प्रधान न्यायाधीश एच.एल. दत्तू और न्यायमूर्ति अरूण मिश्रा की खंडपीठ ने एनजीटी का आदेश निरस्त करने के लिए एक वकील की याचिका खारिज करते हुए कहा, हमे उसे (अधिकरण) हतोत्साहित नहीं बल्कि उसका सहयोग करना चाहिए।
न्यायाधीशों ने कहा, राष्ट्रीय हरित अधिकरण तो सिफ सांविधानिक अदालतों (उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों) द्वारा दिए गए आदेशों को ही दोहरा रहा है।
राष्ट्रीय हरित अधिकरण ने पिछले साल 26 नवंबर को अपने आदेश में कहा था कि पेट्रोल और डीजल से चलने वाले 15 साल से अधिक पुराने मोटर वाहनों को सड़कों पर चलने की अनुमति नहीं दी जाएगी और ऐसे वाहनों को मोटर वाहन कानून के प्रावधानों के तहत जब्त किया जाएगा।
साथ ही 15 साल से अधिक पुराने वाहनों को किसी भी सार्वजनिक स्थान पर खड़ा करने की अनुमति भी नहीं होगी और पुलिस उन्हें कानूनी प्रावधानों के अनुसार उठाएगी और उनका चालान करेगी। अधिकरण ने यह भी कहा था कि यह निर्देश सभी वाहनों पर लागू होगा और किसी भी वर्ग के वाहन को इससे छूट नहीं होगी।
वकील विशाल श्रीपति जोगदंड ने इस आदेश को विभिन्न आधारों पर शीर्ष अदालत में चुनौती दी थी। याचिका में यह भी कहा गया था कि हरित अधिकरण को जनहित वाली प्रकृति के मामलों की सुनवाई का अधिकार नहीं है। याचिकाकर्ता ने यह भी दलील दी कि 1997-98 से वाहनों में सीएनजी ईंधन के प्रयोग से भी वायु प्रदूषण कम करने में मदद नहीं मिली। इसलिए वायु प्रदूषण के कारणों का पता लगाने के लिए अध्ययन की आवश्यकता है।
लेकिन न्यायालय इस तरह की दलीलों से संतुष्ट नहीं हुआ और उसने संक्षिप्त सुनवाई के बाद याचिका खारिज कर दी। गौरतलब है कि एनजीटी ने अपने एक हालिया आदेश में दिल्ली में 10 वर्ष पुराने डीजल वाहनों के परिचालन पर भी प्रतिबंध लगा दिया था मगर इस आदेश पर बाद में दो सप्ताह की रोक लगा दी थी।