कयूम का कहना है कि गोधरा कांड के पीड़ितों की मदद करने पर सरकार ने उन्हें आतंकी बना दिया। देश की सर्वोच्च अदालत ने हमारी पुकार सुनी और बेदाग होकर जेल से छूटे। कयूम अपनी पीड़ा व्यक्त करते हुए कहते है कि देश प्रेम हमारी भावनाओं में हैं। देश द्रोह तो हमारे इस्लाम में ही नहीं हैं।
कयूम के मुताबिक गोधराकांड के बाद हुए दंगों में लोगों की मदद के लिए राहत शिविर लगाना उनके लिए मुसीबत बन गया। अक्षरधाम मंदिर पर हुए हमले में ऐसे ही लोगों को पुलिस ने निशाना बनाया, जो पुनर्वास का काम कर रहे थे। कयूम का कहना है कि अगर एक व्यक्ति गलत काम कर दे ताे पूरी कौम को बदनाम कर दिया जाता है। कयूम का दर्द है कि इस घटना ने उन्हे समाज में 11 साल पीछे छोड़ दिया है, जेल में रहते पिता को भी खो दिया।
कयूम का कहना है कि इस किताब के जरिए वह लोगों को यह बताना चाहते हैं कि किस प्रकार गरीब और कमजोर वर्ग को प्रताड़ित किया जाता है। पिछले साल सुप्रीम कोर्ट से रिहा किए गए कयूम को साल २००३ में गिरफ्तार किया गया था। उस समय उसकी उम्र २९ साल की थी और उनका बड़ा बेटा पांच साल का और छोटा बेटा सिर्फ 10 महीने का था।
पुलिस ने कयूम को अक्षरधाम हमले की साज़िश में शामिल होने के आरोप में गिरफ्तार किया था। पुलिस का दावा था कि मंदिर में मारे गए फिदायीन के पास उर्दू में उनकी लिखी एक चिट्ठी मिली है। इसके अलावा उन पर आतंकवादियों को पनाह देने का आरोप भी लगाया गया। इसके बाद पोटा कानून के तहत मुफ्ती अब्दुल कयूम को फांसी की सज़ा सुना दी गई, लेकिन आखिरकार पिछले साल 17 मई को सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें बेगुनाह बताते हुए सभी आरोपों से बरी कर दिया।