केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने आरएसएस और भाजपा की संयुक्त बैठक को लेकर विपक्ष के आरोपों को खारिज करते हुए शनिवार को कहा कि प्रधानमंत्री इस संगठन के स्वयंसेवक हैं और इसमें किसी को समस्या नहीं होनी चाहिए। सिंह ने विपक्ष के आरएसएस के नियंत्रण में सरकार के होने के आरोपों के जवाब में कहा कि मैं हर किसी से स्पष्ट करना चाहता हूं कि मैं आरएसएस का स्वयंसेवक हूं, प्रधानमंत्री आरएसएस के स्वयंसेवक हैं तथा इसमें किसी को समस्या नहीं होनी चाहिए। राजनाथ ने जोर देकर खुद के और नरेंद्र मोदी के आरएसएस का स्वयंसेवक होने की बात कही पर आरएसएस के सरकार चलाने की बात से इनकार किया और कहा कि इसमें कोई सच्चाई नहीं है। यह पूरी तरह आधारहीन है। राजऩाथ सिंह ने आज आरएसएस नेतृत्व के साथ बैठक में शामिल होकर केंद्रीय मंत्रियों के पदभार ग्रहण करते समय लिए गए गोपनीयता के शपथ को तोड़ने की बात को भी नकार दिया। सिंह ने इस पर कहा कि उन्हेंने गोपनीयता की शपथ नहीं तोड़ी है। बैठक चाहे सार्वजनिक रूप से हो या फिर कमरे के भीतर, इसमें शामिल होने से गोपनीयता की शपथ नहीं टूटती है। इससे पहले तीन दिन से चल रही संघ और भाजपा की संयुक्त बैठक में अंतिम दिन शुक्रवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भाग लिया था। जिसमें मोदी ने आरएसएस की तारीफ की थी। अपने तरह की यह पहली ऐसी बैठक थी जिसमें मोदी समेत सरकार के कई शीर्ष मंत्रियों ने आंतरिक सुरक्षा, नक्सल समस्या और जम्मू कश्मीर की स्थिति समेत कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर हुई चर्चा में शिरकत की। संघ के साथ इस चर्चा में वरिष्ठ केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह, अरूण जेटली, सुषमा स्वराज, मनोहर पर्रिकर, वेंकैया नायडू और अनंत कुमार ने शामिल होकर आरएसएस और इससे जुड़े संगठनों के उठाए उठाए गए मुद्दों पर अपनी बात रखी थी।
आरएसएस के साथ सरकार के कामकाज को साझा करने के लिए बुलाई गई इस बैठक पर विपक्षी दलों ने भाजपा और नरेंद्र मोदी पर आरएसएस के नियंत्रण से सरकार चलाने का आरोप लगाया था। इन आरोपों पर ध्यान न देते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बैठक के तीसरे दिन इसमें भाग लिया और उसे संबोधित भी किया। नरेंद्र मोदी ने बैठक में आरएसएस की विचारधारा और पंक्ति में आखिरी व्यक्ति के विकास के लिए उसकी प्रतिबद्धता को अच्छी तरह से समझने की बात कही। साथ में मोदी ने खुद के संघ से जुड़े होने का भी बैठक में वर्णन किया और अपनी सरकार के कामों को आगे ले जाने में आरएसएस और उसके संबद्ध संगठनों का सहयोग भी मांगा था।
संघ और भाजपा की संयुक्त बैठक में प्रधानमंत्री और उनके सहयोगी मंत्रियों के हिस्सा लेने और अपने कामकाज का लेखाजोखा पेश करने पर विपक्ष ने प्रधानमंत्री और केंद्रीय मंत्रियों पर जमकर निशाना साधा। माकपा ने मोदी सरकार के क्रियाकलाप को लोकतंत्र का अपमान करने वाला बताते हुए सरकार के संघ परिवार के सीधे नियंत्रण में होने का आरोप लगाया था। माकपा ने आरएसएस और इससे जुड़े संगठनों को धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत के लिए खतरा करार देते हुए उस पर भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाने का प्रयास करने का आरोप लगाया और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर ऐसे प्रयासों को संरक्षण देने और वैधता प्रदान करने का आरोप लगाया। बैठक में केन्द्रीय मंत्रियों द्वारा आरएसएस नेताओं को अपने काम की विस्तृत रिपोर्ट देने को माकपा ने भारतीय लोकतंत्र का अपमान करार देते हुए भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाने के आरएसएस के कथित एजेंडे के संदर्भ में कहा कि यह लक्ष्य धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक भारतीय संविधान के मौलिक सिद्धांतों के खिलाफ है और सरकार की मौजूदा कवायद पद एवं गोपनीयता की संवैधानिक शपथ का उल्लंघन है जो इसके मंत्रियों ने ली थी। वहीं कांग्रेस ने भी इस मुद्दे पर सरकार को घेरने का प्रयास किया। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने विरोध की कमान खुद संभालते हुए किया था कि प्रधानमंत्री मोदी नहीं देख पा रहे हैं कि सरकार से इतर असहिष्णु तत्व उन्हें एवं उनकी सरकार को नियंत्रित कर रहे हैं।
(एजेंसी इनपुट)