देश की सर्वोच्च न्यायालय ने अपने कामकाज में अब मां के नाम को जगह दे दी है। अब अगर आप सुप्रीम कोर्ट में प्रवेश पास बनाने जाएं तो सिर्फ मां के नाम के साथ आपको अंदर प्रवेश मिल जाएगा। ये सोच कर भी बहुतों को हैरानी होगी कि मां को एक स्वाभाविक गार्जियन मानने जैसे फैसले सुनाने वाली इस अदालत के अपने कामकाज में मां के नाम की जगह नहीं थी।
ये हुआ कैसे? ये अपने आप नहीं हुआ। ठीक उसी तरह से जैसे बाकी महिला पक्षधर कदम बिना महिलाओं के संगठित प्रयासों के नहीं होते, वैसे ही सुप्रीम कोर्ट को इस लैंगिक भेदभाव को दूर करने के लिए महिला अधिकारों के लिए कटिबद्ध एक संस्था लायर्स कलेक्टिव हस्तक्षेप करना पड़ा।
लायर्स कलेक्टिव की गायत्री शर्मा ने बताया कि मां के नाम के प्रति भेदभाव रखने वाले सुप्रीम कोर्ट के फोटो पास के खिलाफ उन्होंने अप्रैल में पत्र लिखा था। हाल ही में उन्हें पता चला कि सुप्रीम कोर्ट ने उनके आवेदन पर गौर फरमाया और मां का नाम फोटो प्रवेश पत्र में डाल दिया गया है। इस संवाददाता ने भी कुछ समय पहले सुप्रीम कोर्ट में प्रवेश पत्र के समय यही आपत्ति दर्ज कराई थी कि इसमें मां का नाम होना चाहिए।
इस पूरी कोशिश के बारे में वरिष्ठ अधिवक्ता इंद्रा जयसिंह ने आउटलुक को बताया कि लायर्स कलेक्टिव के साथ मिलकर उन्होंने भी सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश के सामने एक महीने पहले आधिकारिक तौर पर अपनी बात रखी थी। उन्होंने कहा कि महिलाओं के प्रति बराबरी की सोच के लिए हर कदम पर लड़ाई करनी पड़ती है। बहुत लोगों को यह सब छोटी-छोटी बाते लगती हैं। वे कहते हैं पिता के नाम लिखने में क्या दिक्कत है। हम कहते हैं मां का नाम लिखने में क्या दिक्कत है। वह भी तब जब आज के दौर में एकल मां का कानूनी दर्जा है।