दहशतगर्दी के झूठे आरोपों में गिरफ्तारी के बाद दस- बीस वर्ष या इससे ज्यादा सजा काटने पर अदालत से बाइज्जत बरी होने वाले मुस्लिम युवकों को न्याय दिलवाने के लिए कानून विशेषज्ञ, वकीलों, दानशोरान कौम व मिल्लत ने संयुक्त आंदोलन चलाने की घोषणा की। इस मौके पर सभी मामलों को सामने रख सुप्रीम कोर्ट में इसके खिलाफ जनहित याचिका दाखिल करने का निर्णय लिया है ताकि रिहा होने वालों को मुआवजा दिलाया जा सके। उनके पुनर्वास को अमलीजामा पहनाया जा सके और दोषी पुलिसकर्मियों एवं जांच एजेंसियों के खिलाफ उनकी संदिग्ध भूमिका के लिए सुबूत जुटाए जा सकें। हालांकि पीआईएल दाखिल करने पर अभी अंतिम फैसला नहीं लिया गया क्योंकि अभी ज्यूरी द्वारा इस पर रिपोर्ट पेश की जानी बाकी है लेकिन सदस्यों ने पीआईएल पर सहमति व्यक्त कर दी है।
पूर्व सांसद मोहम्मद अदीब की सरपरस्ती में आयोजित इस सम्मेलन की अध्यक्षता जस्टिस एपी शाह ने की जबकि नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी के रजिस्ट्रार प्रोफेसर जीएसएम वाजपेयी, वरिष्ठ पत्रकार नीना व्यास, राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष नसीम अहमद, प्रसिद्ध फिल्म निर्माता सईद अख्तर मिर्जा, कलमकार प्रोफेसर नंदिनी सुंदर, टीआईएसएफ के पूर्व उपनिदेशक प्रोफेसर अब्दुल शाहबान, विनोद शर्मा सहित कई प्रमुख हस्तियों ने शिरकत की जबकि बाइज्जत बरी होने वालों में शोएब खिदमतगार, अब्दुल अजीज, डॉ फारूक मखदूमी, मोहम्मद आमिर खान, जहीर अहमद, निसार अहमद, अमानुल्लाह, वासिफ हैदर, अब्दुल वाहिद, इफ़्तिखार गिलानी आदि ने शिरकत करते हुए अपनी कहानी सुनाई।
इस मौके पर प्रोफेसर जीएसएम वाजपेयी ने कहा कि मौजूदा स्थिति देखते हुए ऐसा लगता है जैसे देश का पूरे देश की व्यवस्था असंगठित है। उन्होंने कहा कि अब जो लोग बरी हुए हैं और जो लोग अभी भी जेलों में बंद हैं इन सब मामलों का अध्ययन करना होगा और पूरी तैयारी के साथ पीआईएल करनी होगी। प्रोफेसर वाजपेयी ने कहा कि यह एक दिन का काम नहीं है बल्कि इसे आंदोलन का रूप देना होगा और इसे जनता के बीच ले जाना होगा। मोहम्मद अदीब ने कहा कि पीड़ितों को न्याय दिलवाने के लिए वह वचनबद्ध हैं।
इस मौके पर 23 साल बाद सुप्रीम कोर्ट से बरी होने वाले निसार अहमद ने कहा कि अनुबंध का कानून खत्म किया जाए क्योंकि उसके द्वारा पुलिस किसी भी निर्दोष को फंसा सकती है और फंसाया है क्योंकि मेरा कोई पाप नहीं था कि सिवाय फर्जी इकबालिया बयान के। मोहम्मद आमिर ने बताया कि केवल सम्मेलन न हों बल्कि व्यावहारिक उपाय किए जाएं। पीड़ित ने कहा कि आतंकवाद के नाम पर जो गिरफ्तारियां होती हैं वे गलती से नहीं बल्कि राज्य नीति के तहत होती हैं।