कोरोना वायरस को लेकर पहले जनता कर्फ्यू, फिर लॉकडाउन और अब कर्फ्यू। कोरोना वायरस के बढ़ते संक्रमण के कारण कोरोना के मामलों में लगातार इजाफा हो रहा है। आईसीएमआर के मुताबिक, देश में संक्रमितों की संख्या 492 पहुंच गई है और नौ लोगों की मौत हो चुकी है। प्रधानमंत्री मोदी की अपील पर पहले देशभर में जनता कर्फ्यू लगाया गया। सभी राज्य सरकारों ने जनता कर्फ्यू का पालन और समर्थन किया। वहीं, रविवार शाम स्थिति बिगड़ती देख 32 राज्यों के 560 जिलों को लॉकडाउन करने के निर्देश दिए गए, जहां कोरोना वायरस के पॉजिटिव केस पाए गए। सीमाएं सील कर दी गई। साथ ही सार्वजनिक परिवहन सेवाओं पर भी बड़े स्तर पर रोक लगा दी गई। सोमवार को पहले पंजाब, फिर महाराष्ट्र और देर शाम चंडीगढ़ में कर्फ्यू लागू कर दिया गया तो कहीं धारा 144 लागू कर दी गई। ऐसे में जनता कर्फ्यू का सामना कर चुके लोगों के लिए लॉकडाउन, कर्फ्यू और धारा-144 में फर्क करना काफी मुश्किल हो गया है। तो आइए जानते हैं कि कर्फ्यू और लॉकडाउन में क्या फर्क होता है और इस दौरान जनता के साथ कैसी सख्ती बरती जारी है और ये जनता कर्फ्यू से कितना अलग है।
क्या आप जानते हैं कि कर्फ्यू क्या होता है, कब लगाया जाता है और क्या ये धारा-144 सीआरपीसी के एक समान होता है। जब धारा-144 लागू होती है तो क्या कर्फ्यू भी लगता है या नहीं। लेकिन इन सबसे पहले हम बात करेंगे जनता कर्फ्यू की तो-
क्या होता है जनता कर्फ्यू
आसान शब्दों में जनता कर्फ्यू से तात्पर्य है 'जनता के लिए, जनता द्वारा लगाया गया कर्फ्यू' अर्थात इस प्रकार के माहौल में जनता स्वयं ही कम मात्रा में एक दूसरे से संपर्क में आएगी। पीएम मोदी ने जनता से अपील की थी कि जनता कर्फ्यू के दिन कोई भी नागरिक सड़क पर न जाए, घर से बाहर न निकले, न मोहल्ले में जाए। यह एक तरह का अनुरोध है। लोगों को खुद को अपने घरों तक सीमित रखना है। वैसे अगर वे घर से बाहर निकलेंगे तो कोई कार्रवाई नहीं होगी।
क्या है लॉकडाउन
लॉकडाउन एक आपातकाल व्यवस्था होती है, जिसमें जरूरी सेवाएं बंद नहीं की जाती। देश के कई राज्यों और शहरों में लॉकडाउन किया जाता है, लेकिन बैंक, डेयरी, जरूरी सामान के लिए दुकानें खुली रहती हैं। लोगों से घरों में रहने की अपील की जाती है। उन्हें केवल आवश्यक चीजों के लिए ही बाहर निकलने की अनुमति होती है। हालांकि इस दौरान आवश्यक सुविधाएं जारी रहती हैं, लेकिन यह भी प्रशासन पर निर्भर करता है कि वह किन सेवाओं को जारी रखना चाहता है। लॉकडाउन में स्थानीय प्रशासन निजी संस्थानों को बंद करवा देता है और जहां तक हो सके वर्क फ्रॉम होम के आदेश देता है। इसका उद्देश्य यह है कि लोग अपने घरों में ही रहें ताकि किसी तरह का संक्रमण नहीं फैले।
क्या होता है कर्फ्यू
लॉकडाउन और कर्फ्यू में काफी फर्क होता है। अकसर आम जिंदगी में कर्फ्यू शब्द सुनने को मिल ही जाता है। कहीं पर कुछ दंगे होने के बाद उस क्षेत्र में कर्फ्यू लगा दिया जाता है। वहीं, कभी ये भी सुनने को आता है कि उस इलाके में आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा-144 लगा दी गई है। आखिर कर्फ्यू और धारा-144 क्या होती है। क्या दोनों एक समान हैं या दोनों में कुछ अंतर भी होता है। आमतौर पर कर्फ्यू बेहद गंभीर स्थिति में लगाया जाता है। कर्फ्यू के दौरान लोगों को अपने घरों से बाहर जाने की इजाजत नहीं होती। चूंकि इसमें छूट बेहद कम होती है, इसलिए कर्फ्यू के दौरान सिर्फ वही सेवाएं चालू रहती हैं, जो बेहद जरूरी हों। केवल आवश्यक सेवाओं की अनुमति होती है, जैसे रोजमर्रा की जरूरतों के लिए कुछ समय तक बाजार का खुलना लेकिन स्कूलों को बंद रहने का आदेश दिया जाता है।
कर्फ्यू लगाने से पहले धारा-144 लगाई जाती है और एक तय समय सीमा में आपको अपने घर पहुंचना होता है। इस समय यातायात पर भी पूर्ण रूप से प्रतिबंध होता है। ऐसा कहना गलत नहीं होगा कि कर्फ्यू धारा-144 का बढ़ा हुआ रुप है। उल्लंघन करने वाले की गिरफ्तारी हो सकती है और जुर्माना भी लगाया जा सकता है। कर्फ्यू के दौरान जरूरी सेवाएं जैसे बाजार और बैंकों पर ताला लटका रहता है।
कर्फ्यू के दौरान क्या होते हैं प्रतिबंध
- किसी सक्षम अधिकारी की अनुमति के बिना कोई भी व्यक्ति अनशन, प्रदर्शन नहीं कर सकता है।
- सिर्फ परीक्षार्थियों, विवाह समारोह, शव यात्रा व धार्मिक उत्सव पर निषेधाज्ञा लागू नहीं की जाती है।
- कोई भी व्यक्ति लाठी, डंडा, स्टिक या किसी भी प्रकार का घातक अस्त्र, आग्नेयास्त्र लेकर नहीं चल सकता है।
- जिन शस्त्रों को लेकर लाइसेंस मिला हो वो भी कार्यालय में लेकर प्रवेश नहीं कर सकते हैं।
- बिना अनुमति जुलूस निकालने या चक्काजाम करने पर भी रोक होती है।
- बिना अनुमति तेज आवाज में पटाखे बजाने या बेचने पर भी रोक होती है।
- यहां तक कि किसी समुदाय-सम्प्रदाय की भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाले उत्तेजनात्मक भाषण या विज्ञापन पर भी रोक होती है।
- बिना अनुमति के लाउडस्पीकर, डीजे इत्यादि का प्रयोग करने पर भी प्रतिबंध होता है।
- परीक्षा केंद्र से दो सौ गज की दूरी पर पांच या उससे ज्यादा लोग इकटृठे नहीं हो सकते हैं।
- शादी-बारातों में शौकिया तौर पर शस्त्रों के प्रदर्शन करने पर भी रोक होती है।
सीआरपीसी की धारा-144
किसी भी क्षेत्र या शहर में दंगा, लूटपाट, आगजनी या शहर के हालात बिगड़ने के कारण आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा-144 लगाई जाती है। यह जिला मजिस्ट्रेट की ओर से जारी किया गया एक नोटिफिकेशन होता है। इसके लागू होने पर किसी स्थान पर पांच से अधिक लोग इकट्ठे नहीं हो सकते हैं। उस स्थान पर हथियारों के लाने और ले जाने पर भी रोक होती है। इसका उल्लंघन करने पर गिरफ्तार भी किया जा सकता है। धारा-144 लागू होने के बाद पुलिस किसी भी प्रकार की गैरकानूनी समूह को रोकती है. क्याेंिक वह भी दंडनीय अपराध माना जाता है। ऐसे लोगों को दंगों को बढ़ावा देने के लिए भी बुक किया जा सकता है। धारा-144 में अधिकारियों को इंटरनेट का उपयोग करने पर रोक लगाने का भी अधिकार देती है।
धारा-144 के साथ ही इस समय धारा-188 को लेकर भी चर्चाएं जोरों पर हैं तो आइए जानते हैं इसके बारे में, और कब इसे लागू किया जाता है। कोरोना वायरस के बढ़ते मामलों के बीच देश भर के कई राज्यों में लॉकडाउन किया गया है। हालांकि कई जगहों से ऐसी तस्वीरें और फोटो सामने आ रहे हैं जहां लॉकडाउन होने के बाद भी लोग सड़कों पर भारी तादात में घूमते नजर आ रहे हैं। ऐसे में उत्तर प्रदेश के जिला गाजियाबाद के एसएसपी का कहना है कि जो लोग लॉकडाउन नहीं मानेंगे, उन पर धारा-188 के तहत कार्रवाई होगी। तो जानिए इस धारा के बारे में, क्यों हैं ये महत्वपूर्ण और क्या हो सकती है सजा।
क्या है धारा-188
भारतीय दंड संहिता की धारा-188 के तहत तब कार्रवाई की जाती है जब प्रशासन कोई जरूरी आदेश जारी करता है और उसका पालन नहीं किया जाता। इंडियन पीनल कोड (भारतीय दंड संहिता) की धारा 188 तब लागू की जाती है जब प्रशासन की ओर से लागू किसी ऐसे नियम जिसमें जनता का हित छुपा होता है, कोई इसकी अवमानना करता है तो प्रशासन उस पर धारा 188 के तहत कार्रवाई कर सकता है।
जानें क्या होती है सजा-
- इस सेक्शन 188 को न मानने वालों पर एक महीने के साधारण कारावास या जुर्माना या जुर्माने के साथ कारावास की सजा दोनों हो सकते हैं। ये जुर्माना 200 रुपये तक हो सकता है।
- यही नहीं, अगर ये अवज्ञा मानव जीवन, स्वास्थ्य या सुरक्षा के लिए खतरे का कारण बनती है, या दंगे का कारण बनती है। तब ये सजा छह महीने के कारावास या 1000 रुपये जुर्माना हो सकती है या दोनों चीजें एक साथ हो सकती हैं। इसमें ये जरूर देखा जाता है कि कहीं आरोपी का नुकसान पहुंचाने का इरादा तो नहीं था या नुकसान की संभावना के रूप में उसकी अवज्ञा पर विचार किया जाता है।