प्रसाद ने इन आशंकाओं को केवल दुष्प्रचार बताया कि मोबाइल टॉवरों के विकिरण से कैंसर होता है। उन्होंने कहा कि कैंसर होने संबंधी बातें पूरी तरह बेबुनियाद हैं। मोबाइल टावरों और हैंडसेटों से विकिरण के प्रभाव के संदर्भ में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के तत्वावधान में विभिन्न देशों ने अध्ययन किए हैं। डब्ल्यूएचओ ने पिछले 30 सालों के दौरान प्रकाशित लगभग 25 हजार लेखों का हवाला दिया और वैज्ञानिक साहित्य की गहन समीक्षा के आधार पर यह उल्लेख किया कि कमजोर विद्युत चुंबकीय क्षेत्र एक्सपोजर के कारण स्वास्थ्य पर किसी प्रकार के नकारात्मक प्रभाव पड़ने की पुष्टि नहीं होती है।
रविशंकर प्रसाद ने बताया, डब्ल्यूएचओ ने मई 2006 में यह नतीजा निकाला था कि ऐसा कोई विश्वसनीय साक्ष्य नहीं है कि बेस स्टेशनों और बेतार नेटवर्क से कमजोर रेडियो फ्रीक्वेंसी सिग्नल के कारण स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
प्रसाद ने कहा कि अब तक एकत्र सभी साक्ष्यों से पता चलता है कि मोबाइल फोन टावरों द्वारा उत्सर्जित रेडियो फ्रीक्वेंसी सिगनलों से स्वास्थ्य पर कोई अल्पावधि या दीर्घावधि प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता।
उन्होंने बताया कि डब्ल्यूएचओ ने जून 2011 में भी यही बात दोहराई थी। साथ ही उन्होंने बताया कि स्वास्थ्य मंत्रालय के साथ मिलकर उनका मंत्रालय इस विषय पर एक संयुक्त अध्ययन कर रहा है। उन्होंने यह भी जोड़ा कि लोगों को कॉल ड्रॉप की शिकायत रहती है। मोबाइल टॉवर न होने से यह समस्या होती है।
उन्होंने सदस्यों के प्रश्न के उत्तर में यह भी कहा कि अमेरिका, यूरोप और अन्य किसी देश में इस तरह की बात नहीं हो रही लेकिन भारत में अनावश्यक रूप से मोबाइल रेडियेएशन से खतरे का दुष्प्रचार फैलाया जा रहा है।