उन कानूनों से निपटने में असफल रही जिनका इस्तेमाल अक्सर इन अधिकारों का दमन करने के लिए किया जाता है बल्कि उसने उनका इस्तेमाल पूर्ववर्ती सरकारों की तरह ही आलोचनाओं से अपराध के तौर पर निपटने के लिए किया।