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राज्यों को मिल गया कैदियों की रिहाई का सशर्त अधिकार

उच्चतम न्यायालय ने उम्र कैद की सजा पाए कैदियों की सजा माफ कर उन्हें रिहा करने के अधिकार के इस्तेमाल की राज्य सरकारों को इस शर्त के साथ अनुमति प्रदान कर दी कि यह उन मामलों में लागू नहीं होगा जिनकी जांच सीबीआई जैसी केंद्रीय एजेंसियों ने की है और जिन्हें टाडा जैसे केंद्रीय कानून के तहत सजा मिली है।
राज्यों को मिल गया कैदियों की रिहाई का सशर्त अधिकार

राज्य सरकारों के इस अधिकार पर एक साल पहले लगाई गई रोक हटाते हुए प्रधान न्यायाधीश एच.एल. दत्तू की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने कहा कि यह छूट उन मामलों में भी लागू नहीं होगी जहां दोषी को बलात्कार के यौन अपराधों और हत्या के अपराध में उम्र कैद की सजा दी गई है। संविधान पीठ ने स्पष्ट किया कि यह अंतरिम आदेश राजीव गांधी हत्याकांड पर लागू नहीं होगा जिसमे सात दोषियों की सजा माफ कर उन्हें रिहा करने के तमिलनाडु सरकार के फैसले के खिलाफ केंद्र सरकार की याचिका पर विचार हो रहा है। संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति एफएमआई कलीफुल्ला, न्यायमूर्ति पिनाकी चन्द्र घोष, न्यायमूर्ति अभय एम सप्रे और न्यायमूर्ति यू.यू. ललित शामिल हैं।

संविधान पीठ ने कहा, हम यह स्पष्ट करते हैं कि हमारा आदेश इस मामले (राजीव गांधी हत्याकांड प्रकरण) में लागू नहीं होगा। हमारा अंतरिम आदेश उस अंतिम आदेश के दायरे में होगा जो हम इस मामले में पारित करेंगे। शीर्ष अदालत ने अपने नौ जुलाई, 2014 के आदेश में संशोधन किया। इसी आदेश के माध्यम से न्यायालय ने तमिलनाडु सरकार के फैसले से उठे विवाद के आलोक में सभी राज्यों को उम्र कैद की सजा पाए कैदियों की सजा माफ कर उन्हें जेल से रिहा करने के अधिकार पर रोक लगाई थी।

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