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जेएनयू में खाना-पीना हुआ दोगुने से ज्यादा महंगा, विद्यार्थियों ने खोला मोर्चा

जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय (जेएनयू) के विद्यार्थियों ने एक बार फिर विश्वविद्यालय प्रशासन के खिलाफ...
जेएनयू में खाना-पीना हुआ दोगुने से ज्यादा महंगा, विद्यार्थियों ने खोला मोर्चा

जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय (जेएनयू) के विद्यार्थियों ने एक बार फिर विश्वविद्यालय प्रशासन के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। दरअसल विश्वविद्यालय प्रशासन ने हॉस्टल मेस सहित कई सुविधाओं की फीस में 100 फीसदी से अधिक वृद्धि कर दी है। इस फैसले के विरोध में छात्र सड़क पर उतर आए हैं।

डीन ऑफिस की ओर से जारी किए गए सर्कुलर में मेस और मेहमान के लिए परोसे जाने वाले खाने की कीमत बढ़ाने का फैसला किया गया है। आदेश के मुताबिक मेस का रेट 2700 रुपए से बढ़ाकर 4500, किचन यूटेंसिल्स चार्ज 50 रुपए से बढ़ाकर 200 और अखबार का रेट 15 रुपए से बढ़ाकर 50 रुपए कर दिए गए हैं। इसके साथ ही मेस की लेट पेमेंट फीस भी 1 रुपए प्रतिदिन से बढ़ाकर 20 रुपए करने का आदेश दिया गया है।

जेएनयू प्रशासन के इस फैसले पर जहां एबीवीपी ने मंगलवार दोपहर को डीन ऑफ स्टूडेंट्स के ऑफिस के बाहर प्रदर्शन किया और आदेश वापस लेने की मांग की। वहीं, अन्य छात्र संगठनों द्वारा बुधवार को जेएनयू बंद का आह्वान किया गया है।

अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के सौरभ शर्मा ने बताया कि प्रशासन का यह निर्णय छात्र हित के खिलाफ है। उनके संगठन ने प्रशासन से इस फैसले को वापस लेने की मांग की है। प्रशासन ने भी इस फैसले की समीक्षा करने का आश्वासन दिया है।

ओबीसी फोरम से जुड़े मुलायम सिंह यादव ने कहा कि प्रशासन का फैसला गरीब छात्रों को शिक्षा से वंचित रखने की साजिश का हिस्सा है। सरकार नहीं चाहती कि ये पढ़ाई-लिखाई करें और रोजगार मांगे। दरअसल सरकार अपनी रोजगार पैदा नहीं कर पाने की नाकामी को छुपाने के लिए ऐसे हथखंडे अपना रही है। मुलायम ने बताया कि बुधवार को जेएनयू के सभी छात्र बुधवार जेएनयू बंद कर अपना विरोध जताएंगे।

सोशल मीडिया पर भी तीखी प्रतिक्रिया

सुयश सुप्रभ लिखते हैं कि जेएनयू के हॉस्टलों में सिक्योरिटी डिपॉजिट लगभग दुगनी कर दी गई है। एक झटके में हज़ारों ग़रीब एससी और एसटी विद्यार्थियों के लिए जेएनयू में पढ़ना लगभग असंभव बना दिया गया। और भी बदमाशियाँ की जा रही हैं। जेएनयू के मेस में एक एक्स्ट्रा अंडा लेने पर अब 20 रुपये लगेंगे। पहले पांच रुपये लगते थे। जिन्हें उच्च शिक्षा में सरकार की नीतिगत हिंसा नहीं दिख रही, वही सरकार की मार खाने के बाद दर्शन बतियाने लगते हैं। सामने जो ठोस जीवन खड़ा है, वह नहीं दिखता।

 

 

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