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देशव्यापी हड़ताल का असर, आम जनजीवन प्रभावित

केंद्र सरकार द्वारा श्रम कानूनों में बदलाव और सार्वजनिक उपक्रमों के निजीकरण के खिलाफ 10 केन्द्रीय ट्रेड यूनियनों के आज राष्ट्रव्यापी हड़ताल पर जाने से दिल्‍ली सहित देश के विभिन्न हिस्सों में सामान्य जनजीवन प्रभावित हुआ। हालांकि, भाजपा समर्थित बीएमएस और एनएफआईटीयू ने इस हड़ताल से दूरी बना ली है।
देशव्यापी हड़ताल का असर, आम जनजीवन प्रभावित

ट्रेड यूनियन के नेताओं का दावा है कि उनकी 12 सूत्री मांगों के समर्थन में औपचारिक क्षेत्र के करीब 15 करोड़ कामगार हड़ताल पर हैं। दिनभर की हड़ताल का प‍रिवहन और बैंकों के कामकाज समेत अन्य सेवाओं पर असर दिख रहा है। राष्ट्रीय राजधानी में लोगों को आने-जाने में काफी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि बड़ी संख्या में आॅटो और टैक्सी चालक भी हड़ताल पर हैं। सुबह लोगों को ऑफिस पहुंचने में खासी दिक्‍कतों का सामना करना पड़ा। दिल्‍ली-एनसीआर में ऑटो और टैक्सियों की हड़ताल से मेट्रो और डीटीसी बसों पर यात्रियों का बोझ बढ़ गया है। 

कोलकाता में उपनगरीय ट्रेनों पर आंशिक असर देखा गया, जबकि ज्यादातर इलाकों में दुकानें, बाजार और कारोबारी प्रतिष्ठान बंद हैं। राज्य प्रशासन बड़ी संख्या में सार्वजनिक परिवहन की बसें चला रहा है, जबकि निजी बसों व टैक्सियों के परिचालन पर आंशिक असर देखा गया। केरल में सरकारी और निजी बस सेवाएं, ट्रैक्सी व आटोरिक्शा नहीं चल रहे। केवल कुछ निजी कारें व दोपहिया वाहन सड़कों पर दिखाई दे रहे हैं। राज्य में दुकानें, होटल और यहां तक कि चाय की दुकानें तक बंद हैं।

सरकार ने कल ट्रेड यूनियनों से कामगारों व राष्ट्र के हित में अपना आंदोलन वापस लेने की अपील की थी। फिर भी यूनियनों ने हड़ताल पर जाने का निर्णय किया क्योंकि वित्त मंत्री अरुण जेटली की अगुवाई वाले मंत्रिसमूह के साथ उनकी बातचीत नाकाम रही। ट्रेड यूनियनों की मांगों में महंगाई पर काबू पाने के लिए तत्काल उपाय, बेरोजगारी पर अंकुश, प्राथमिक श्रम कानूनों को सख्ती से लागू करना, सभी कामगारों के लिए सार्वभौमिक सामाजिक सुरक्षा कवर और प्रतिमाह 15,000 रुपये का न्यूनतम वेतन जैसी मांगे प्रमुख हैं।

साथ ही वे कामगारों की पेंशन बढ़ाने, सार्वजनिक उपक्रमों में विनिवेश बंद करने, ठेका प्रथा बंद करने, बोनस व भविष्य निधि पर सीमा समाप्त करने, 45 दिनों के भीतर टेड यूनियनों का अनिवार्य पंजीकरण, श्रम कानूनों में मनमाने ढंग से बदलाव नहीं करने और रेलवे, रक्षा आदि क्षेत्र में एफडीआई रोकने की भी मांग कर रहे हैं।

 

 

 

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