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अब टूटा शीशा अशुभ नहीं? स्‍मार्ट फोन ने इस तरह तोड़ा ये मिथक

जब सच की गवाही देनी हो तो लोग आईने का उदाहरण देते हैं .... बात आईने की तरह साफ है। तो कहने वाले यह भी कहते...
अब टूटा शीशा अशुभ नहीं? स्‍मार्ट फोन ने इस तरह तोड़ा ये मिथक

जब सच की गवाही देनी हो तो लोग आईने का उदाहरण देते हैं .... बात आईने की तरह साफ है। तो कहने वाले यह भी कहते हैं कि आईना भी भला कब सच बताया है जब भी देखो दायां, बायां ही नजर आया है। मगर यही आईना जब टूट जाये तो घर में उसे जगह नहीं मिलती। जिसे देखकर रोज संवरते हैं उसे घर के बाहर का रास्‍ता दिखा दिया जाता है। तत्‍काल बदल नहीं सकते तो तत्‍काल उसमें चेहरा देखना लोग बंद कर देते हैं। तेजी से बदलती दुनिया के इस दौर में भी यह टूटे शीशे में चेहरे देखने के अपशकुन और अशुभ होने के मिथक ज्‍यादातर घरों में पसरा हुआ है। मगर स्‍मार्ट फोन टूटे शीशे के इस मिथक को तेजी से बदल रहा है।

स्‍मार्ट फोन की महत्‍ता ने लोगों की दुनिया ही बदल दी है। किसी का पूरा दफ्तर तो किसी का पूरा राज मोबाइल फोन में छुपा है। कोरोना काल में वर्क फ्रॉम होम और ऑनलाइन बच्‍चों के क्‍लास ने इसके महत्‍व को और भी बढ़ा दिया। हर हाथ में एक से एक स्‍मार्ट फोन साये की तरह। साये की तरह रहता है तो गिरता भी है। गिरता है तो उसका स्‍क्रीन टूटता भी है। अफसोस भी होता है। मगर दरके हुए स्‍क्रीन पर भी सुबह होते ही वाट्सएप, एफबी से दिनचर्या शुरू होती है। सेल्‍फी के लिए पोज शुरू हो जाता है। तब टूटा हुआ स्‍क्रीन अशुभ और अपशकुन नहीं रहता।

रानीबगान के राकेश कहते हैं हाल ही सैमसंग गैलेक्‍सी एस 9 प्‍लस 30 हजार रुपये में खरीदा था। हाथ से फिसला और स्‍क्रीन दरक गया। खेल गांव के शिवकुमार के पास भी वन प्‍लस 8 टी मोबाइल थी। उसका भी हस्र कुछ इसी तरह हुआ। बेटे के ऑनलाइन क्‍लास के दौरान हाथ से फिसल कर टूट गया। मगर मोबाइल का टूटा हुआ स्‍क्रीन का शीशा उन्‍हें अपशकुन जैसा नहीं लगता। दोनों का तर्क एक जैसा। काम चल रहा है तो पांच-सात हजार रुपये का खर्च क्‍यों करें। साधारण स्‍क्रीन बदलने पर भी दो हजार रुपये तो लग ही जायेंगे।

बहरहाल यह किस्‍सा सिर्फ राकेश और शिवकुमार का नहीं है। आपके घर में भी दो-चार मोबाइल होगा तो संभव है एकाद का स्‍क्रीन चटखा हुआ हो। हर तीन-चौके व्‍यक्ति के मोबाइल का ऐसा ही हस्र मिलेगा। मगर टूटे हुए शीशे का अपशकुन आपको तब परेशान नहीं करता। करता भी है तो आप उन पुराने खयालों को पीछे छोड़ इस्‍तेमाल जारी रखते हैं।

ज्‍योतिषीय विचार कुछ अलग है। हजारीबाग के सरैया निवासी हस्‍त अन्‍वेषक उपेंद्र कुमार पाठक शास्‍त्री कहते हैं कि हमारे शास्‍त्रों में टूटे हुए दर्पण में चेहरे को देखना तन, मन और धन के लिए नुकसानदेह माना गया है। खंडित दर्पण में चेहरा देखने से मन उद्विघ्‍न रहना, बने काम का बिगड़ना, घरेलू कलह होना संभव है। दर्पण की विशेषता होती है कि यह नकारात्‍मक या सकारात्‍मक ऊर्जा को ज्‍यों का त्‍यों प्रत्‍यावर्तित कर देता है। टूटे दर्पण में चेहरा देखना अपशकुन माना जाता है।

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