क्या देश के पास पर्याप्त संख्या में ऑक्सीजन कंसंट्रेटर था, जो कोविड महामारी की चल रही दूसरी लहर के दौरान हजारों लोगों की जान बचा सकता था? इससे भी महत्वपूर्ण बात ये है कि सरकार दूसरी लहर की तैयारी के लिए इस तरह के थेरेपी मशीन और ऑक्सीजन सिलेंडर जैसे अन्य उपकरणों का स्टॉक कर सकती थी, जो दुनिया के अधिकांश देशों में पहले से कहीं अधिक गंभीर हो चला था? अफसोस की बात है कि दोनों सवालों के जवाब हां हैं।
वाणिज्यिक सूचना और सांख्यिकी महानिदेशालय (डीजीसीआई) के आंकड़ों के अनुसार, ऐसा लगता है कि निजी व्यापारी महामारी में इस मशीनों की जरूरतों की भविष्यवाणी पहले ही कर चुके थे और सरकार से कई कदम आगे थे। 2019-20 में, जब देश में मार्च 2020 के आखिर में लॉकडाउन लागू किया गया था। तब उस वक्त ऑक्सीजन थेरेपी उपकरणों का आयात 1.74 मिलियन यूनिट किया गया, जो कि दो साल पहले की तुलना में लगभग तीन गुना और वार्षिक गिरावट के औसत से लगभग 25 गुना था। पिछले वित्त वर्ष 2020-21 में भी यह संख्या 2.5 मिलियन यूनिट और 2017-18 के मुकाबले पांच गुना हो गई।
साल मात्रा (लाख में)
2015-16 6.57
2016-17 8.87
2017-18 5.62
2018-19 11.92
2019-20 17.40
2020-21 25.00
स्रोत: डीजीसीआईएस
इनमें से अधिकांश व्यापारियों द्वारा ऑक्सीजन उपकरणों को जमा किया गया और फिर कोरोना महामारी की दूसरी लहर के बाद धीरे-धीरे अधिकतम कीमतों पर बेचा गया। रिपोर्ट से पता चलता है कि पीड़ित लोगों ने दूसरी लहर के दौरान पिछले दो महीनों में प्रति सिलेंडर 40,000 रुपये तक का भुगतान किया। जो पिछले साल के अंत तक 1,000 रुपये में उपलब्ध था। यह अधिक महत्वपूर्ण है कि जिनके पास स्टॉक उपलब्ध थे उन्होंने जानबूझकर संकट पैदा किया और लोग दर-दर भटकते रहें।
इससे भी महत्वपूर्ण बात ये है कि सरकारों को व्यापारी-आयातकों से निपटने का कोई तरीका नहीं था। एक आयातक कहते हैं, “जिन लोगों ने राइट कोड के तहत ऑक्सीजन उपकरणों को आयात किया और इसकी घोषणा की, उन्हें ट्रैक किया जा सकता था। व्यापार नीति में कई ग्रे क्षेत्र हैं, जिन्हें सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट से निपटने के लिए पहली प्राथमिकता होनी चाहिए थी।