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मणिपुर: सुप्रीम कोर्ट पहुंची दोनों पीड़ित महिलाएं, अदालत की निगरानी में जांच को तैयार केंद्र

संघर्षग्रस्त मणिपुर में महिलाओं के खिलाफ हो रही हिंसा से निपटने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक...
मणिपुर: सुप्रीम कोर्ट पहुंची दोनों पीड़ित महिलाएं, अदालत की निगरानी में जांच को तैयार केंद्र

संघर्षग्रस्त मणिपुर में महिलाओं के खिलाफ हो रही हिंसा से निपटने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक व्यापक तंत्र विकसित करने का आह्वान किया। साथ ही उच्चतम न्यायालय ने यह भी पूछा कि मई से राज्य में ऐसी घटनाओं में कितनी प्राथमिकी दर्ज की गई हैं।

केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ को बताया कि अगर शीर्ष अदालत मणिपुर हिंसा की जांच की निगरानी करती है तो भारत संघ को कोई आपत्ति नहीं है। पीठ में न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा भी शामिल हैं।

गौरतलब है कि मणिपुर में हिंसा से संबंधित याचिकाओं पर यह पीठ सुनवाई कर रही है। बता दें कि शुरुआत में, उन दो महिलाओं की ओर से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल पेश हुए, जिन्हें 4 मई के वीडियो में मणिपुर में आदमियों के एक समूह द्वारा नग्न परेड कराते हुए देखा गया था। उन्होंने कहा कि इस मामले में उनकी ओर से एक याचिका दायर की गई है।

मामले में सुनवाई चल रही है। शीर्ष अदालत ने 20 जुलाई को कहा था कि वह संघर्षग्रस्त मणिपुर में दो महिलाओं को नग्न घुमाने के वीडियो से "गहरी परेशानी" में है। यह भी कहा था कि हिंसा को अंजाम देने के लिए महिलाओं को साधन के रूप में इस्तेमाल करना "संवैधानिक लोकतंत्र में बिल्कुल अस्वीकार्य" है। वीडियो पर संज्ञान लेते हुए, भारत के मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ ने केंद्र और मणिपुर सरकार को तत्काल उपचारात्मक, पुनर्वास और निवारक कदम उठाने और की गई कार्रवाई से अवगत कराने का निर्देश दिया।

विगत 27 जुलाई को, केंद्र द्वारा शीर्ष अदालत को बताया गया कि वायरल वीडियो से संबंधित मामले की जांच सीबीआई को सौंप दी गई है। केंद्र ने कोर्ट से कहा कि सरकार "महिलाओं के खिलाफ किसी भी अपराध के प्रति शून्य सहिष्णुता रखती है"। विदित हो कि गृह मंत्रालय (एमएचए) ने अपने सचिव अजय कुमार भल्ला के माध्यम से दायर एक हलफनामे में शीर्ष अदालत से समयबद्ध तरीके से मुकदमे के समापन के लिए मामले को मणिपुर के बाहर स्थानांतरित करने का भी आग्रह किया।

मामले में अब तक कुल मिलाकर सात लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है। तीन मई को राज्य में जातीय हिंसा भड़कने के बाद से कई लोग मारे गए हैं और कई सौ लोग घायल हुए हैं। बहुसंख्यक मेइती समुदाय की अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की मांग के विरोध में पहाड़ी जिलों में 'आदिवासी एकजुटता मार्च' आयोजित किया गया था, तभी से यह हिंसा भड़की थी।

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