उन्होंने कहा कि भारत का प्रेस सबसे स्वतंत्र है। भारतीय प्रेस ने कई कठिनाइयां देखी हैं और उनका मुकाबला किया है। पिछले 10 वर्षों में मीडिया को प्रताड़ित करने के खूब प्रयास किए गए हैं। इसके बावजूद प्रेस अपना काम करता रहा है। उन्होंने कहा कि भारतीय पत्रकारिता श्रेष्ठ काम कर रही है- भारतीय मीडिया यह दुनिया को दिखाएगी। प्रेस से संबंधित कानूनों के संदर्भ में डॉ. रॉय ने कहा कि अक्सर आत्मनियंत्रण लागू नहीं हो पाता। इसलिए कानूनों को सख्ती से लागू किया जाना जरूरी है।
आयोजन में जस्टिस वी. एन. खरे ने लाल बहादुर शास्त्री को याद करते हुए कहा कि 1958 में वे नौकरी की सिफारिश कराने उनके पास गए थे। तब शास्त्री जी ने उन्हें कानून के क्षेत्र में काम करने की सलाह दी थी। उसी का नतीजा है कि वे देश के चीफ जस्टिस के पद तक पहुंचे।
पूर्व केन्द्रीय मंत्री अनिल शास्त्री इस संस्थान के अध्यक्ष हैं। उन्होंने बताया कि इस पुरस्कार के लिए 12 सदस्यों की चयन समिति बनाई गई है। इस पुरस्कार का राजनीति से कोई संबंध नहीं है। प्रणव रॉय ने भी अपने भाषण में कहा कि पुरस्कार का राजनीति से कोई संबंध नहीं है, इसलिए वे इसे स्वीकार कर रहे हैं। डॉ. प्रणव रॉय के पहले डॉ. ए. शिवातनु पिल्लई, डॉ. आर. ए. बड़वे, टेसी थॉमस, प्रोफेसर यशपाल, अरुणा राय, सुनील भारती मित्तल, ई. श्रीधरन, प्रोफेसर सी. के. प्रह्लाद, एन. आर. नारायण मूर्ति समेत कई जानी-मानी हस्तियों को यह पुरस्कार दिया जा चुका है।