स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे अब धान की रोपनी के समय अपने अभिभावकों की मदद नहीं कर सकेंगे। झारखण्ड के संथालपरगना इलाके में 90 सालों से यह व्यवस्था चल रही थी। प्रारंभिक स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे गरमी की छुट्टी में क्लास करते थे, लेकिन बरसात के दौरान धान की रोपनी के समय अवकाश ले लेते थे। मां-बाप को धान की रोपनी में मदद करते थे। उनका हाथ बटाते थे।
दरअसल बारिश पर निर्भर रहने वाली खेती के कारण बड़े इलाके में किसान प्रकृति पर ही निर्भर करते थे। ऐसे में कायदे से खेती कर सकें इसलिए बारिश के मौसम में रोपनी के समय बच्चों को अवकाश दिए जाने की व्यवस्था थी। आदिवासी बहुल संताल परगना के सभी जिलों में यह व्यवस्था 1930 से लागू थी। आज के दौर में जब क्लास भी ऑनलाइन हो रही है ऐसे में धान की रोपनी के लिए स्कूली बच्चों को अवकाश की बात आश्चर्यजनक लगती है। इस तरह का अवकाश झारखण्ड के अन्य जिलों में नहीं मिलता था। संताल परगना में भी सिर्फ ग्रामीण इलाकों में यह छुट्टी मिलती थी।
शिक्षा विभाग ने इस धनरोपनी अवकाश को वापस ले लिया है। प्राथमिक शिक्षा निदेशालय ने इस संबंध में आदेश जारी कर दिया है। निदेशालय द्वारा जारी अवकाश की सूची के अनुसार इस साल बच्चों को सिर्फ गरमी की छुट्टी आम स्कूलों की तरह मिलेगी।