सर्वोच्च न्यायालय ने 2019 में हुए लोकसभा चुनाव के नतीजों को लेकर चुनाव आयोग को नोटिस भेजा है। दो गैर-सरकारी संगठनों (एनजीओ) की याचिका पर कोर्ट ने यह नोटिस दिया है। याचिका में कहा गया है कि 347 निर्वाचन क्षेत्रों में मतदान करने वाले मतदाताओं और गिनती के दौरान आई मतों की संख्या में अंतर है। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) और कॉमन कॉज की याचिका पर सुनवाई फरवरी 2020 में होगी। एडीआर एक चुनाव विश्लेषण संस्था है।
मुख्य न्यायाधीश एस ए बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ ने दोनों गैर-सरकारी संगठनों की याचिकाओं को एक साथ जोड़ दिया है। एनजीओ का कहना है कि चुनाव आयोग भविष्य के सभी चुनावों में डेटा की विसंगतियों की जांच के लिए मजबूत प्रक्रिया तैयार करे।
विशेषज्ञों ने किया आंकड़ों का अध्ययन
अपने विशेषज्ञों की टीम द्वारा किए गए शोध के आंकड़ों का हवाला देते हुए, एडीआर ने कहा कि विभिन्न निर्वाचन क्षेत्रों में मतदाताओं की संख्या के बीच गंभीर विसंगतियां थीं। एडीआर का कहना है कि यह वही डेटा है जो चुनाव आयोग द्वारा प्रदान किया गया है। इसमें गिने गए मतों की संख्या और मतदाताओं की संख्या में भारी अंतर है। एडीआर ने कहा कि विसंगतियां 1 वोट से 1,01,323 वोटों तक थीं, जो कुल वोटों के 10.49 प्रतिशत के बराबर है। याचिका में दावा किया गया है कि छह सीटें थीं जहां वोटों में विसंगति जीत के अंतर से अधिक थी।
डेटा संकलन में सामंजस्य नहीं
याचिकाकर्ताओं ने कहा कि चुनावों की पवित्रता बनाए रखने और संरक्षित करने के लिए, यह जरूरी है कि चुनाव परिणाम सटीक हों और संसदीय चुनावों में विसंगतियां संतोषजनक समाधान के बिना निर्धारित नहीं की जा सकती हैं। याचिका में कहा गया है कि चुनाव आयोग ने "डेटा के संकलन, सामंजस्य और प्रकाशन" के लिए कोई निर्धारित प्रणाली नहीं बनाई है। एनजीओ ने दावा किया कि पूरी चुनाव प्रक्रिया में सामने आई विसंगतियों की मात्रा को न तो चुनाव आयोग ने साझा किया न ही इसके समाधान के लिए अपनाई गई कार्यप्रणाली के बारे में बताया।