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हिजाब विवाद पर गांधीवादी संगठनों ने कहा- न बुरका का जवाब भगवा गमछा है, न जयश्री राम का जवाब अल्ला-हू-अकबर

कर्नाटक से शुरू हुए हिजाब विवाद की लपटें पूरे देश में फैलती दिख रही है। इस बीच गांधीवादी संगठनों ने...
हिजाब विवाद पर गांधीवादी संगठनों ने कहा- न बुरका का जवाब भगवा गमछा है, न जयश्री राम का जवाब अल्ला-हू-अकबर

कर्नाटक से शुरू हुए हिजाब विवाद की लपटें पूरे देश में फैलती दिख रही है। इस बीच गांधीवादी संगठनों ने इसके लिए भाजपा और संघ परिवार को जिम्मेदार ठहराया है। वहीं लोगों से समाज में शांति बनाए रखने की अपील की है। गांधी शांति प्रतिष्ठान नई दिल्ली और राष्ट्रीय युवा संगठन वर्धा (महाराष्ट्र) ने बयान जारी कर कहा कि न बुरका का जवाब भगवा गमछा है, न जयश्री राम का जवाब अल्ला-हू-अकबर है।

बयान में कहा गया है, "आग लगाए रखनी हो तो कैसे-कैसे रास्ते निकाले जाते हैं यह देखना हो तो कर्नाटक से उठे बुरका-विवाद को देखा जा सकता है। बात दिल्ली में रास्ते पर नमाज पढ़ने से शुरू हुई थी। अब बुरके तक पहुंची है। इन सबके पीछे नीयत एक ही है: देश में सांप्रदायिकता का बुखार बरकरार रखना ! बीजेपी के इस राजनीतिक-चुनावी खेल को देश अब समझने लगा है और हम देख रहे हैं कि दिन का पांच सौ रुपया लेकर उनका कहा करने वाले नौजवानों के सिवा दूसरे सभी संयम दिखा रहे हैं।

गांधीवादी संगठनों ने कहा, हम याद दिलाना चाहते हैं कि जिस देश में कोस-कोस पर बदले पानी, चार कोस पर वाणी, उस देश में किसी पर, किसी प्रकार की खान-पान-पहनावे-ओढ़ावे की जबरदस्ती उसकी सांस्कृतिक अस्मिता पर आघात है. हम ऐसे किसी भी आघात का विरोध करते हैं, निंदा करते हैं और युवाओं को इससे सावधान करते हैं. हम मानते हैं कि धार्मिक-जातीय-सांप्रदायिक आदि प्रतीकों का सार्वजनिक प्रदर्शन भारत जैसे बहुरंगी समाज के लिए अस्वस्थकारी व अशुभ है।

आस्था को निजी चीजें बताते हुए कहा गया, "हम सबकी सामूहिक कोशिश यह होनी चाहिए कि वाह्य एकरूपता का विकास हो तथा निजी आस्था की चीजें निजी ही रहें। लड़कियों के लिए खास तौर पर यह सावधानी होनी चाहिए कि उन्हें पीछे रखने, दबा- ढका कर रखने की सारी प्रथाएं, फिर वह बुरका हो या धूंघट या ऐसा ही सारा कुछ, वह समाप्त हो. लेकिन हम जानते हैं कि यहां जो हो रहा है उसके पीछे सामाजिकता या समता का कोई नजरिया नहीं है। यह विशुद्ध असामाजिक ताकतों का गठजोड़ है जो चाहता है कि किसी भी कीमत पर, किसी भी तरह ऐसी अशांति फैलाई जाए ताकि चुनाव जीता जा सके। इसका जवाब दृढ़ निश्चय व अटूट शांति बनाए रख कर ही दिया जा सकता है। न बुरका का जवाब भगवा गमछा है, न जयश्री राम का जवाब अल्ला-हू-अकबर है। हम जोर दे कर कहना चाहते हैं कि कानून-व्यवस्था बनाए रखने वाले संस्थान व अदालतें अपनी संवैधानिक जिम्मेवारी का तत्परता से और निष्पक्षता से निर्वाह करें। लेकिन उससे भी जरूरी यह है कि कर्नाटक व देश के युवा भाई-बहन किसी भी गुंडागर्दी का जवाब अपने सच पर अड़े रह कर ही दें। हम जबर्दस्ती करने से न बुरका उतारेंगे, न भगवा गमछा पहनेंगे। ऐसी दृढ़ता का सफल परिणाम हमने नागरिकता आंदोलन में भी और अभी के किसान आंदोलन में भी देखा।"

संघ और भाजपा पर आरोप लगाते हुए बयान में कहा गया, "हम अत्यंत खेद के साथ यह भी कहना चाहते हैं कि बीजेपी और संघ-परिवार की अक्ल पर पर्दा पड़ा है। वे अपने ही घर में आग लगा कर रोटी सेंकने की वैसी ही मूढ़ता भरी कोशिश कर रहे हैं जैसे कोशिश से हमारा देश विभाजित हुआ था। अपना देश तोड़ कर देश बनाने की उस कोशिश का जहर हमें आज तक चैन लेने नहीं दे रहा है। हम इस पाप और पतन से बाज आएं। जो गलत है, उसे हर बार गलत कहने की हिम्मत हम जुटाएं। देश को प्रेम से जोड़े रखने के अपने काम में हम सब तेजी से लगें क्योंकि यह न चुप रहने का समय है, न बैठे रहने का। हम शांति व सद्भाव चाहते हैं तो उसकी कीमत चुकानी ही होगी।"

 

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