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अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने मध्यस्थता पैनल से 18 जुलाई तक मांगी रिपोर्ट, कहा- इसके बाद शुरू करेंगे सुनवाई

  अयोध्या भूमि विवाद मामले में सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि मध्यस्थता पैनल 18 जुलाई तक अपनी...
अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने मध्यस्थता पैनल से 18 जुलाई तक मांगी रिपोर्ट, कहा- इसके बाद शुरू करेंगे सुनवाई

अयोध्या भूमि विवाद मामले में सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि मध्यस्थता पैनल 18 जुलाई तक अपनी रिपोर्ट दे। इसके बाद बेंच सुनवाई शुरू करेगी। अयोध्या विवाद में एक पक्षकार ने याचिका दायर कर अदालत से जल्द सुनवाई की मांग की थी।

चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता में पीठ ने पक्षकार गोपाल सिंह विशारद की याचिका पर सुनवाई की। याचिकाकर्ता ने मंगलवार को कहा था कि पहले दौर की मध्यस्थता में कोई खास प्रगति नहीं हुई है।

मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने शीर्ष अदालत के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) एफएमआई कलीफुल्ला से अनुरोध किया कि वह तीन सदस्यीय मध्यस्थता पैनल की रिपोर्ट 18 जुलाई तक प्रस्तुत करें और कहा कि अदालत आगे के आदेश उसी तारीख को पारित करेगी।

पीठ ने कहा कि नवीनतम स्थिति रिपोर्ट को खारिज करने के बाद, अगर यह महसूस किया कि मध्यस्थता प्रक्रिया समाप्त नहीं होनी चाहिए, तो मुख्य अयोध्या विवाद मामले की सुनवाई शीर्ष अदालत द्वारा 25 जुलाई से रोजाना की जाएगी।

बता दें कि प्रारंभिक सुनवाई के लिए एक आवेदन मूल वादी गोपाल सिंह विशारद ने दायर किया था जिसमें कहा गया था कि शीर्ष अदालत ने इस मुद्दे के निपटारे के लिए मध्यस्थता में कोई प्रगति नहीं की है।

पीठ ने इस मामले पर गौर करने के लिए सहमति जताते हुए वादी को इस आशय का आवश्यक आवेदन दायर करने को कहा था।

अदालत ने 8 मार्च को एक तीन सदस्यीय समिति का गठन किया था, जिसकी अध्यक्षता सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश फकीर मोहम्मद इब्राहिम कलीफुल्ला ने की थी, ताकि भूमि विवाद के लिए एक सौहार्दपूर्ण समझौते की संभावनाएं तलाश सकें। इस पैनल में श्री श्री रविशंकर और मद्रास उच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता श्रीराम पंचू भी शामिल थे।

अदालत ने विचार व्यक्त किया था कि इसकी सफलता सुनिश्चित करने के लिए कार्यवाही को "अत्यंत गोपनीयता" के साथ आयोजित किया जाना चाहिए। 10 मई को अदालत ने विवाद का सौहार्दपूर्ण समाधान खोजने के लिए मध्यस्थता पैनल को 15 अगस्त तक का समय दिया था।

मध्यस्थता में अभी तक कोई ठोस प्रस्ताव नहीं निकला

विशारद ने अर्जी में कहा है कि करीब पांच महीने की मध्यस्थता में अभी तक कोई ठोस प्रस्ताव नहीं निकला है न ही उसे पक्षकारों के बीच कोई समझौता होने की उम्मीद लगती है। मध्यस्थता के दौरान जो सुझाव आए वे इसकी प्रक्रिया के दायरे में भी नहीं आते थे और राजनीतिक प्रकृति के थे। इससे लगता है कि मध्यस्थता से कोई नतीजा नहीं निकलने वाला। मामले का एकमात्र हल कोर्ट से ही हो सकता है। ऐसे में कोर्ट मध्यस्थता समाप्त कर अपीलों की योग्यता पर शीघ्र सुनवाई करे।

‘15 अगस्त तक का समय देने में क्या नुकसान है?’

गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट का मध्यस्थता के प्रयासों पर जोर है। पीठ ने कहा था कि यदि मध्यस्थता करने वाले परिणाम को लेकर आशान्वित हैं और 15 अगस्त तक का समय चाहते हैं तो समय देने में क्या नुकसान है? यह मुद्दा सालों से लंबित है। इसके लिए समय क्यों नहीं देना चाहिए?

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