उच्च शिक्षा में दलितों छात्रों पर अत्याचार, उन पर होने वाले जातिगत भेदभाव के मामले लगातार सामने आ रहे हैं। ऐसे में दिल्ली के अखिल भारतीय आर्युविज्ञान संस्थान (एम्स) में एक दलित अध्यापक को बर्खास्त करने का मामला तूल पड़कता जा रहा है। बर्खास्त किए डॉक्टर कुलदीप कुमार ने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जे.पी. नड्डा को पत्र लिखकर इस बर्खास्तगी को वापस लेने की मांग की है और इसे जातिगत उत्पीड़न बताया है। डॉ. कुलदीप कुमार को बतमीजी करने के आरोप में बर्खास्त किया गया है। एम्स के इतिहास में बतमीजी के आरोप में बर्खास्त होने वाले डॉ. कुलदीप कुमार पहले फैक्लटी सदस्य हैं।
इस मामले पर एम्स पर डॉ. कुलदीप कुमार कुछ अन्य साथियों के साथ धरने पर भी बैठे हुए हैं। आज उनके परिजन भी इसमें शामिल हुए और उन्होंने कहा कि चूंकि डॉक्टर कुलदीप एक आत्मस्वाभिमानी दलित हैं, इसलिए उनके विभागाध्यक्ष प्रो. एस.के शर्मा ने उनके खिलाफ यह झूठा मामला बनाया है। डॉ. कुलदीप का कहना है कि वह इस अन्यायपूर्ण बर्खास्तगी की वजह से गहरी पीड़ा में है और उनका पूरा परिवार बिखराव के कगार पर है। अगर जल्द से जल्द इसे वापस नहीं लिया गया तो इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं। मेडिसिन विभाग में एसिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. कुलदीप कुमार का आरोप है कि जब उन्होंने जून 2014 में एम्स में नौकरी करना शुरू किया था, तभी से उन्हें लगा था कि उनके विभागाध्यक्ष प्रो. एस.के. शर्मा उन्हें दलित होने की वजह से पसंद नहीं करते। उन्होंने अपने पत्र में यहां तक लिखा है कि मैं एक मनोरोग से पीड़ित हूं। डॉ. कुलदीप कुमार का आरोप है कि उन्हें सीधे-सीधे दलित होने की वजह से सताया जा रहा है।
हैदराबाद में दलित छात्र रोहित वेमुला की आत्महत्या के बाद लगातार उच्च शिक्षा में दलित छात्रों के साथ दुर्व्यवहार की घटनाएं प्रमुखता पा रही है। उड़ीसा में पढ़ने वाले बिहार के 60 दलित छात्रों ने भी भेदभाव से तंग आकर आत्महत्या करने की धमकी दी थी। दिल्ली के भारतीय जनसंचार संस्थान (आईआईएमसी) में भी रोहित वेमुला की आत्महत्या के बाद फेसबुक पर गैर-दलित छात्रों द्वारा जातिगत भेदभाव वाली अभद्र भाषा में पोस्ट लिखे जाने का खूब विरोध हुआ और कैम्पस में जबर्दस्त जातिगत ध्रुवीकरण दिखाई दिया। ऐसे अनगिनत मामले लगातार सामने आ रहे हैं और उनसे साफ है कि अब दलित समुदाय किसी भी तरह के अत्याचर पर चुप बैठने वाले नहीं है। साथ ही साथ उनके प्रति समाज या संस्थानों में वैमन्य कम होने की बजाय बढ़ता ही जा रहा है। एम्स में दलित अध्यापक की बर्खास्तगी इसी दुर्व्यहार की मिसाल है। छात्र ही नहीं अध्यापकों पर भी जातिगत भेदभाव समान रूप से डंडा चलाता है।