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बीमार बेटे की जान बचाने के लिए हर महीने 400 किमी साइकिल चलाता है दिलीप, इस गंभीर बीमारी से पीड़ित है विवेक

झारखंड के गोड्डा के प्रतापपुर के रहने वाले दिलीप यादव का पांच साल का बेटा विवेक थैलेसीमिया से जंग लड़...
बीमार बेटे की जान बचाने के लिए हर महीने 400 किमी साइकिल चलाता है दिलीप, इस गंभीर बीमारी से पीड़ित है विवेक

झारखंड के गोड्डा के प्रतापपुर के रहने वाले दिलीप यादव का पांच साल का बेटा विवेक थैलेसीमिया से जंग लड़ रहा है। दिलीप को किसी भी सूरत में उसे ठीक रखने के लिए हर माह कोई चार सौ किलोमीटर साइकिल चलाना पड़ता है।

दरअसल गोड्डा के ब्‍लड बैंक में खून नहीं है। साइकिल पर बेटे को बैठाकर कोई चार सौ किलोमीटर का सफर करना पड़ता है तब साइबर फ्रॉडों के शहर में रूप में ख्‍यात जामताड़ा जिला जाकर खून मिलता है। दिलीप के लिए यह मजबूरी है। जिगर के टुकड़े को जिंदा रखने के लिए हर माह एक यूनिट खून की दरकार है। उस गरीब के पास सफर के लिए महज एक साइकिल है। जिला मुख्‍यालय की दूरी भी कोई चालीस किलोमीटर है।

साइकिल पर बेटे को बैठा अपने गांव से गोड्डा, दुमका होते हुए जामताड़ा जाना पड़ता है, फिर लौटना। दो दिन जाने और दो दिन आने में लगता है। पेड़, मंदिर, बस पड़ाव के आसरे में रात गुजारते हैं। लॉकडाउन ने परेशानी ज्‍यादा ही बढ़ा दी। बीते दो माह से यही सिलसिला है।

पत्रकार सोहन सिंह ने जब दिलीप की पीड़ा को लेकर ट्विट किया तो मंगलवार को मुख्‍यमंत्री हेमन्‍त सोरेन ने संज्ञान लिया और डीसी गोड्डा को निर्देश दिया कि मामले का संज्ञान ले '' मुख्‍यमंत्री गंभीर रोग उपचार योजना '' के तहत मदद करते हुए सूचना दें। अब देखना है कि सीएम के हस्‍तक्षेप के बाद दिलीप को कितनी राहत मिल पाती है।

बेटा विवेक जब पांच साल का था तो उसे सर्दी, खांसी और बुखार की शिकायत थी। पीरपैंती के डॉक्‍टर को दिखाया तो डॉक्‍टर ने बताया कि उसे थैलेसीमिया है। ऐसे में शरीर में खून नहीं बनता। हर माह खून चढ़ाना होगा। भागलपुर और पटना जाने का परामर्श मिला। दूसरे डॉक्‍टरों को दिखाया, वहां भी यही राय मिली। तब हार कर दिलीप किसी तरह कर्ज आदि लेकर दिल्‍ली पहुंचे सफ्दरजंग अस्‍पताल में दिखाया। वहां नियमित मुफ्त खून का इंतजाम हो गया।

हालांकि डॉक्‍टरों ने यह भी कहा कि लंबे समय तक मुफ्त खून नहीं मिल सकता। तब दिल्‍ली में ही रहकर वह मजदूरी कर बेटे का इलाज कराते रहे। चिकित्‍सकों द्वारा यह भी बताया गया कि स्‍टेम सेल ट्रांसप्‍लांट से बीमारी ठीक हो सकती है, इस पर करीब दस लाख रुपये का खर्च आयेगा। मगर पिछले साल लॉकडाउन के दौरान दूसरे लोगों की तरह उसे भी घर लौटना पड़ा। उसके बाद से उसे स्‍थानी स्‍तर पर ही खून की व्‍यवस्‍था कर रहा है। सोशल मीडिया में खबर वायरल होने और मुख्‍यमंत्री के हस्‍तक्षेप के बाद जिला प्रशासन भी सक्रिय हो गया है। मदद में और भी हाथ बढ़े हैं। दिलीप को इंतजार है कि दस लाख का इंतजाम हो और बेटे का स्‍थायी इलाज हो सके।

 

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