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कमाठीपुरा: 'जब पहली बार मैंने अपने पिता को देखा'

पहली बार जब मैंने अपने पिता को देखा तो वो कमरे में नंगे खड़े थे। मुझे पता है, मुझे पता है, कोई कैसे बात कर...
कमाठीपुरा: 'जब पहली बार मैंने अपने पिता को देखा'

पहली बार जब मैंने अपने पिता को देखा तो वो कमरे में नंगे खड़े थे।

मुझे पता है, मुझे पता है, कोई कैसे बात कर सकता है अपने पिता के बारे में फादर्स डे के दिन। शर्म करो आदि आदि।
लेकिन वो पहली पंक्ति ही उस कहानी का अंत है।
चलिए फिर कहानी की शुरूआत में चलते हैं अगर आपको भी कोई शर्म न हो तो।

एक आदमी बिस्तर से उठता है और मेरे सामने खड़ा होता है। कमरे की छत से लटका एकमात्र पीले बल्ब का स्विच चमत्कारिक रूप से ऑन होता है। इसे ऑन करने वाली मेरे पीछे खड़ी अपना पेटीकोट ठीक कर रही है। मैं बता सकता हूं कि वो एक औरत है उसकी च़ूड़ियों और पाजेब की खनकती आवाज़ से—यह खनकता संगीत ही मेरा घर है।
पीछे मुड़ कर मैं उस औरत को ऐसा करते हुए देख सकता हूं लेकिन मैं इतना उनींदा हूं कि चकित नहीं होना चाहता।
भारत में रहने की जगहें इतनी छोटी हैं कि वहां अक्सर नापसंद मेहमानों को भी बिस्तर देना पड़ता है, तब भी जब घर में अधिक लोगों के लिए जगह न हो।

बीच में हैं मां रेखा गायकवाड़

मेरी सोने की चौकी कहां थी?
मेरा अपनी कोई चौकी नहीं थी, या हम चौकी खरीद ही नहीं सकते थे, लेकिन इसका आसान सा जवाब ये हो सकता है कि मेरी मां जैसी मांएं अपने बच्चों को खुद से दूर सुलाने में यकीन ही नहीं रखती हैं।

लेकिन वो अजनबी कौन था?
लंबा, शरीर पर ढेर सारे बालों वाला, नंगा।
वो मुस्कुराया और बोला, “क्या देख रहा है?”
वो अपनी पैंट उठाने के लिए ज़मीन पर झुका और फिर पीठ झुका कर उसने पैंट पहनी।
उसके गले पर सोने की एक मोटी चेन मद्धिम रोशनी में चमक रही थी। उस कम वोल्टेज की रोशनी में पैंट पहनते हुए उसकी मुस्कुराहट धीरे धीरे एक लिजलिजी हंसी में बदल चुकी थी।

क्या मैं उसके जननांगों को देख रहा था जब उसने मुझसे सवाल पूछा था? मैं क्या देख रहा था?
एक नंगा आदमी जो कुछ देर पहले मेरी मां के साथ सेक्स कर रहा था। मैं उनके पास ही लेटा हुआ था, उस दृश्य से दूर मगर आवाज़ों के पास।

मेरे कान उन क्रूर आवाज़ों में पूरी तरह भीग चुके थे जो आहों और फूलती सांसों की टकराहट के बीच एक लय स्थापित करने की कोशिश कर रहे थे। उन चमकती देहों से निकल रही चिंगारियां मेरी बंद पलकों के आगे चमक रही थीं। दो शरीर एक दूसरे से चिपके, एक दूसरे में समा जाने की कोशिश करते मानो कि जब भी एक दरवाजे को पार करने की कोशिश कर रहे हों, वो दरवाजा उनके मुंह पर आ लगता हो। और वो लगातार कोशिश करते रहे, बिना थके, पसीने में भीगते, शराब की गंध लिए हुए और जास्मीन की खत्म होती सुगंध में।
जो मैंने सुना था वो तस्वीरें पेंट करने जैसा था, देखने का एक ऐसा थ्रिल जो किसी देखे जाने वाली चीज़ से आपकी हर ग्रंथि को जोड़ दे।

अपनी मां के साथ लेखक के बचपन की तस्वीर 

क्या एक्टर ऐसी एक्टिंग के दौरान आनंद के क्षणों में डूबते हुए अपनी आंखें बंद नहीं कर लेते?आंखों की पुतलियां अंधेरे में खुद को तैयार कर लेती हैं, क्योंकि वो महसूस करने लगती हैं उस सनसनाहट को जो आंखों के सफेद हिस्से को बादलों की तरह घेर लेती है।

आवाज़, छुअन, गंध और स्वाद की उदात्त सनसनी ही वो चीज़ है जो हम रात जागने वाले स्तनधारी जानवरों को राज़ी करती है कि वो किसी खास चीज के बदले अपनी नज़र फेर लें।

किसका क्लाईमेक्स पहले आया?
चिपचिपे जननांगों के उस इलाके से एक चुप्पी उठ रही थी। कमरे की गर्मी अब भाप बन कर भाग रही थी। एक बदबू मेरी नाक तक पहुंच रही थी। उसमें एक नमकीन गंध थी जो या तो डरी हुई थी या उसमें पाप-बोध था, मैं अंतर बता नहीं सकता क्योंकि ये बहुत छुपकर हो रही थी।
किसी गुप्त कर्मकांड में जली अगरबत्तियों की महक गाढ़े बादल की तरह कमरे की हवा में लटक रही थी। उनकी भारी सांसें उस बात की गवाही दे रही थीं जो उस कमरे में घटा था।

कंडोम निकाले जाने की कोई चटखती आवाज़ नहीं हुई थी। किसी ने एड्स के बारे में कुछ नहीं सुना था।
वो आदमी दरवाज़े से बाहर चला गया था। बत्ती बंद हो चुकी थी। मैं वापस सोने जा चुका था बिना एक बी शब्द बोले अपनी मां से। कोई जरूरत भी नहीं थी।

मुझे ये घटना वैसे भी सुबह तक याद रहने वाली नहीं थी या फिर ऐसी और घटनाएं जो उस रात के बाद हुई। अगर चीजें लगातार होती रहती हैं तो एक ही याद पर्याप्त होती है उन बाकी सभी को रद्द करने के लिए--सेक्स के बाद की खचर-पचर जो मेरी नींद में कई बार रूकावट डालती थीं।

लेखक के पिता

मैं मानता हूं कि वो पहली बार था जब मैंने एक नंगे अजनबी को अपने बिस्तर पर देखा था।
उसमें एक शराबी की उदात्तता थी जो खुशियों के पलों के बारे में बहुत कम जानने के कारण आती है, लेकिन वो मुझे ऐसा आदमी नहीं लगा जो यह काम पहली बार कर रहा हो। उसमें घर की गंध थी।

मेरी मां उसकी रखैल थी कोठे पर। हम उसका परिवार नहीं थे।

वो सेक्स के लिए आते थे। मेरी मां उन्हें प्यार देती थी।

मैं उनकी पैदाइश था, एक उनींदा बालक, एक ऐसे बाप का, जो कभी कभी उस एकमात्र बिस्तर को साझा करते जो हमारे किराए के एक छोटे से घर में था। वो जिन्होंने कभी हमें गुडनाइट किस नहीं दिया उस दरवाजे से बाहर निकलते हुए।


(लेखक: मनीष गायकवाड़ एक पत्रकार हैं जिन्होंने नेटफ्लिक्स सीरिज शी का सह-लेखन किया है। उनकी दूसरी किताब द लास्ट कोर्टेसान, जो उनकी मां के बारे में लिखा मेमॉयर है, इस साल प्रकाशित होने वाला है।)


(अनुवादक: जे सुशील पत्रकार हैं, 'जेएनयू अनंत, जेएनयू कथा अनंता' किताब के लेखक हैं। वे इस समय अमेरिका में स्वतंत्र रूप से शोध कर रहे हैं।)

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