18 नवंबर से शुरु हो रहे शीतकालीन सत्र में केंद्र सरकार नागरिकता संशोधन बिल पेश करने की तैयारी में है। नागरिकता संशोधन बिल का पूर्वोत्तर के राज्य विरोध कर रहे हैं। पूर्वोत्तर के लोग इस बिल को राज्यों की सांस्कृतिक, भाषाई और पारंपरिक विरासत से खिलवाड़ के साथ मुस्लिम विरोधी भी बताया जा रहा है।
राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) का फाइनल ड्राफ्ट आने के बाद असम में विरोध-प्रदर्शन भी हुए थे। हालांकि इसमें जिन लोगों के नाम नहीं हैं, उन्हें सरकार ने शिकायत का मौका भी दिया। सुप्रीम कोर्ट ने एनआरसी से बाहर हुए लोगों के साथ सख्ती बरतने पर रोक लगा दी थी। अब, जबकि सरकार नागरिकता संशोधन विधेयक लाने जा रही है, तो इसे लेकर एक फिर विरोध शुरू होने लगा है। आइए जानते हैं नागरिकता संशोधन बिल के बार में-
क्या है नागरिकता संशोधन बिल
नागरिकता संशोधन बिल नागरिकता अधिनियम 1955 के प्रावधानों को बदलने के लिए पेश किया जा रहा है, जिससे नागरिकता प्रदान करने से संबंधित नियमों में बदलाव होगा। नागरिकता बिल में इस संशोधन से बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से आए हिंदुओं के साथ ही सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाइयों के लिए बगैर वैध दस्तावेजों के भी भारतीय नागरिकता हासिल करने का रास्ता साफ हो जाएगा।
बिल का मकसद गैर-मुस्लिमों के लिए भारत की नागरिकता आसान बनाना
इस बिल का मकसद पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आने वाले गैर-मुस्लिमों के लिए भारत की नागरिकता आसान बनाना है। इस बिल को मुस्लिम विरोधी बताया जा रहा है। भाजपा पर आरोप लगाया जा रहा है कि इसमें उन्होंने मुस्लिमों को बाहर रखा है। इस पर भाजपा का तर्क है कि यह बिल इसलिए लाया जा रहा है क्योंकि जो लोग भारत से बाहर विदेश में रहते हैं उनको अपने धर्म का खतरा रहता है जबकि मुस्लिम जो भारत आते हैं वो किसी दूसरे उद्देश्य के साथ आते हैं उन्हें धर्म को लेकर किसी तरह का कोई खतरा नहीं होता। भाजपा का कहना है कि इसलिए इस बिल में मुस्लिमों को नहीं रखा गया है।
कम हो जाएगी निवास अवधि
भारत की नागरिकता हासिल करने के लिए देश में 11 साल निवास करने वाले लोग योग्य होते हैं। नागरिकता संशोधन बिल में बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के शरणार्थियों के लिए निवास अवधि की बाध्यता को 11 साल से घटाकर 6 साल करने का प्रावधान है।
इसे सरकार की ओर से अवैध प्रवासियों की परिभाषा बदलने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है। गैर मुस्लिम 6 धर्म के लोगों को नागरिकता प्रदान करने के प्रावधान को आधार बना कांग्रेस और ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट धार्मिक आधार पर नागरिकता प्रदान किए जाने का विरोध कर रहे हैं। नागरिकता अधिनियम में इस संशोधन को 1985 के असम करार का उल्लंघन भी बताया जा रहा है, जिसमें साल 1971 के बाद बांग्लादेश से आए सभी धर्मों के नागरिकों को निर्वासित करने की बात थी।
नागरिकता बिल का विरोध
संसद के पिछले सत्र में विपक्षी पार्टियों ने एकजुट होकर इस बिल का विरोध किया था। उत्तर-पूर्व के कई राज्य इस विधेयक के विरोध में हैं। इसे देखते हुए सरकार ने इसमें संशोधन का वादा किया है। शीत सत्र में संसद पटल पर इसे रखा जाएगा और सरकार इसे आसानी से पास करा लेने की उम्मीद में है।
राज्यसभा में पास नहीं हो पाया था बिल
नागरिकता (संशोधन) बिल को जनवरी 2019 में लोकसभा में पास कर दिया गया था, लेकिन राज्यसभा में यह पास नहीं हो सका था। इसके बाद लोकसभा भंग होने के साथ ही यह बिल रद्द हो गया। अब एक बार फिर मोदी सरकार इस बिल को ला रही है, लेकिन जिस तरह विपक्षी दल इस बिल पर सवाल उठाते रहे हैं और पूर्वोत्तर के राज्यों में इसका पुरजोर विरोध किया जा रहा है, ऐसे में मोदी सरकार के सामने इस बिल को दोबारा दोनों सदनों से पास कराना चुनौतीपूर्ण होगा।
बीजेपी के गठबंधन सहयोगी भी कर रहे विरोध
असम में बीजेपी के साथ सरकार चला रहा असम गण परिषद (अगप) भी नागरिकता संशोधन बिल को स्थानीय लोगों की सांस्कृतिक और भाषाई पहचान के खिलाफ बताते हुए इसका विरोध कर रहा है। असम में एनआरसी को अपडेट करने की प्रक्रिया भी जारी है। ऐसे में नागरिकता संशोधन बिल लागू होने की स्थिति में एनआरसी के प्रभावहीन हो जाने का हवाला देते हुए लोग विरोध कर रहे हैं।