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राज्यपालों की बर्खास्तगी पर सुप्रीम कोर्ट का केंद्र से जवाब तलब

उच्चतम न्यायालय ने 2014 में भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार के सत्ता में आने पर संप्रग सरकार के कार्यकाल में नियुक्त उत्तराखंड और पुडुचेरी के राज्यपालों को बर्खास्त करने के मामलों में केंद्र सरकार से आज जवाब तलब करते हुए कहा, यह गंभीर मसला है। प्रधान न्यायाधीश तीरथ सिंह ठाकुर की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने तत्कालीन राज्यपाल अजीज कुरैशी और वीरेन्द्र कटारिया की याचिकाओं पर केंद्र से चार सप्ताह के भीतर जवाब तलब किया। इस मामले में अब 28 मार्च को अगली सुनवाई होगी।
राज्यपालों की बर्खास्तगी पर सुप्रीम कोर्ट का केंद्र से जवाब तलब

केन्द्र में नरेंद्र मोदी की सरकार बनने के बाद राज्यपाल के पद से हटाए गए कुरैशी ने आरोप लगाया है कि तत्कालीन गृह सचिव अनिल गोस्वामी ने उन्हें इस्तीफा देने अथवा बर्खास्तगी का सामना करने की धमकी दी थी। सुनवाई के दौरान पीठ ने कहा, यह गंभीर मामला है और हम एक ऐसी रूपरेखा तैयार कर सकते हैं जिसमें इस तरह के उच्च सांविधानिक व्यक्तियों से संवाद स्थापित किया जाए। संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति एफएमआई कलीफुल्ला, न्यायमूर्ति ए के सीकरी, न्यायमूर्ति एस ए बोबडे और न्यायमूर्ति आर भानुमति शामिल हैं।

केंद्र सरकार का प्रतिनिधित्व अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी और दो बर्खास्त राज्यपालों का प्रतिनिधित्व वरिष्ठ अधिवक्ता विवेक तंखा कर रहे थे। सुनवाई के दौरान पीठ ने इस तथ्य को नोट किया कि गृह सचिव ने कुरैशी को फोन किया था जबकि कटारिया के मामले में गृह सचिव के निजी सचिव ने राज्यपाल को फोन किया था। न्यायालय ने गोस्वामी को भी नोटिस जारी किया है। शीर्ष अदालत ने संविधान के अनुच्छेद 156 (राज्यपाल के कार्यकाल की अवधि) की व्याख्या के लि, 21 अगस्त, 2014 को कुरैशी का मामला पांच सदस्यीय संविधान पीठ को सौंप दिया था। कटारिया की याचिका भी इसी के साथ सूचीबद्ध की गई थी क्योंकि इसमें भी समान मुद्दा उठाया गया था।

मोदी सरकार द्वारा बर्खास्त किये जाने के खिलाफ शीर्ष अदालत पहुंचने वाले कुरैशी पहले राज्यपाल थे। इनसे पहले सरकार ने दो अन्य राज्यपालों को भी बर्खास्त किया था। केंद्र में राजग के सत्ता में आने के बाद संप्रग के शासन में नियुक्त चार अन्य राज्यपालों ने इस्तीफा दे दिया था। कुरैशी ने अपनी याचिका में दावा किया था कि संविधान के अनुच्छेद 156 का पालन नहीं किया गया औेर गृह सचिव द्वारा राज्यपाल को धमकी देना असंवैधानिक है।

कुरैशी ने यह भी कहा था कि केंद्र और गृह सचिव से पूछा जाना चाहिए कि किसके इशारे पर उन्हें धमकी दी गई। याचिका में न्यायालय से अनुरोध किया गया कि ऐसे व्यक्तियों के खिलाफ सख्त टिप्पणी की जाए। कुरैशी को पांच साल के लिए राज्यपाल नियुक्त किया गया था और उन्होंने 15 मई, 2012 को पदभार ग्रहण किया था। उन्होंने याचिका में दावा किया था कि राजग के केन्द्र में सत्ता में आने के बाद गोस्वामी ने 30 जुलाई, 2014 को उन्हें फोन किया और कहा कि वह इस्तीफा दे दें। याचिका में यह भी कहा गया था कि उन्होंने यह भी स्पष्ट किया था कि यदि वह नहीं हटे तो उन्हें पद से हटा दिया जाएगा।

याचिका के अनुसार कुरैशी ने दो अगस्त, 2014 को राष्ट्रपति को गोपनीय संवाद के माध्यम से अपना स्पष्टीकरण दिया था और ऐसी ही सूचना गृह मंत्री को भी दी थी। इस संवाद की प्रतियां सीलबंद लिफाफे में न्यायालय को भी अवलोकनार्थ दी गई थीं। उन्होंने आरोप लगाया था कि गोस्वामी ने आठ अगस्त, 2014 को उन्हें दुबारा फोन किया और इस्तीफा देने के लिये उन पर दबाव डाला। कुरैशी से पहले राजग सरकार ने मिजोरम की राज्यपाल कमला बेनीवाल को बर्खास्त किया था।

समझा जाता है कि गोस्वामी ने संप्रग के कार्यकाल में नियुक्त कुछ राज्यपालों को फोन करके उन्हें पद से इस्तीफा देने के लिए कहा था। इसके बाद पश्चिम बंगाल के राज्यपाल एम के नारायणन, नगालैंड के राज्यपाल अश्विनी कुमार, उप्र के राज्यपाल बी एल जोशी और छत्तीसगढ के राज्यपाल शेखर दत्त ने अपने पदों से इस्तीफा दे दिया था।

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