पत्रकार राना अयूब की किताब गुजरात फाइल्स-एनाटॉमी ऑफ ए कवर अप-एक अहम दस्तावेज है। नेताओं और नौकरशाहों का गठजोड़ सच को छुपाने के लिए कैसे काम करता है, उसका सबूत देती है यह किताब। यह किताब ऐसे समय में आई है जब केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार अपने दो साल पूरे होने का जश्न मना रही है और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह सरकार की उपलब्धियों को गिनाने में मशगूल हैं। यह किताब गुजरात में हुए दंगों पर न्याय की मांग को तेज करती है। यह किताब 2002 के गुजरात नरसंहार से लेकर इशरत जहां फर्जी मुठभेड़ तक में गुजरात सरकार और उसके अधिकारियों की संलिप्तता को उन्हीं की जुबानी पेश करती है। इस किताब को लेकर सोशल मीडिया पर राना अयूब के खिलाफ आरोप-प्रत्यारोप का दौर चल रहा है। भाजपा, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, उग्र हिंदुत्व ब्रिग्रेड ने इसे अपने निशाने पर ले रखा है और अभद्रता का खेल खुलकर चल रहा है। साथ ही कई पुराने वरिष्ठ सहयोगी इस स्टिंग की गुणवत्ता पर सवाल उठा रहे हैं। लेकिन इन तमाम आरोपों-प्रत्यारोपों के दरम्यान राना अयूब इस किताब के जरिए एक बहादुर पत्रकार के रूप में अपनी अलग जगह बनाने में सफल रही हैं। उनकी किताब का पहला संस्करण किताब के विमोचन के दिन ही खत्म हो गया औऱ अब दूसरा संस्करण भी खत्म होने को है। यानी बड़े तबके ने इस पसंद किया और इसे पढ़ने की ललक दिखाई।
राना अयूब नवंबर 2010 से लेकर अप्रैल 2011 तक स्टिंग ऑपरेशन करने के लिए गुजरात में मैथिली त्यागी बनकर रहीं और एटीएस के जी.एल. सिंघल, राजन प्रियदर्शी, अहमदाबाद पुलिस कमिश्नर पी.सी. पांडे, इंटेलिजेंस प्रमुख जी.सी. रायगर, अतिरिक्त मुख्य सचिव अशोक नारायन, गुजरात की दोषी पाई गई मंत्री माया कोडनानी से तमाम विवादित मुद्दों पर बातचीत की, जिसे उन्होंने छुपे हुए कैमरे से रिकॉर्ड किया। यह स्टिंग ऑपरेशन राना अयूब ने तहलका पत्रिका के लिए किया था, जिसकी वह रिपोर्टर थीं। हालांकि इस स्टिंग को तहलका ने नहीं छापा। 2013 में राना अयूब ने तहलका छोड़ दिया। उस स्टिंग के ब्यौरे सामने लाने के लिए वे हमेशा प्रयासरत रहीं।
अपनी किताब को खुद ही छापने के लिए राना अयूब को बाध्य होना पड़ा, क्योंकि कोई प्रकाशक इसे छापने को तैयार नहीं था। उनकी इस किताब में गुजरात नरसंहार से लेकर फर्जी मुठभेड़ों और सरकार की कार्यप्रणाली पर जो बातचीत दर्ज है (स्टिंग पर आधारित), उनसे सीधे-सीधे भाजपा के वर्तमान अध्यक्ष और तत्कालीन गृह मंत्री अमित शाह और तत्कालीन मुख्यमंत्री और वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर सवाल उठ रहे हैं। वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह का कहना है कि यह किताब जो साक्ष्य पेश करती है, वे मजबूत हैं। सुप्रीम कोर्ट इस पुस्तक के आधार पर संज्ञान ले सकता है या जांच एजेंसियां इन सबूतों के आधार पर दोबारा से जांच शुरू कर सकती हैं।
इस किताब की भूमिका लिखी है जस्टिस बी.एन. श्रीकृष्ण ने और उन्होंने जो बातें उठाई हैं वह मार्के की हैं। जस्टिस श्रीकृष्ण न्याय दिलाने की लड़ाई के पुराने योद्धा हैं, जिनकी मुंबई दंगे पर रिपोर्ट को कांग्रेस-एनसीपी ने ठंडे बस्ते में डाल दिया था। उन्होंने इस पुस्तक की भूमिका में इस दर्द को बेबाकी से रखा है। उनका कहना है कि सच को सच कहने का साहस ही इंसाफ दिला सकता है। आउटलुक की संवाददाता के साथ हुई लंबी मुलाकात के दौरान उन्होंने बताया कि सारे जोखिम उठाकर उन्होंने सच को सबके सामने रख दिया है। उनका मानना है कि जिस तरह इशरत जहां के फर्जी मुठभेड़ को केंद्र सरकार फिर से जायज ठहराने में लगी है, उसे इन साक्ष्यों के आधार पर रोका जा सकता है। इशरत जहां का एनकाउंटर करने वाले अफसर का भी कथन इस किताब में है, जिसमें वह साफ कहता है कि इशरत आतंकवादी नहीं थी। गुजरात के पूर्व गृह मंत्री हीरेन पांड्या की मौत के पीछे के कई राज यह किताब खोलती है। स्टिंग पत्रकारिता की नैतिकता और औचित्य पर हमारे-आपके तमाम सवाल हो सकते हैं। इस मुद्दे के बाबत राना अयूब का कहना है कि इसके अलावा कोई रास्ता नहीं था। कोई कागज, कोई फाइल, कोई प्रमाण नहीं था। स्टिंग के दौरान अधिकारियों ने भी इस बात की तस्दीक की है। स्टिंग का सच सामने नहीं आने का बोझ हावी हो रहा था। उन्होंने कहा, 'अब इस बोझ से मैं मुक्ति चाहती हंू। पिछले पांच साल से इस सच का बोझ वह अपने दिल में लिए फिर रही थी। मेरी ही क्यों किसी की भी जान का कोई ठिकाना नहीं है। मैं एक पत्रकार हूं और इंतजार कर रही हूं कि कब जांच एजेंसियां या सुप्रीम कोर्ट उनसे इन टेपों को ले लें।’ इस माहौल में जबकि इशरत जहां एनकाउंटर मामले और गुजरात दंगों के तमाम आरोपी जमानत पर बाहर हैं, राना अयूब का यह इंतजार जारी है।