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कमी नहीं, किसानों की आत्महत्या होनी ही नहीं चाहिएः अदालत

देश में किसानों की आत्महत्या के मामलों में व्यापक कमी आने संबंधी केंद्र सरकार के दावों से उच्चतम न्यायालय आज संतुष्ट नहीं हुआ और उसने कहा कि एक भी ऐसा मामला नहीं होना चाहिए। साथ ही न्यायालय ने आठ साल पुरानी कृषि नीति पर फिर से गौर करने के बारे में केंद्र से जवाब मांगा है।
कमी नहीं, किसानों की आत्महत्या होनी ही नहीं चाहिएः अदालत

न्यायमूर्ति मदन बी लोकूर और न्यायमूर्ति उदय यू ललित की सामाजिक न्याय पीठ ने कहा, संख्या में (आत्महत्या) गिरावट पर्याप्त नहीं है, देश में एक भी किसान को आत्महत्या नहीं करनी चाहिए। अतिरिक्त सालिसीटर जनरल पिंकी आनंद ने जब यह कहा कि किसानों के आत्महत्या करने की दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं में काफी कमी आई है तो न्यायाधीशों ने कहा कि ऐसी घटनाएं होनी ही नहीं चाहिए।

न्यायालय ने यह भी कहा कि ये आत्महत्या 2007 में किसानों के लिए बनी राष्ट्रीय नीति में समाहित खामियों का परिणाम हो सकती हैं। इसलिए इस पर फिर से गौर करना चाहिए। न्यायालय ने किसानों की समस्याओं पर विचार के लिए प्रख्यात कृषि वैज्ञानिक एम.एस. स्वामीनाथन की अध्यक्षता में होने वाली सालाना बैठक पर भी सवाल उठाए और कहा कि इस तरह का मंथन करने की प्रक्रिया जल्दी-जल्दी होनी चाहिए। न्यायालय किसानों को आत्महत्या करने से रोकने के लिए उचित कदम उठाने के संबंध में दायर जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी। न्यायालय ने केंद्र सरकार को इस नीति पर फिर से गौर करने के बारे में स्थिति स्पष्ट करने के लिए छह सप्ताह के भीतर हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया।

न्यायाधीशों ने कहा, हो सकता है कि किसानों के लिए राष्ट्रीय नीति की वजह से किसान आत्महत्या कर रहे हैं। आप (केंद्र) छह सप्ताह के भीतर हलफनामा दाखिल करें कि क्या इस नीति पर, जो आठ साल पुरानी है, फिर से गौर करने की आवश्यकता है। इससे पहले, मार्च में कृषि मंत्रालय ने एक हलफनामा दाखिल कर दावा किया था कि 2009 से आत्महत्या करने वाले किसानों की संख्या में कमी आई है।

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