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जस्टिस कर्णन को सुप्रीम कोर्ट ने दी छह महीने जेल की सजा

-फैसले पर तत्काल अमल हो और जस्टिस कर्णन की अदालत के किसी फैसले की खबर न छापे मीडियाः सर्वोच्च अदालत
जस्टिस कर्णन को सुप्रीम कोर्ट ने दी छह महीने जेल की सजा

प्रधान न्यायाधीश जे एस खेहर की अध्यक्षता वाली सात न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ ने कहा, हम सभी का सर्वसम्मति से यह मानना है कि न्यायाधीश सी.एस. कर्णन ने न्यायालय की अवमानना की, न्यायपालिका की और उसकी प्रक्रिया की अवमानना की।

न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति जे चेलमेश्वर, न्यायमूर्ति रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति एम बी लोकुर, न्यायमूर्ति पी सी घोष और न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ की पीठ ने कहा कि वह न्यायाधीश कर्णन को छह माह की जेल की सजा सुनाए जाने से संतुष्ट है। पीठ ने कहा, सजा का पालन किया जाए और उन्हें तुरंत हिरासत में लिया जाए।

अपनी तरह का यह पहला मामला है कि जब अवमानना के आरोपों पर उच्चतम न्यायालय द्वारा उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को जेल भेजा जा रहा है। पीठ ने न्यायाधीश कर्णन द्वारा आगे कोई आदेश पारित किए जाने की स्थिति में प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक दोनों मीडिया को आदेश की सामग्री को प्रकाशित करने से रोक दिया है।

गौरतलब है कि न्यायमूर्ति कर्णन ने सोमवार को दलित उत्पीड़न के आरोप में सुप्रीम कोर्ट के सात जजों प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति जे.एस. खेहर, जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस जे चेलमेश्वर, जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस मदन बी लोकुर, जस्टिस पिनाकी चंद्र घोष और जस्टिस कुरियन जोसफ को पांच साल के सश्रम कारावास की सजा सुनाई थी। हालांकि सुप्रीम कोर्ट पहले ही उनसे किसी भी मामले की सुनवाई करने का अधिकार छीन चुका था। उनके पास सुनवाई के लिए लंबित सारे मामले कलकत्ता हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने वापस ले लिए थे। सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस कर्णन की मानसिक स्थिति की जांच करने का भी आदेश दिया था। सुप्रीम कोर्ट की इस सात सदस्यीय बेंच ने जस्टिस कर्णन के खिलाफ स्वत: संज्ञान लेते हुए अवमानना कार्यवाही शुरू की थी। यह कार्यवाही तब शुरू हुई थी जब जस्टिस कर्णन ने सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के 20 वर्तमान जजों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे। उन्होंने सीबीआई को इसकी जांच सौंपते हुए जांच रिपोर्ट सीधे संसद को सौँपने का आदेश दिया था। जस्टिस कर्णन के आरोपों को देश के प्रधान न्यायाधीश ने अदालत की अवमानना बताते हुए मामले की सुनवाई के लिए सात सदस्यीय संविधान पीठ का गठन किया था क्योंकि हाईकोर्ट के जज को हटाने का अधिकार सिर्फ देश की संसद को है।

गौरतलब है कि पहले जस्टिस कर्णन और अब सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश से संविधानिक असमंजस की स्थिति बन सकती है। जस्टिस कर्णन के आदेश पर रोक लगाने का अधिकार तो सुप्रीम कोर्ट के पास या हाईकोर्ट के ही दो सदस्यीय पीठ के पास है मगर सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद अब जस्टिस कर्णन को जेल जाना ही होगा क्योंकि फैसले पर तत्काल अमल के आदेश दिए गए हैं। ऐसे में सवाल यह उठता है कि कोई सजायाफ्ता शख्स जज के पद पर कैसे रह सकता है? (एजेंसी इनपुट)

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