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अगली 'मन की बात' लोकसभा चुनाव के बाद होगी: प्रधानमंत्री मोदी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज 'मन की बात' कार्यक्रम के 53वें एपिसोड में देशवासियों को संबोधित किया।...
अगली 'मन की बात' लोकसभा चुनाव के बाद होगी: प्रधानमंत्री मोदी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज 'मन की बात' कार्यक्रम के 53वें एपिसोड में देशवासियों को संबोधित किया। इस दौरान मोदी ने पुलवामा हमले से लेकर कई मुद्दों पर अपनी बात रखी। उन्होंने कहा कि अब वे लोकसभा चुनाव के बाद ‘मन की बात’ के माध्यम से अपनी बातचीत के सिलसिले को आरम्भ करेंगे।

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि चुनाव के बाद एक नए विश्वास के साथ आपके आशीर्वाद की ताकत के साथ फिर एक बार ‘मन की बात’ के माध्यम से हमारी बातचीत के  सिलसिले का आरम्भ करूंगा और सालों तक आपसे ‘मन की बात’ करता रहूंगा। मोदी ने कहा, “चुनाव लोकतंत्र का सबसे बड़ा उत्सव होता है। अगले दो महीने, हम सभी चुनाव की गहमा-गहमी में व्यस्त होगें। मैं स्वयं भी इस चुनाव में एक प्रत्याशी रहूंगा। स्वस्थ लोकतांत्रिक परंपरा का सम्मान करते हुएअगली ‘मन की बात’ मई महीने के आखरी रविवार को होगी। यानि कि मार्च महीना, अप्रैल महीना और पूरा मई महीना ये तीन महीने की सारी हमारी जो भावनाएं हैं उन सबको मैं चुनाव के बाद एक नए विश्वास के साथ आपके आशीर्वाद की ताकत के साथ फिर एक बार ‘मन की बात’ के माध्यम से हमारी बातचीत के  सिलसिले का आरम्भ करूंगा और सालों तक आपसे ‘मन की बात’ करता रहूंगा।”

पुलवामा हमले के बाद भारत को मिली बड़ी कूटनीतिक सफलता

पीएम ने कहा कि पुलवामा हमले के बाद भारत को कूटनीतिक स्तर पर बड़ी सफलता मिली है। मुस्लिम देशों के शक्तिशाली संगठन (OIC) ने अपने 46वां सत्र में शामिल होने के लिए भारत को न्योता भेजा है। उन्होंने कहा, 'भारत-माता की रक्षा में, अपने प्राण न्योछावर करने वाले, देश के सभी वीर सपूतों को, मैं नमन करता हूं। यह शहादत, आतंक को समूल नष्ट करने के लिए हमें निरन्तर प्रेरित करेगी, हमारे संकल्प को और मजबूत करेगी' पीएम मोदी ने कहा, 'पुलवामा के आतंकी हमले में, वीर जवानों की शहादत के बाद देश-भर में लोगों को, और लोगों के मन में, आघात और आक्रोश है। हमारे सशस्त्र बल हमेशा ही अद्वितीय साहस और पराक्रम का परिचय देते आये हैं। शांति की स्थापना के लिए जहां उन्होंने अद्भुत क्षमता दिखायी है वहीं हमलावरों को भी उन्हीं की भाषा में जबाव देने का काम किया है।'

शहीदों के परिवारों का किया जिक्र  

प्रधानमंत्री ने कहा कि बिहार के भागलपुर के शहीद रतन ठाकुर के पिता रामनिरंजन जी ने,दुःख की इस घड़ी में भी जिस ज़ज्बे का परिचय दिया है, वह हम सबको प्रेरित करता है। उन्होंने कहा कि वे अपने दूसरे बेटे को भी दुश्मनों से लड़ने के लिए भेजेंगे और जरुरत पड़ी तो ख़ुद भी लड़ने जाएंगे। ओड़िशा के जगतसिंह पुर के शहीद प्रसन्ना साहू की पत्नी मीना जी के अदम्य साहस को पूरा देश सलाम कर रहा है। उन्होंने अपने इकलौते बेटे को भी सीआरपीएफ ज्वाइन  कराने का प्रण लिया है। जब तिरंगे में लिपटे शहीद विजय शोरेन का शव झारखण्ड के गुमला पहुंचा तो मासूम बेटे ने यही कहा कि मैं भी फौज़ में जाऊंगा। इस मासूम का जज़्बा आज भारतवर्ष के बच्चे-बच्चे की भावना को व्यक्त करता है। ऐसी ही भावनाएँ, हमारे वीर, पराक्रमी शहीदों के घर-घर में देखने को मिल रही हैं। हमारा एक भी वीर शहीद इसमें अपवाद नहीं है, उनका परिवार अपवाद नहीं है। चाहे वो देवरिया के शहीद विजय मौर्य का परिवार हो, कांगड़ा के शहीद तिलकराज के माता-पिता हों या फिर कोटा के शहीद हेमराज का छः साल का बेटा हो – शहीदों के हर परिवार की कहानी,प्रेरणा से भरी हुई हैं।

मोरार जी देसाई को किया याद

मोदी ने कहा, “मेरे प्यारे देशवासियो, हमारे देश के पूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी भाई देसाई का जन्म 29 फरवरी को हुआ था। जैसा कि आप सभी जानते हैं कि यह दिन 4 वर्ष में एक बार ही आता है। सहज, शांतिपूर्ण व्यक्तित्व के धनी, मोरारजी भाई देश के सबसे अनुशासित नेताओं में से थे। स्वतंत्र भारत में संसद में सबसे अधिक बजट पेश करने का रिकॉर्ड मोरारजी भाई देसाई के ही नाम है। मोरारजी देसाई ने उस कठिन समय में भारत का कुशल नेतृत्व किया, जब देश के लोकतान्त्रिक ताने-बाने को खतरा था। इसके लिए हमारी आने वाली पीढ़ियाँ भी उनकी आभारी रहेंगी। मोरारजी भाई देसाई ने लोकतंत्र की रक्षा के लिए आपातकाल के खिलाफ आन्दोलन में खुद को झोंक दिया। इसके लिए उन्हें वृद्धावस्था में भी भारी कीमत चुकानी पड़ी। उस समय की सरकार ने उन्हें गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया। लेकिन 1977 में जब जनता पार्टी चुनाव जीती तो वे देश के प्रधानमंत्री बने। उनके कार्यकाल के दौरान ही 44वाँ संविधान संशोधन लाया गया। यह महत्वपूर्ण इसलिए है क्योंकि आपातकाल के दौरान जो 42वां संशोधन लाया गया था, जिसमें सुप्रीमकोर्टकी शक्तियों को कम करने और दूसरे ऐसे प्रावधान थे, जो हमारे लोकतान्त्रिक मूल्यों का हनन करते थे - उनको वापिस किया गया। जैसे 44वें संशोधन के जरिये संसद और विधानसभाओं की कार्यवाही का समाचार पत्रों में प्रकाशन का प्रावधान किया गया। इसी के तहत, सुप्रीमकोर्ट की कुछ शक्तियों को बहाल किया गया। इसी संशोधन में यह भी प्रावधान किया गया कि संविधान के अनुछेद 20 और 21 के तहत मिले मौलिक-अधिकारों का आपातकाल के दौरान भी हनन नहीं किया जा सकता है। पहली बार ऐसी व्यवस्था की गई कि मंत्रिमंडल की लिखित अनुशंसा पर ही राष्ट्रपति आपातकाल की घोषणा करेंगे, साथ ही यह भी तय किया गया कि आपातकाल की अवधि को एक बार में छः महीने से अधिक नहीं बढ़ाया जा सकता है। इस तरह से मोरारजी भाई ने यह सुनिश्चित किया कि आपातकाल लागू कर, 1975 में जिस प्रकार लोकतंत्र की हत्या की गई थी, वह भविष्य में फिर दोहराया ना जा सके।”

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