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'मास्टर ऑफ रोस्टर' के तौर पर सीजेआई के प्रशासनिक अधिकार के खिलाफ SC में याचिका

वरिष्ठ अधिवक्ता और पूर्व कानून मंत्री शांति भूषण ने रोस्टर के मुखिया  (मास्टर ऑफ रोस्टर) के रूप में...
'मास्टर ऑफ रोस्टर' के तौर पर सीजेआई के प्रशासनिक अधिकार के खिलाफ SC में याचिका

वरिष्ठ अधिवक्ता और पूर्व कानून मंत्री शांति भूषण ने रोस्टर के मुखिया  (मास्टर ऑफ रोस्टर) के रूप में प्रधान न्यायाधीश के प्रशासनिक अधिकार के बारे में स्पष्टीकरण के लिये शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की। याचिका में मुकदमों के आबंटन के लिये रोस्टर तैयार करते समय अपनाई जाने वाली प्रक्रिया निर्धारित करने के बारे में भी स्पष्टीकरण मांगा गया है।

समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, शांति भूषण ने अपने वकील पुत्र प्रशांत भूषण के माध्यम से यह जनहित याचिका दायर की है जिन्होंने शीर्ष अदालत के सेक्रटरी जनरल को एक पत्र भी लिखकर कहा है कि यह याचिका प्रधान न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष सूचीबद्ध नहीं की जानी चाहिए।

प्रशांत भूषण ने पत्र में यह भी लिखा है कि उचित होगा कि इस याचिका को उचित बेंच को सौंपने के लिये तीन वरिष्ठतम न्यायाधीशों के समक्ष पेश किया जाये। याचिका में प्रधान न्यायाधीश् दीपक मिश्रा को उच्चतम न्यायालय के रजिस्ट्रार के साथ ही एक प्रतिवादी बनाया गया है।

शांति भूषण ने याचिका में कहा है कि ‘रोस्टर का मुखिया’ अनियंत्रित नहीं हो सकता और प्रधान न्यायाधीश द्वारा मनमाने तरीके से अपनी पसंद के चुनिन्दा न्यायाधीशों का चयन या खास न्यायाधीशों को मुकदमों के आबंटन के लिये अपने अधिकार का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता।

याचिका में कहा गया है कि रोस्टर के मुखिया के रूप में प्रधान न्यायाधीश का अधिकार मुकम्मल और स्वेच्छाचारी नहीं है जो सिर्फ प्रधान न्यायाधीश में निहित है। याचिका में कहा गया है कि प्रधान न्यायाधीश को इस तरह के अधिकार का इस्तेमाल शीर्ष अदालत के तमाम फैसलों में दी गयी व्यवस्था को ध्यान में रखते हुये वरिष्ठ न्यायाधीशों से परामर्श करके करना चाहिए।

यह याचिका महत्वपूर्ण है क्योंकि शीर्ष अदालत के चार वरिष्ठतम न्यायाधीशों न्यायमूर्ति जे चेलामेश्वर, न्यायमूर्ति रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति मदन बी लोकूर और न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ ने 12 जनवरी को प्रेस कांफ्रेस की थी और इसमें कहा था कि शीर्ष अदालत में सब कुछ ठीक नहीं है और अनेक कम अपेक्षित घटनायें हो रही हैं।

इन न्यायाधीशों ने महत्वपूर्ण मुकदमों और संवेदनशील जनहित याचिकाओं को कनिष्ठ न्यायाधीशों को आबंटित करने का मुद्दा भी उठाया था।

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