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पाकिस्तान पर हवाई हमले के बाद भारतीय सेना ने ट्वीट की दिनकर की ये कविता

जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में 14 फरवरी को हुए आतंकी हमले के बदले भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तान को करारा...
पाकिस्तान पर हवाई हमले के बाद भारतीय सेना ने ट्वीट की दिनकर की ये कविता

जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में 14 फरवरी को हुए आतंकी हमले के बदले भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तान को करारा जवाब दिया है। पुलवामा हमले के जवाब में मंगलावार तड़के जब भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तान में घुसकर 21 मिनट का ऑपरेशन चलाया। इस हमले में 12 मिराज विमानों ने जैश ए मोहम्मद के ठिकानों पर लगभग 1000 किलो विस्फोटक गिराए, जिसमें बड़ी संख्या में आतंकवादी मारे गए।

मंगलवार को भारतीय वायुसेना की इस कार्रवाई की गूंज पूरी दुनिया में सुनाई दे रही है और अब भारतीय सेना ने भी इसे लेकर ट्वीट किया है।  भारतीय सेना के ADG PI - INDIAN ARMY@adgpi  ने अपने ट्वीटर हैंडल पर राष्ट्रकवि रामधारी सिंह 'दिनकर' के खंड काव्य रश्मि-रथी की कविता की कुछ लाइनें पोस्ट की हैं। 'क्षमाशील हो रिपु-समक्ष तुम हुए विनीत जितना ही, दुष्ट कौरवों ने तुमको कायर समझा उतना ही....।' भारतीय सेना अपनी सोशल मीडिया साइट्स पर अकसर भारतीय साहित्यकारों की रचनाओं को शेयर करती रहती है।

 

 

यह कविता राष्ट्रीय कवि रामधारी सिंह 'दिनकर' की है। उन्होंने यह कविता 'शक्ति और क्षमा' शीर्षक से लिखी थी। 'दिनकर' अपनी ओजस्वी कविता और रचानाओं के लिए बेहद लोकप्रिय रहे हैं। उनकी 'रश्मिरथी' और 'परशुराम की प्रतीक्षा' बेहद चर्चित कृतियां हैं। 

पुलवामा हमले के बाद भारतीय हमले की जवाबी कार्रवाई

भारतीय लड़ाकू विमानों ने पाकिस्तान के खैबर पख्तनूख्वाह प्रांत के बालाकोट में आतंकी ठिकानों को तबाह किया है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक भारतीय वायुसेना ने आधे घंटे तक पाकिस्तान की सीमा में बम बरसाए हैं। इस एयर स्ट्राइक के बाद सीमा पर एयर डिफेंस सिस्टम हाई अलर्ट पर है। जानकारी के मुताबिक, भारतीय वायुसेना ने तड़के 3.45 बजे बालाकोट में, 3.48 बजे मुजफ्फराबाद में और 3.58 बजे चिकोटी में जैश के ठिकानों को ध्वस्त कर दिया है।

दिनकर की कविता की ये हैं पूरी लाइनें-

क्षमाशील हो रिपु-समक्ष

तुम हुए विनत जितना ही,

दुष्ट कौरवों ने तुमको

कायर समझा उतना ही।

अत्याचार सहन करने का

कुफल यही होता है,

पौरुष का आतक मनुज

कोमल हो कर खोता है।

क्षमा शोभती उस भुजंग को,

जिसके पास गरल हो।

उसको क्या, जो दंतहीन,

विषरहित, विनीत, सरल हो?

तीन दिवस तक पथ माँगते

रघुपति सिन्धु-किनारे,

बैठे पढ़ते रहे छंद

अनुनय के प्यारे-प्यारे।

उत्तर में जब एक नाद भी

उठा नहीं सागर से,

उठी अधीर धधक पौरुष की

आग राम के शर से।

सिन्धु देह धर "त्राहि-त्राहि"

करता आ गिरा शरण में,

चरण पूज, दासता ग्रहण की,

बँधा मूढ़ बंधन में।

सच पूछो तो शर में ही

बसती है दीप्ति विनय की

सन्धि-वचन संपूज्य उसी का

जिसमें शक्ति विजय की।

सहनशील क्षमा, दया को

तभी पूजता जग है,

बल का दर्प चमकता उसके

पीछे जब जगमग है।

जहाँ नहीं सामर्थ्य शोढ की,

क्षमा वहाँ निष्फल है।

गरल-घूँट पी जाने का

मिस है, वाणी का छल है।

फलक क्षमा का ओढ़ छिपाते

जो अपनी कायरता,

वे क्या जानें प्रज्वलित-प्राण

नर की पौरुष-निर्भरता?

वे क्या जाने नर में वह क्या

असहनशील अनल है,

जो लगते ही स्पर्श हृदय से

सिर तक उठता बल है?

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