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प्रेस काउंसिल के अधिकारों पर सरकार और संस्था के बीच तनातनी

भारतीय प्रेस परिषद (पीसीआई) की ओर से केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के सचिव सुनील अरोड़ा के नाम गिरफ्तारी वारंट जारी करने का फैसला किए जाने के बाद परिषद और केंद्र सरकार के बीच तनातनी की स्थिति पैदा हो गई है। पीसीआई ने 13 अप्रैल को यह वारंट तब जारी किया जब कई बार समन जारी होने के बाद भी प्रसारण सचिव अरोड़ा संस्था के समक्ष पेश नहीं हुए।
प्रेस काउंसिल के अधिकारों पर सरकार और संस्था के बीच तनातनी

प्रेस काउंसिल के वारंट जारी करने के फैसले के तीन दिन के बाद सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के सूत्रों ने आज कहा कि पीसीआई के पास सीमित शक्तियां हैं और वह न्यायपालिका की तरह हर चीज पर फैसला नहीं कर सकती। न्यायपालिका तो एक स्वतंत्र संस्थान है, जिसे संविधान से मान्यता प्राप्त है। पीसीआई के अध्यक्ष न्यायाधीश (सेवानिवृत्त) सी के प्रसाद ने कहा कि परिषद को प्रथम दृष्ट्या यह लगा था कि उसके पास ऐसा वारंट जारी करने का अधिकार है। उन्होंने यह भी कहा कि परिषद इस संदर्भ में सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के दावे को सुनने के लिए तैयार है। पीसीआई के सदस्यों ने प्रसाद के नेतृत्व में हुई 11 अप्रैल की बैठक में सर्वसम्मति के साथ आगामी 22 अप्रैल को होने वाली परिषद की बैठक में अरोड़ा की मौजूदगी सुनिश्चित करवाने का फैसला लिया था। बीते 17 मार्च को पीसीआई ने परिषद की गतिविधियों के प्रति, विशेषकर प्रेस की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने में इसके प्रयासों और प्रेस परिषद कानून के तहत इसके अधिकार के प्रति मंत्रालय की सतत उदासीनता की स्वत: जांच गठित करने का फैसला किया था और मंत्रालय के सचिव को 11 अप्रैल से पहले इसके समक्ष पेश होने का निर्देश दिया था। अरोड़ा को 30 अप्रैल को सेवानिवृत्त होना है। 

 

परिषद के अध्यक्ष न्यायमूर्ति प्रसाद ने कहा कि मंत्रालय ने अपने शुरूआती जवाब में परिषद की शक्तियों के बारे में सवाल उठाया था लेकिन फिर बुधवार को हुए संवाद में कहा था कि सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के सचिव आएंगे। परिषद के समक्ष यह अनुरोध भी किया गया था कि वह सचिव के पेश होने की तारीख बदलने पर विचार करे। इस अनुरोध के संदर्भ में प्रसाद ने कहा कि परिषद के सदस्यों के विचार जानने के बाद फैसला किया जाना चाहिए। दरअसल परिषद के कुछ सदस्यों ने सुझाव दिया था कि वारंट जारी करने के निर्देश को थोड़ा रोक कर रखा जाना चाहिए। प्रसाद ने बुधवार को कहा कि परिषद को उस दिन मंत्रालय की ओर से मिले संवाद में यह कहा गया था कि सचिव नोटिस प्राप्त करने के लिए यहां मौजूद नहीं हैं क्योंकि वह देश से बाहर हैं और वह संस्था के समक्ष पेश होंगे। वहीं सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के सूत्रों ने कहा कि प्रेस परिषद कानून के तहत परिषद को लोगों को पेश होने के लिए समन भेजने और उनसे शपथ दिलाकर जिरह करने का अधिकार सिर्फ दो उद्देश्यों से दिया गया है। यह उद्देश्य हैं, अपने कार्यों के निष्पादन के लिए और जांच करवाने के लिए। 

 

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