अयोध्या मामले में पक्षकारों में से एक निर्मोही अखाड़ा ने केंद्र सरकार द्वारा मंदिर के निर्माण के लिए आवश्यक व्यवस्था करने के लिए “ट्रस्ट को पर्याप्त प्रतिनिधित्व” देने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया है।
सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या की विवादित जमीन के मालिकाना हक पर फैसला सुनाते हुए निर्मोही अखाड़ा की याचिका खारिज कर दी। कोर्ट ने कहा कि अखाड़ा भगवान रामलला के “सैबिएट” (भक्त या श्रद्धालु) नहीं हैं। अन्य पक्षकारों के साथ निर्मोही अखाड़े ने भी इस जमीन पर मालिकाना हक जताया था।
जताया था मालिकाना हक
निर्मोही अखाड़े ने जमीन पर अपना मालिकाना हक जताया था और सुप्रीम कोर्ट से जन्मभूमि पर कब्जे और प्रबंधन की मांग की थी। अखाड़े का तर्क था कि हमेशा से अखाड़ा ही यहां होने वाली पूजा और अन्य तरह के प्रबंधन का काम करता रहा है। साथ ही उन्हें चढ़ावा भी मिलता रहा है।
निर्मोही अखाड़ा के प्रवक्ता कार्तिक चोपड़ा का कहना है, “निर्मोही अखाड़ा आभारी है कि सुप्रीम कोर्ट ने पिछले 150 वर्षों की हमारी लड़ाई को मान्यता दी है और श्री राम जन्मस्थान मंदिर के निर्माण और प्रबंधन के लिए केंद्र सरकार द्वारा स्थापित किए जाने वाले ट्रस्ट में निर्मोही अखाड़ा को पर्याप्त प्रतिनिधित्व दिया है।”
मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने फैसला पढ़ते हुए कहा, “न्यास की स्थापना के लिए केंद्र सरकार तीन से चार महीने में योजना बनाएगी। वे ट्रस्ट के प्रबंधन और मंदिर के निर्माण के लिए आवश्यक व्यवस्था करेंगे।”
इकबाल अंसारी ने किया स्वागत
इस बीच एक और पक्षकार इकबाल अंसारी ने विवादित भूमि मामले में आए निर्णय का स्वागत किया है। उनका कहना है कि वे इस फैसले से खुश हैं। अंसारी ने कहा, “मुझे खुशी है कि आखिरकार सुप्रीम कोर्ट का फैसला आ गया। मैं इस फैसले का सम्मान करता हूं।”