नंदी से यह पूछा गया कि जेएनयू में हुई घटनाओं के बाद राष्ट्रवाद जैसे मुद्दे पर हाल ही के दिनों में क्या जरूरी बहस की शुरुआत हुई है। इस पर उन्होंने कहा कि राष्ट्रवाद किसी बौद्धिक बहस को शुरू कर पाने में सक्षम नहीं है, क्योंकि सभी राष्ट्रवाद एक जैसे ही हैं। मैं समझता हूं कि राष्ट्रवाद पर आखिरी शब्द रवींद्रनाथ टैगोर ने कहे हैं। गुरुवर के राष्ट्रवाद पर विचार सभी को पसंद आएंगे। यह पूछे जाने पर कि आज के भारत में राष्ट्रवाद पर अपने विचार लिखने के बाद टैगोर के साथ क्या होता? नंदी ने कहा कि उन्हें जेल भेज दिया जाता। उन्होंने कहा, "और हां, स्मृति ईरानी की तरफ से यह स्पष्टीकरण जारी किया जाता कि सरकार ने एक विशेषज्ञ समिति का गठन किया था, जिसने टैगोर को राष्ट्रद्रोही पाया है।"
नंदी ने साफ कहा कि भाजपा के खेमे में पर्याप्य बुद्धिजीवियों या सक्षम लोगों की कमी है। फिर भी वे पार्टी से बाहर के व्यक्ति को नियुक्त करने का जोखिम नहीं लेना चाहते। यह उनकी समस्या है। रघुराम राजन इस भरोसे की कमी का ताजा उदाहरण हैं। सुब्रमण्यम स्वामी ने उसे खुले तौर पर अभिव्यक्त कर दिया हैै कि भाजपा फासिस्ट विचारधारा के तहत कार्य कर रही है। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन द्वारा की गई कुछ अन्य नियुक्तियों के संदर्भ में उन्होंने कहा कि भाजपा इन संस्थानों के महत्व को भूल चुकी है।
उन्होंने कहा कि उदाहरण के लिए, पूर्व भाजपा सांसद और क्रिकेटर चेतन चौहान को नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फैशन टेक्नॉलजी (एनआईएफटी) का अध्यक्ष बनाने के ताजा मामले को लीजिए। उन्हें इस विषय की कोई जानकारी नहीं है, जैसे कि देश में अधिकांश लोगों का इस मामले में हाल है। इसलिए सरकार ने सोचा कि इस पद पर चौहान की नियुक्ति सुरक्षित रहेगी।
उन्होंने बताया कि पुणे के फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट (एफटीआईआई) के अध्यक्ष पद पर गजेंद्र चौहान की नियुक्ति को देखें, या फिर सेंसर बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन के प्रमुख के पद पर पहलाज निहलानी की नियुक्ति को। निहलानी किसी भी भाजपा सदस्य से अधिक भाजपाई हैं, जबकि वे पार्टी के सदस्य भी नहीं हैं। भाजपा के कारण इन संस्थानों का महत्व पूरी तरह खत्म हो चुका है। उनके लिए केवल पैसे का महत्व है, केवल पद का महत्व है।