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कभी नहीं रही प्रधानमंत्री बनने की चाहत: प्रणब मुखर्जी

राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने लंबे समय से चली आ रही इन अटकलों को सिरे से खारिज कर दिया है कि पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद वह अंतरिम प्रधानमंत्री बनना चाहते थे। प्रणब ने इन अटकलों को गलत और द्वेषपूर्ण करार दिया है।
कभी नहीं रही प्रधानमंत्री बनने की चाहत: प्रणब मुखर्जी

उप-राष्ट्रपति हामिद अंसारी की ओर से विमोचित अपनी जीवनी दि टरबुलेंट इयर्स: 1980-96 के दूसरे खंड में प्रणब ने लिखा है, कई कहानियां फैलाई गई हैं कि मैं अंतरिम प्रधानमंत्री बनना चाहता था, मैंने दावेदारी जताई थी और फिर मुझे काफी समझाया-बुझाया गया था।

प्रणब ने लिखा है, और यह कि इन बातों ने राजीव गांधी के दिमाग में शक पैदा कर दिए। ये कहानियां पूरी तरह गलत और द्वेषपूर्ण हैं। रूपा प्रकाशन की ओर से प्रकाशित इस किताब में राष्ट्रपति ने विस्तार से बताया है कि प्रधानमंत्री पद के मुद्दे पर उनकी और राजीव गांधी की बातचीत एक बाथरूम में हुई थी।

प्रणब ने लिखा है, वक्त बीतता जा रहा था। मैं उनसे बात करने को लेकर बहुत उत्सुक था। मैं दंपति (राजीव और सोनिया) के पास गया। राजीव के कंधे के पीछे हल्का सा स्पर्श किया जिससे मैं उन्हें संकेत दे सकूं कि मुझे उनसे कोई जरूरी काम था। उन्होंने खुद को सोनिया से अलग किया और मुझसे बात करने के लिए पीछे मुड़े।

उन्होंने लिखा है, ‘वह जानते थे कि यदि मामला बहुत जरूरी और गोपनीय नहीं होता तो मैं उन्हें परेशान नहीं करता। वह तुरंत मुझे उस कमरे से सटे बाथरूम में ले गए, ताकि कमरे में दाखिल होने वाला कोई और शख्स हमें बात करते नहीं देख सके।’ दोनों नेताओं ने उस वक्त के राजनीतिक हालात और राजीव को प्रधानमंत्राी नियुक्त करने के बारे में कांग्रेसजनों की राय पर चर्चा की थी। राजीव प्रधानमंत्री बनने पर सहमत हो गए थे।

प्रणब आगे लिखते हैं, ‘मैं बाथरूम से बाहर आया और राजीव के फैसले से हर किसी को वाकिफ करा दिया।’ पहले राजीव कैबिनेट और फिर कांग्रेस से रूखसत के लिए जिम्मेदार हालात के बारे में लिखते हुए प्रणब ने स्वीकार किया है कि वह राजीव की बढ़ती नाखुशी और उनके इर्द-गिर्द रहने वालों के बैर-भाव को भांप गए थे और समय रहते कदम उठाया।

राष्ट्रपति ने लिखा है, इस सवाल पर कि उन्होंने मुझे कैबिनेट से क्यों हटाया और पार्टी से क्यों निकाला, मैं सिर्फ इतना ही कह सकता हूं कि उन्होंने गलतियां की और मैंने भी की। वह दूसरों की बातों में आ जाते थे और मेरे खिलाफ उनकी चुगलियां सुनते थे। मैंने अपने मेरे धैर्य पर अपनी हताशा हावी हो जाने दी। गौरतलब है कि प्रणब को अप्रैल 1986 में कांग्रेस छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा था। इसके बाद उन्होंने राष्ट्रीय समाजवादी कांग्रेस आरएससी नाम की पार्टी बनाई थी।

बहरहाल, प्रणब का मानना है कि वह आरएससी बनाने की भूल को वह टाल सकते थे। उन्होंने लिखा है, मुझमें यह समभुादारी होनी चाहिए थी कि मैं जनाधार वाला नेता नहीं था और न हूं। कांग्रेस को छोड़ने वाले शायद ही कामयाब हुए। 1986 और 1987 के निर्णायक सालों के दौरान जब राजीव के लिए सब कुछ गलत होता दिख रहा था, उस वक्त मैं कांग्रेस पार्टी और सरकार को कुछ मदद कर सकता था। प्रणब इसके दो साल बाद कांग्रेस में लौट आए थे। प्रणब ने लिखा है कि राजीव एक अनिच्छुक राजनेता थे जिन्हें हालात ने 40 साल की उम्र में प्रधानमंत्री बनने के लिए मजबूर किया था।

राष्ट्रपति ने लिखा है, वह अपने वक्त से आगे के शख्स थे। उन्होंने तेज बदलाव चाहा और कांग्रेस में पुरानी पीढ़ी के नेताओं को अपनी सोच के रास्ते में बाधा के तौर पर देखा। वह आगे देखने वाले और तकनीक पसंद थे। उन्होंने बाजार अर्थव्यवस्था को बड़ा करने के साथ-साथ भारत में विदेशी निवेश का भी स्वागत किया। प्रणब ने लिखा है, ‘इसके ठीक उलट, मैं पारंपरिक सोच वाला राजनेता था जिसने सार्वजनिक क्षेत्र, विनियमित अर्थव्यवस्था को तवज्जो दी और सिर्फ प्रवासी भारतीयों से ही विदेशी निवेश चाहा।’ उन्होंने लिखा है कि इंदिरा गांधी की हत्या के बदले के नाम पर भड़के अत्यंत अनुचित सिख-विरोधी दंगों के समय राजीव गांधी सरकार तैयार नहीं दिखी थी।

राष्ट्रपति ने लिखा है, सरकार श्रीमती गांधी की हत्या और उसके बाद भड़के दंगों के बाद बिल्कुल तैयार नहीं दिखी थी। हर परिपक्व सरकार के पास ऐसे संकट से निपटने की तैयारी होती है। दुर्भाग्यवश, पूरा राष्ट शोक में डूब गया और उपद्रवियों ने हालात का फायदा उठाया। इससे बड़े पैमाने पर जानमाल की हानि हुई।

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