विश्व हिंदू परिषद की तरफ से नवरात्रों में तो गांव-गांव में भगवान राम की पूजा करने की तैयारी चल रही है ताकि अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के नाम पर फिर से लोगों की भावनाओं की थाह ली जा सके। दूसरी ओर सघ हिंदू नव वर्ष बिक्रम संवत को पूरे देश में विशाल पैमाने पर समारोह पूर्वक मनाने की तैयारी में है। संघ के विभागीय प्रचारक अमरनाथ वर्मा के अनुसार, यूं तो संघ हिंदू नववर्ष बिक्रम संवत को हमेशा ही समारोहपूर्वक मनाता रहा है लेकिन इस वर्ष इसे स्वदेशी की भावना को और मजबूत करने के लिए बडे़ पैमाने पर मनाने की तैयारी की जा रही है। गौरतलब है कि बिक्रम संवत के अनुसार नए साल की शुरुआत चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रथम तिथि को होती है, जो चैत्र नवरात्र का भी पहला दिन होता है। इस वर्ष बिक्रमी संवत के अनुसार नए साल की शुरुआत 21 मार्च को होगी। बिक्रम संवत की शुरुआत उज्जैन के सम्राट विक्रमादित्य द्वारा ईसा मसीह के जन्म से 56 वर्ष पहले शक शासकों पर मिली जीत के बाद की गई थी। बिक्रमी संवत के अनुसार इस वर्ष 2072 की शुरुआत होगी। वर्मा ने कहा कि संघ स्वदेशी की भावना को निरंतर मजबूत करने की दिशा में प्रत्यनशील रहा है। इस बार बिक्रम संवत के पहले दिन नववर्ष को लोगों से अपने घरों में देशी दीपक जलाने और चीन के बने वस्तुओं से परहेज की अपील की गई है। उन्होंने कहा, रोशनी और सजावट के काम में स्वदेशी वस्तुओं का प्रयोग होना चाहिए और चीन की बनी झालरों आदि का प्रयोग नहीं होना चाहिए। स्वदेशी और भारतीयता को बलशाली करने की जरूरत है।
इस कड़ी में उत्तर प्रदेश के राज्यपाल राम नाईक ने केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय को पत्र लिखकर इस मौके पर सम्राट विक्रमादित्य की याद में एक डाक टिकट जारी करने का आग्रह किया है। संघ प्रचारक ने बताया कि विक्रम संवत 2072 के पहले दिन सभी हिंदुओं को अपने घरों पर ओम लिखा ध्वज फहराने और घरों में दीये जलाने का आग्रह किया गया है।
गौरतलब है कि संघ से जुड़े विश्व हिंदू परिषद ने इस बार 21 मार्च को शुरू हो रहे नवरात्र के दौरान दुर्गा पूजा की तर्ज पर राम महोत्सव के आयोजन की योजना बना रखी है। विहिप के प्रवक्ता शरद शर्मा के अनुसार इस वर्ष हम नवरात्रों में राम महोत्सव मनाएंगे... इससे राम मंदिर के निर्माण की भावना को बल मिलेगा तथा लोग नए सिरे से मंदिर निर्माण के संकल्प को ताजा करेंगे। राम महोत्सव के दौरान पूरे 10 दिन गांव-गांव में भगवान राम की प्रतिमा स्थापित करके उसकी पूजा की जाएगी। जहां अवसर होगा वहां उसे हमेशा के लिए स्थापित कर दिया जाएगा अथवा उसे समारोहपूर्वक विधि-विधान के साथ विसर्जित कर दिया जाएगा।