राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने सूचना के अधिकार कानून के महत्व पर जोर दिया, इसकी प्रशंसा की और इस कानून को भारतीय लोकतंत्र को सशक्त बनाने वाला बताया। उन्होंने सूचना को ‘शक्ति’ की संज्ञा दी।
प्रवासी भारतीय केंद्र में एक समारोह को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति ने आरटीआइ एक्ट द्वारा प्रशासन में आई पारदर्शिता को रेखांकित किया। यह समारोह आरटीआइ एक्ट की 13वीं वर्षगांठ पर आयोजित किया गया था।
राष्ट्रपति कोविंद के अनुसार “सूचनाओं का मुक्त प्रवाह ही लोकतंत्र का सार है, यह लोकतंत्र में लोगों की जरूरत है, सूचना ही शक्ति है। लोगों को यह जानने का अधिकार है कि उन पर कैसे शासन किया जा रहा है, कैसे सार्वजनिक धन को खर्च किया जा रहा है, जनकल्याण के लिए कैसे राष्ट्रीय संसाधनों का इस्तेमाल किया जा रहा है, कैसे सार्वजनिक सेवाओं की डिलीवरी की जा रही है।“
हालांकि राष्ट्रपति ने निजी हित में इसके दुरुपयोग के बारे में भी आगाह किया, “हमें उस स्थिति में इस बारे में सावधान रहने की जरूरत है जब निजी मामलों के निपटान के लिए आरटीआइ तंत्र का उपयोग किया जाता है। खासकर ऐसे समय में जब निजता, बहस का व्यापक मुद्दा बन गई है। दोनों के बीच बैलेंस करना बहुत महत्वपूर्ण है।“
कब आया था आरटीआइ?
आरटीआइ एक्ट 15 जून, 2005 में बनाया गया था लेकिन यह 12 अक्टूबर से प्रभावी हुआ। इस कानून के तहत कोई भी नागरिक सरकार के किसी भी कार्यालय से कोई भी सूचना मांग सकता है। सूचना के लिए आवेदन करते समय आवेदक को महज 10 रुपये का शुल्क देना पड़ता है। गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों के लिए यह मुफ्त है।
आरटीआइ एक्ट के तहत कोई भी सूचना सीधे कार्यलय में जाकर, पोस्ट ऑफिस के माध्यम से या ऑनलाइन आवेदन करके भी मांगी जा सकती है। मांगी गई सूचना 30 दिनों के अंदर संबंधित कार्यालय अथवा विभाग को देनी होती है।