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भाजपा सरकार की 'वाणी पर अंग्रेजी सवारी’

आकाशवाणी के समाचार प्रभाग में हिंदी के साथ मौजूदा हिंदी-प्रेमी सरकार में भी हो रहा सौतेला व्यवहार
भाजपा सरकार की 'वाणी पर अंग्रेजी सवारी’

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से उपजी भारतीय जनसंघ और भारतीय जनता पार्टी जनता के बीच राष्ट्रवाद के साथ राष्ट्रभाषा हिंदी को सर्वोच्च स्थान दिए जाने का संकल्प लेकर सत्ता के शिखर तक पहुंची। लेकिन अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में और नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बन जाने के दो वर्षों बाद भी दुनिया में सर्वाधिक श्रोताओं वाली आकाशवाणी की हिंदी समाचार सेवा के सिर पर 'अंग्रेजी’ विराजमान है। गरमागरम बहस-मुबाहिसे, राय शुमारी, विशेषज्ञों की राय, प्रवक्ताओं का ज्ञान, आंखों देखा हाल और लोकप्रियता के सारे तमगे जब टेलीविजन ने अपने खाते में कर लिए तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 'मन की बात’ कहने के लिए रेडियो को चुना। वही रेडियो जो पुरानी पीढ़ी के जहन में, 'ये आकाशवाणी है, अब आप अमुक से समाचार सुनिए’ के तौर पर और नई पीढ़ी दफ्तर जाते वक्त ट्रैफिक में फंसे रहने पर समय गुजारने के लिए सुनती है। ग्रामीण भारत में विश्वसनीय समाचार का दूसरा नाम रेडियो के श्रोताओं को शायद पता ही नहीं होगा कि जब प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति देश की राष्ट्रभाषा हिंदी में संबोधित कर राष्ट्र को गौरवान्वित करते हैं तो आकाशवाणी के अंग्रेजीदां अफसरशाह हिंदी के उस भाषण को अंग्रेजी में नोट करते हैं और फिर इसका हिंदी अनुवाद होता है! आकाशवाणी में जनरल न्यूज रूम में हर संवाददाता अपनी खबर अंग्रेजी में फाइल करता है और फिर उसका अनुवाद उन हिंदी-प्रेमी श्रोताओं तक पहुंचता है जो आकाशवाणी को हिंदी का सबसे बड़ा पैरोकार और सबसे बड़ा माध्यम मानते हैं। हिंदी से अंग्रेजी, फिर अंग्रेजी से हिंदी के इस खेल में कभी-कभी बड़े रोचक वाक्य बन जाते हैं जो बाद में वक्ता सुने तो चौंकने या परेशान होने के अलावा कोई चारा नहीं रहेगा। एक बानगी देखिए, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, 'समस्या बहुत गंभीर है, इस पर तुरंत ध्यान दिया जाना चाहिए।’ इसका अंग्रेजी अनुवाद हुआ, 'सिचुएशन इज वैरी टैंस इट शुड बी टेकन इमिडेटली।’ हिंदी हुआ तो वाक्य था, 'स्थिति बहुत तनावपूर्ण है, इससे तुरंत निपटा जाना चाहिए।’

आकाशवाणी के यह हाल तब हैं जब मौजूदा सरकार हिंदी में काम करने को लेकर न सिर्फ सचेत दिखाई देती है बल्कि इस सरकार के अधिकांश मंत्री अच्छी हिंदी बोलते और समझते हैं। समाचार प्रभाग के एक वरिष्ठ सदस्य नाम न छापने की शर्त पर बताते हैं, 'सन 1993 में एक अंग्रेजी न्यूज पूल बना। इसी के समानांतर हिंदी का पूल भी बना। लेकिन न्यूज रूम में अंग्रेजी के आधिपत्य वालों की जो जगह बनी तो फिर हिंदी पीछे होती गई। छोटी-छोटी जगहों के संवाददाताओं से भी अंग्रेजी में खबरें फाइल करने को कहा जाता है। भले ही वह अंग्रेजी न जानते हों। जो काम हिंदी में हो सकता है उसका भी अनुवाद करना हिंदी समाचार प्रभाग की मजबूरी है। अब जो खबरें आती हैं उन्हें शब्दकोश की मदद से अनुवाद कर लिया जाता है। ऑयल प्लांट को तेल का पौधा लिखने का हुनर भी कई लोग यहां दिखा चुके हैं। यह दुखद है पर क्या करें। अंग्रेजी की गुलामी से मुक्ति इतनी आसान नहीं है।’ जनरल न्यूज रूम जहां खबरें आती हैं, वहां अंग्रेजी का आधिपत्य है। बरसों से अनुवादक के पद रिक्त हैं जो अनुवादक हैं उन्हें भाषा या आकाशवाणी की शैली का प्रशिक्षण ही नहीं दिया गया है। आकाशवाणी से जुड़े सूत्र कहते हैं, 'इसका एक कारण सूचना सेवा से आने वाले अधिकारी भी हैं, जिन्हें खुद पता नहीं होता कि कल उनकी पोस्टिंग कहां होगी। ऐसे लोग भी कई बार अधिकारी बन कर आ जाते हैं, जिनका ब्रॉडकास्टिंग से कोई लेना-देना नहीं होता। वह लोग कभी पीआईबी में होते हैं तो कभी डीएवीपी में।’ आकाशवाणी से लंबे समय से जुड़े लोग ऐसी स्थिति से दुखी और परेशान होते हैं, पर इसका कोई उपाय उनके पास नहीं है। आकाशवाणी-दूरदर्शन के पूर्व डायरेक्टर जनरल लीलाधर मंडलोई कहते हैं, 'पहले कई हिंदी न्यूज एजेंसी के साथ भी आकाशवाणी का अनुबंध था जो समय के साथ खत्म हो गया। ऐसा नहीं है कि सभी काम अंग्रेजी में होता है। लेकिन हां जो अधिकारी भारतीय सूचना सेवा से आते हैं उन्हें अंग्रेजी में काम करने में सुविधा होती है। चूंकि उनकी मूल शिक्षा अंग्रेजी में होती है।’ जिस आकाशवाणी में सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय’, हरिवंश राय बच्चन, सर्वेश्वर दयाल सक्सेना, डॉ. नगेंद्र, मनोहर श्याम जोशी जैसे दिग्गज साहित्यकार अपनी सेवाएं दे चुके हों वहां अब ऐसे लोग आ गए हैं जिन्हें हिंदी के साधारण मुहावरे और उनके अर्थ नहीं पता हैं। हालांकि आकाशवाणी के मौजूदा डायरेक्टर जनरल एफ. शहरयार कहते हैं, 'देश के हिंदी प्रदेशों से खबरें हिंदी में ही आती हैं। यह पूरी तरह सही नहीं है कि आकाशवाणी में हिंदी को तवज्जो नहीं है। अगर अनुवाद होता भी है तो अल्फाजों का नहीं होता, आत्मा का होता है।’ आकाशवाणी के एक अधिकारी बताते हैं, 'सत्तर के दशक में आकाशवाणी में एक शब्दकोश तैयार कराया गया था। विद्वानों ने मिल कर इसे तैयार किया था, जिसमें एक-एक शब्द, मुहावरे, उनके प्रयोग के बारे में विस्तार से बताया गया था। इस शब्दकोश की खास बात यह थी कि इसमें हिंदी-हिंदुस्तानी और अंग्रेजी तीनों भाषाओं के शब्द, उनके अर्थ और प्रयोग थे। यह विडंबना ही है कि यह शब्दकोश वाशिंगटन की स्टेट लाइब्रेरी में डॉ. लिलिवेल के पास है और इसकी एक भी प्रति आकाशवाणी के पास नहीं है।’

देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब 'मन की बात’ नाम से शृंखला शुरू की तो उन लोगों को भी सुखद आश्चर्य हुआ जो रेडियो से लगभग दूरी बना चुके हैं। 'मन की बात’ को सैकड़ों श्रोता सुनते हैं। शहरी इंडिया से ग्रामीण भारत तक श्रोता अपने मन की बात मोदी के मन के द्वारा सुनना चाहते हैं। कुछ इसे रेडियो का पुनर्जन्म मानते हैं। लेकिन यह पुनर्जन्म सिर्फ श्रोताओं के लिए है, आकाशवाणी से जुड़े स्टाफ के लिए नहीं। कार्यक्रमों के सीधे प्रसारण मामले में भी रेडियो, टेलीविजन में न कोई साम्य है, न मुकाबला। सीधे प्रसारण के मामले में पूछे जाने पर आकाशवाणी दिल्ली के उपमहानिदेशक (कार्यक्रम) राजीव कुमार शुक्ल कहते हैं, 'आकाशवाणी पर भी बहुत सी विशेष गतिविधि का सीधा प्रसारण होता है। बजट सत्र के पहले का राष्ट्रपति अभिभाषण, आम बजट, रेल बजट और राष्ट्रपति शपथ ग्रहण का सीधा प्रसारण किया जाता है। इसके अलावा हर विशेष मौके को आकाशवाणी अपने श्रोताओं तक पहुंचाता है।’ आकाशवाणी पर संसद की कार्यवाही का सीधा प्रसारण तो नहीं होता लेकिन किसी भी संसद सत्र से एक दिन पहले समाचार सेवा प्रभाग अंग्रेजी और हिंदी में संसद समीक्षा का कार्यक्रम देता है। इसी तरह एक हफ्ते लोकसभा और एक हफ्ते राज्यसभा की कार्यवाही की समीक्षा प्रसारित की जाती है।

हाल ही में दिल्ली आकाशवाणी से स्टेशन निदेशक पद से सेवानिवृत्त हुए लक्ष्मी शंकर वाजपेयी कहते हैं, 'आकाशवाणी में भी सुधार की बहुत सी संभावनाएं हैं। नए जमाने के अनुसार इस पर काम करना चाहिए।’ आकाशवाणी के पास पुरानी और दुर्लभ रेकॉर्डिंग का खजाना है लेकिन संरक्षण का अभाव में कुछ रेकॉर्डिंग नष्ट हो रही है। आर्काइव पर अब काम हो रहा है। एक विभाग इसी पर काम कर रहा है। लोकसंगीत को सहेजने के लिए भी आकाशवाणी काम कर रहा है। एक और कमी जिससे आकाशवाणी जूझता है वह है, बजट। तकनीक के नए उपकरण, तकनीकी लोगों का अभाव, नए और ज्यादा शक्तिशाली ट्रांसमीटर आकाशवाणी की सबसे बड़ी जरूरत बन गए हैं। नाम न छापने की शर्त पर आकाशवाणी के एक अधिकारी कहते हैं, 'राष्ट्रीय चैनल एक एंबीशियस प्रोजेक्ट था। तय किया गया था कि यह पूरी रात चलेगा, मगर ट्रांसमीटर इतने कमजोर हैं कि पता ही नहीं चलता किस शहर में यह सुना जा रहा है और कहां नहीं। बेशक हमारी प्रतिस्पर्धा निजी रेडियो चैनलों से न हो लेकिन फिर भी आकाशवाणी को अपने रवैये में थोड़ा सा बदलाव लाना जरूरी है।’ आकाशवाणी की चुनौती सिर्फ यही नहीं है कि यहां कैजुअल अनाउंसरों की नियुक्ति, वेतनवृद्धि और वक्त पर प्रमोशन का संकट है। आकाशवाणी के मनोरंजन चैनल विविध भारती के लोकप्रिय एंकर यूनुस खान कहते हैं, 'आमिर खान भी अपने शो सत्यमेव जयते के लिए रेडियो का सहारा ले चुके हैं। नई पीढ़ी के लिए आकाशवाणी अब मोबाइल पर भी उपलब्‍ध है। इंटरनेट स्ट्रीमिंग के जरिये इसे कहीं भी सुना जा सकता है। विंडोज, एंड्रॉयड और आईफोन तीनों के लिए आकाशवाणी की मोबाइल एप्लीकेशन हैं। जिसे गूगल प्ले स्टोर से डाउनलोड किया जा सकता है।’ बेशक प्रधानमंत्री के मन की बात शुरू होने के बाद आकाशवाणी में तकनीकी रूप से बहुत बदलाव हुए हैं फिर भी आकाशवाणी के इतिहास पर चढ़ी सुनहरी परत धुंधली हो रही है।

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