दिल्ली उच्च न्यायालय ने बुधवार को देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार जेएनयूएसयू अध्यक्ष कन्हैया कुमार को छह महीने के लिए अंतरिम जमानत दे दी। जमानत में कुछ शर्त लगते हुए अदालत ने कहा कि उन्हें जांच में सहयोग करना होगा और जरूरत होने पर जांचकर्ताओं के सामने खुद पेश होना पड़ेगा। न्यायमूर्ति प्रतिभा रानी की पीठ ने फिलहाल तिहाड़ जेल में बंद कन्हैया को राहत देते हुए उन्हें 10,000 रूपये की जमानत राशि और इतनी राशि का ही मुचलका भरने को कहा। उच्च न्यायालय से स्पष्ट किया कि कन्हैया के लिए जेएनयू के एक संकाय सदस्य को जमानतदार बनना होगा। उन्होंने कहा कि आरोपी को एक हलफनामा देना होगा कि वह जमानत आदेश की शर्तों का किसी भी प्रकार से उल्लंघन नहीं करेगा।
गौरतलब है कि 9 फरवरी को जेएनयू में अफजल गुरु को लेकर हुए एक विवादास्पद कार्यक्रम में कथित देशद्रोह के नारे लगाने के आरोप में पुलिस ने कन्हैया कुमार को 13 फरवरी को गिरफ्तार किया था। इससे पहले कल सोमवार को मामले की सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति प्रतिभा रानी ने कन्हैया की जमानत याचिका पर तीन घंटे तक सुनवाई के बाद अपना आदेश बुधवार तक के लिए सुरक्षित रख लिया था। हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान कन्हैया के वकील ने दलील दी कि छात्र नेता ने देश के खिलाफ कभी नारेबाजी नहीं की जबकि दिल्ली पुलिस ने कहा कि सबूत हैं कि उन्होंने और अन्य ने भारत विरोधी नारेबाजी की। पुलिस ने दावा किया था कि कन्हैया जांच में सहयोग नहीं कर रहे और खुफिया विभाग और दिल्ली पुलिस की संयुक्त पूछताछ में कुछ विरोधाभासी बयान आए हैं।
वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल के जरिये कन्हैया ने अदालत को बताया कि परिसर के अंदर नकाबपोश लोगों ने भारत विरोधी नारे लगाए थे। गौरतलब है कि सोमवार की सुनवाई के दौरान न्यायाधीश द्वारा पुलिस से यह पूछे जाने पर कि क्या उनके पास कन्हैया के खिलाफ कोई सीसीटीवी फुटेज या अन्य सबूत है, दिल्ली पुलिस ने कहा था कि वीडियो में कन्हैया नारा लगाते हुए नजर नहीं आ रहा है, लेकिन ऐसे गवाह मौजूद हैं जिन्होंने उन्हें नारे लगाते हुए देखा है।