यूरोपीय यूनियन (ईयू) के सांसदों का प्रतिनिधिमंडल मंगलवार को जम्मू-कश्मीर के दौरे पर है। इसे लेकर एक तरफ जहां कांग्रेस समेत विपक्षी दल के नेताओं ने तीखी आलोचना की है। वहीं सोशल मीडिया पर यह भी चर्चा है कि यूरोपीय यूनियन के जिन सांसदों को कश्मीर का दौरा करने की अनुमति दी गई है, उनमे से ज्यादातर दक्षिणपंथी विचारधारा के हैं। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआईएम) के महासचिव सीताराम येचुरी और जम्मू और कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री और पीडीपी की अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती ने भी इस पर सवाल उठाए हैं।
बता दें कि इस प्रतिनिधिमंडल में 27 यूरोपीय सांसद हैं जो कश्मीर में लोगों, प्रशासनिक अधिकारियों से मुलाकात करेंगे। कहा जा रहा है कि 27 सदस्यों में से कम से कम 22 ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, इटली, पोलैंड, चेक गणराज्य और स्लोवाकिया में दक्षिणपंथी या दक्षिणपंथी पार्टियों से संबंधित हैं। वे ब्रिटेन में ब्रेक्सिट के पक्ष में और प्रवासन के खिलाफ भी हैं। ये दल यूरोपीय संघ का आधिकारिक प्रतिनिधिमंडल नहीं है, वे अपनी निजी क्षमता में यात्रा कर रहे हैं।
पांच अगस्त के बाद घाटी में किसी भी अंतरराष्ट्रीय प्रतिनिधिमंडल द्वारा यह पहली यात्रा होगी, जब भारतीय संसद ने जम्मू और कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित कर अनुच्छेद 370 हटा दिया। इसके बाद घाटी में संचार प्रतिबंध और अन्य प्रतिबंध लगाए गए। जिनमें से कुछ को हटा दिया गया है। इस दौरान कई स्थानीय राजनीतिक नेताओं को भी हिरासत में लिया गया।
ये ग्रुप अल्ट्रा राइट-विंग फासीवाद समर्थक पार्टियों से जुड़ा है: येचुरी
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआईएम) के महासचिव सीताराम येचुरी ने ट्वीट कर कहा, “ये अनाधिकारिक समूह अल्ट्रा राइट-विंग फासीवाद समर्थक पार्टियों से जुड़ा है, जिनके सम्बंध भाजपा से रहे हैं। ये बताता है कि क्यों हमारे सांसदों को अनुमति नहीं मिली, लेकिन मोदी इनका स्वागत कर रहे हैं। 3 पूर्व सीएम और हजारों लोग जेल में हैं यूरोपीय संसदों के इन सदस्यों को भारतीय राजनीतिक दलों पर तवज्जो दी जा रही है?”
सरकार फासीवादी यूरोपियन सांसदों से संवाद कर रही है: महबूबा
सरकार के इस फैसले पर जम्मू और कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री और पीडीपी की अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती ने भी हैरानी जताई और सरकार के इरादों पर सवाल खड़े कर दिए। महबूबा ने कहा कि अगर ईयू के प्रतिनिधमंडल को कश्मीर जाने का मौका दिया जा रहा है तो यही मौका अमेरिकी सीनेट के सदस्यों को क्यों नहीं दिया जाता। महबूबा ने सरकार के इस कदम को विदेश नीति में गड़बड़ी बताया और लिखा कि सरकार फासीवादी और प्रवासी विरोधी यूरोपियन सांसदों से संवाद कर रही है।