वर्ष 1930 में महात्मा गांधी द्वारा दांडी यात्रा निकालने और प्रख्यात नमक सत्याग्रह के 85 साल बाद नमक को लेकर लड़ाई कई गुना बढ़ गई है। प्रचार के बिना भारतीय अदालतों में आयोडिन युक्त नमक के बौद्धिक संपदा अधिकार की रक्षा हुई। आखिरकार सेंट्रल साल्ट एंड मरीन केमिकल्स रिसर्च इन्स्टीट्यूट (सीएसएमसीआरआई) ने आयोडिन युक्त नमक के उत्पादन के लिए पेटेंट पर नियंत्रण हासिल में एक दिग्गज बहुराष्ट्रीय कंपनी को नाकाम कर दिया। वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) के महानिदेशक मधुकर गर्ग ने इसे एक बड़ी जीत बताया है।
उन्होंने बताया कि अक्सर बहुराष्ट्रीय कंपनियां भारत के अनुसंधान एवं विकास को बाधित करने के लिए पेटेंट का विरोध करती हैं। कुछ विदेशी कंपनियों के खिलाफ सीएसआईआर पेटेंट के कुछ मामले जीत चुका है। इनमें से ज्यादातर लड़ाइयों का आधार यह था कि विदेशियों ने भारत की परंपरागत ज्ञान प्रणालियों की जानकारी चुरा ली है। बहरहाल, आयोडिन युक्त नमक के पेटेंट की यह लड़ाई अनूठी थी। गर्ग ने कहा यह लड़ाई आधुनिक वैज्ञानिक सिद्धांतों पर लड़ी गई और जीती गई।
स्वास्थ्य के लिए आयोडिन युक्त नमक का भारत में खास महत्व है जहां आयोडिन न्यूनता संबंधी विकृतियोंं के मामले व्यापक हैं। जयपुर में नमक आयुक्त कार्यालय से उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, अनुमान है कि भारत में 20 करोड़ से अधिक लोगों को आयोडिन न्यूनता का खतरा है जबकि घेंघा आयोडिन न्यूनता के कारण होने वाली अन्य विकृतियों से पीडि़त लोगों की संख्या सात करोड़ से अधिक है। आयोडिन की न्यूनता का अगर समय रहते इलाज न किया जाए तो शारीरिक एवं मानसिक कमजोरी की समस्या होती है।
यह पेटेंट की लड़ाई तब शुरू हुई जब भावनगर प्रयोगशाला की मूल इकाई वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) ने 2004 में आयोडिन युक्त नमक के उत्पादन के लिए एक नए एवं उत्कृष्ट तरीके का पेटेंट लेने के लिए आवेदन किया। वर्ष 2006 में तत्कालीन हिंदुस्तान लीवर लिमिटेड (आज की एचयूएल) ने पेटेंट प्रदान किए जाने का विरोध किया। उसने यह कहते हुए चुनौती दी कि सीएसआईआर द्वारा आगे बढ़ाई गई प्रक्रिया नई नहीं है इसलिए पेटेंट रद्द किया जाना चाहिए। उतार-चढ़ाव भरी यह लड़ाई लंबी चली। वर्ष 2013 में भारतीय पेटेंट कार्यालय ने पेटेंट देने से इंकार कर दिया। जाहिर था कि एचयूएल मामला जीत गई।
मेक इन इंडिया की जीत
किन्तु, प्रौद्योगिकी विशेषज्ञ और सीएसएमसीआरआई के प्रतिभावान रसायनविद डाॅ पुष्पितो घोष और सीएसएमसीआरआई के उनके सहयोगियों ने हार नहीं मानी। वे चेन्नई स्थित बौद्धिक संपदा अपीलीय बोर्ड गए। अपीलीय बोर्ड ने माना कि घोष की प्रौद्योगिकी अनूठी, अविष्कारी तथा असाधारण है, इसलिए पेटेंट दिया जा सकता है। करीब एक दशक तक पेटेंट देने की राह बाधित करने के बाद एचयूएल के पेटेंट समूह के प्रमुख एस. वेंकटरमानी ने वर्ष 2015 में आईपीएबी को एक पत्र लिखा। पत्र में कहा गया, हमारी कारोबारी प्राथमिकताओं में बदलाव के कारण अब हमारी दिलचस्पी इसका विरोध करने की नहीं है। घोष ने कहा कि मुकदमा लड़ने और पेटेंट देने में विलंब के चलते एचयूएल ने इसकी वाणिज्यिक संभावनाओं को खत्म कर लिया क्योंकि कोई भी उद्योग अब उस प्रौद्योगिकी को नहीं खरीदेगा जिसे एचयूएल जैसी कारपोरेट दिग्गज द्वारा अदालतों में चुनौती दी जा रही हो।
इस तकनीक पर भी लड़ाई
घोष ने कहा कि एक दशक से जारी बाधा दूर हो गई है और प्रौद्योगिकी लाइसेंस के लिए तैयार है। उन्होंने कहा कि भारत में बेचे जाने वाले आयोडिन युक्त परंपरागत नमक में, उसके रवों पर पोटैशियम आयोडेट का घोल स्प्रे किया जाता है। फिर प्रोसेसिंग और संग्रह के दौरान आयोडिन की बड़ी मात्रा का नुकसान आम तौर पर हो जाता है। संग्रह का कार्य नमक की शुद्धता, नमी का तत्व, पैकेजिंग की प्रकृति आदि पर निर्भर करता है। घोष के अनुसार, नुकसान की भरपाई के लिए नमक उत्पादक आवश्यकता से अधिक आयोडाइजिंग एजेंट का उपयोग करते हैं। भारत में आयोडिन का कोई स्रोत नहीं है और यह महत्वपूर्ण है कि हम आयोडिन के उपयोग को सुरक्षित रखें।
नमक आयुक्त के कार्यालय के अनुसार, चीन और अमेरिका के बाद भारत दुनिया में तीसरा सर्वाधिक नमक उत्पादक देश है। वर्ष 1947 में जब भारत आजाद हुआ था तब घरेलू जरूरत पूरी करने के लिए ब्रिटेन से नमक का आयात किया जाता था। लेकिन आज वह न केवल अपनी घरेलू जरूरत के लिए नमक के उत्पादन में आत्मनिर्भर हो गया है बल्कि दूसरे देशों को नमक निर्यात करने की स्थिति में भी है।
नई तकनीक से आयोडिन की बचत
भारत अपने उपयोग के पूरे आयोडिन का आयात करता है। आयोडिनयुक्त नमक उत्पादकों को सालाना करीब 200 टन आयोडिन की जरूरत होती है और सीएसएमसीआरआई में विकसित की जा रही नई प्रौद्योगिकियों के फलस्वरूप इसकी बड़ी बचत हो सकती है। सीएसआईआर के प्रमुख ने राहत की सांस लेते हुए कहा यह स्पष्ट मामला था जिसमें एक बड़ी कंपनी एक स्वदेशी प्रौद्योगिकी के विकास को बाधित कर रही थी। उन्होंने इसे मेक इन इंडिया के लिए जीत बताया जिसमें आम आदमी को लाभ हुआ। उन्होंने कहा कि पेंटेट की यह लड़ाई वास्तव में भारत को स्वस्थ रखने की लड़ाई थी।
(प्रसिद्ध विज्ञान लेखक पल्लव बाग्ला द्वारा पीटीआई भाषा के लिए लिखा गया साप्ताहिक स्तंभ)