केंद्र और राज्य सरकारों को सूचना आयोगों में तीन महीने के भीतर सूचना आयुक्तों की नियुक्ति करनी पड़ेगी। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को यह आदेश दिया। कोर्ट ने कहा कि तीन महीने की अवधि आज, यानी सोमवार से शुरू होगी। कोर्ट ने यह भी कहा कि सूचना के अधिकार कानून का दुरुपयोग रोकने के लिए दिशानिर्देश बनाने की जरूरत है। गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट के बार-बार कहने के बाद ही केंद्र सरकार ने इस साल मार्च के अंत में लोकपाल की नियुक्ति की थी। हालांकि नियुक्ति के बाद अभी तक लोकपाल को स्थायी कार्यालय तक मुहैया नहीं कराया गया है।
कोर्ट ने 15 फरवरी को ही दिया था फैसला
मुख्य न्यायाधीश जस्टिस एस.ए. बोबडे की अध्यक्षता वाली बेंच ने वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण की इस बात को गंभीरता से लिया कि सुप्रीम कोर्ट के 15 फरवरी 2019 के फैसले के बावजूद केंद्रीय सूचना आयोग और राज्य सूचना आयोगों में अभी तक अनेक सूचना आयुक्तों की नियुक्ति नहीं हुई है। बेंच में जस्टिस बी.आर. गवई और जस्टिस सूर्यकांत भी थे।
वेबसाइट पर दो हफ्ते में सर्च कमेटी के सदस्यों के नाम डालें
बेंच ने केंद्र सरकार के अधिकारियों को यह निर्देश भी दिया कि सरकार की वेबसाइट पर वे दो हफ्ते के भीतर सर्च कमेटी के सदस्यों के नाम डालें। सर्च कमेटी को ही केंद्रीय सूचना आयोग के आयुक्तों का चयन करना है। सरकार ने कोर्ट को बताया कि 14 दिसंबर को सर्च कमेटी का गठन किया गया है।
कानून का दुरुपयोग रोकने के लिए बनें दिशानिर्देश
सुनवाई के दौरान बेंच ने सूचना के अधिकार कानून के दुरुपयोग पर भी चिंता जताई। खास कर उन लोगों के द्वारा जिनका मांगी गई सूचना से कोई लेना-देना नहीं होता है। कोर्ट ने कहा कि ये लोग किसी के साथ ब्लैकमेलिंग और वसूली भी कर सकते हैं। बेंच ने कहा कि हम आरटीआई कानून के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन हमें लगता है कि इसके नियमन के लिए कुछ दिशानिर्देश जरूरी हैं। यह असीमित अधिकार नहीं हो सकता है। बेंच अंजलि भारद्वाज की याचिका पर सुनवाई कर रहा था। इसमें कोर्ट से सरकार को तय समय में और पारदर्शी तरीके से सूचना आयुक्तों की नियुक्ति करने की मांग की गई थी।