कोरोना वायरस के चलते लगाए गए लॉकडाउन के कारण इस समय देश में सब ठप पड़ा है। ऐसी परिस्थिति में महानगरों में रोजगार कमाने वाले मजदूर किसी भी तरह से घर लौटना चाहते हैं, क्योंकि लॉकडाउन ने उनकी रोजी रोटी छीन ली है। वो हर हाल में अपने गांव घर लौटने की कोशिश में हैं, ताकि उन्हें कम से कम दो वक्त का खाना नसीब हो सके। रोजाना कमाकर अपने परिवार का भरण पोषण करने वाले कई मजदूर लॉकडाउन के कारण ठप पड़े कामकाज से इन दिनों अपने परिवार को दो वक्त की रोटी भी नहीं खिला पा रहे हैं। आलम यह है कि इस लॉकडाउन की स्थिति में सबकुछ ठहर जाने के कारण यानि काम धंधा बंद होने के कारण कोई मजदूर भूखा मर रहा है तो कोई आर्थिक तंगी और दो वक्त की रोटी का जुगाड़ नहीं कर पाने के कारण आत्महत्या का सहारा ले रहा है। वहीं, कोई समय से अस्पताल न पहुंच पाने के कारण अपनी जान गंवा बैठा है। लॉकडाउन के ऐलान के दौरान किए गए सरकारी दावे और जनता तक सारी मूलभूत सुविधाओं को पहुंचाने का वादा भी तब खोखला साबित होता नजर आता है, जब राशन की दुकान में लगातार दो दिन तक लाइन में लगी रहने वाली महिला मौत के मुंह में चली जाती है।
लॉकडाउन के दौरान मौत की कई ऐसी ही दर्दनाक घटनाएं हैं जिसने ये बयां कर दिया है कि कैसे इस ऐतिहासिक संकट में देश का गरीब लाचार और बेबस है।
तेलंगाना से अपने घर लौट रही 12 साल की बच्ची ने रास्ते में तोड़ा दम
ताजा मामला छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले का है, जहां के आदेड गांव में रहने वाली 12 वर्षीय जमलो मड़कामी कुछ महीने पहले रोजगार के तलाश में तेलंगाना के पेरुर गांव गई हुई थी, लेकिन लॉकडाउन के चलते रोजगार छिन गया था। कुछ दिन इंतजार के बाद बच्ची अन्य 11 लोगों के साथ अपने घर के लिए निकल गई। लॉकडाउन के चलते राज्यों की सीमा बंद थी इसलिए बच्ची पैदल ही जंगल के रास्ते 114 किलोमीटर के सफर पर निकल गई, लेकिन 3 दिनों तक लागातार पैदल चलने के बाद गर्मी और भूख प्यास की वजह से बच्ची ने रास्ते मे ही दम तोड़ दिया।
छत्तीसगढ़ और तेलंगाना के बॉर्डर पर बसे बीजापुर जिले से हजारों लोग मिर्ची तोड़ने जैसे रोजगार की तलाश में तेलंगाना जाते हैं। इन्ही लोगों में जमलो मड़कामी भी शामिल थी। लॉकडाउन के चलते रोजगार खत्म हो चुका था और दूसरे चरण का लॉकडाउन लगने के बाद 15 अप्रैल को तेलंगाना से ये मासूम अपने साथियों के साथ बीजापुर के लिए पैदल ही रवाना हो गई। ट्रांसपोर्ट बंद थे साथ ही राज्यों की सीमा भी सील थी। इसलिए बच्ची ने 3 दिन लगातार चलकर जंगल के रास्ते करीब 100 किलोमीटर का सफर तय किया। इस दौरान बीहड़ों में तेज गर्मी और भूख-प्यास की वजह से बीजापुर के मोदकपाल गांव पहुंची बच्ची ने 18 अप्रैल को दम तोड़ दिया। बच्ची की मौत जहां हुई वहां से 14 किलोमीटर की दूरी पर ही उसका घर था।
घर पहुंचने से पहले ही रास्ते में हुई शख्स की मौत
ऐसी ही एक घटना मध्य प्रदेश के मुरैना जिले की है। जब लॉकडाउन के चलते रोजी-रोटी छिनने के बाद दिल्ली से मध्य प्रदेश के मुरैना अपने घर जाने के लिए एक शख्स मजबूरी में पैदल ही निकल गया था, लेकिन वो घर पहुंचते इससे पहले ही रास्ते में उनकी मौत हो गई।
दिल्ली के एक प्राइवेट रेस्तरां में होम डिलिवरी मैन के तौर पर काम करने वाले रणवीर की मौत आगरा में 200 किलोमीटर का सफर तय करने के बाद हुई। तीन बच्चों के पिता रणवीर दिल्ली से पैदल ही मध्य प्रदेश जा रहे थे। पुलिस के अनुसार रणवीर पैदल चलते-चलते नेशनल हाइवे-2 के कैलाश मोड़ पर बेहोश होकर गिर पड़े।
सिकंदरा पुलिस स्टेशन के हाउस ऑफिसर अरविंद कुमार ने बताया कि रणवीर को सड़क पर बेहोश देखकर एक स्थानीय दुकानदार संजय गुप्ता उनकी ओर दौड़े। अधिकारी ने बताया, ‘स्थानीय दुकानदार ने रणवीर को दरी पर लिटाया और उनके लिए चाय-बिस्किट लेकर आए लेकिन रणवीर ने सीने में दर्द की शिकायत की और अपने साले को फोन करके अपनी हालत के बारे में बताया। शाम साढ़े छह बजे के करीब उनकी मौत हो गई। बाद में पुलिस को इसकी जानकारी दी गई।"
बदायूं में राशन के लिए लाइन में खड़ी एक महिला की मौत
दूसरा मामला उत्तर प्रदेश के बदायूं जिला का है, जहां सरकारी राशन की दुकान पर राशन के लिए लाइन में खड़ी एक महिला की मौत हो गई। महिला दो दिन से राशन के लिए करीब डेढ़ किलोमीटर दूर चलकर सरकारी राशन की दुकान पर आ रही थी। बदायूं जिले में सालारपुर ब्लॉक के प्रहलादपुर गांव की शमीम बानो शुक्रवार यानी 17 अप्रैल को राशन के लिए लाइन में लगी थीं। शमीम बानो के पति दिल्ली में किसी प्राइवेट कंपनी में नौकरी करते हैं जो लॉकडाउन के चलते यहीं फंसे हुए हैं।
शमीम बानो एक दिन पहले भी राशन की लाइन में लगी थीं लेकिन तब उनका नंबर नहीं आया था, जिसके बाद दूसरे दिन यानी शुक्रवार को भी वो सुबह आठ बजे से ही लाइन में लगी थीं। करीब 11 बजे तेज धूप में वो अचानक बेहोश होकर गिर गईं। वहां मौजूद लोगों ने घर वालों को सूचना दी, उन्हें अस्पताल ले जाया गया लेकिन रास्ते में ही उनकी मौत हो गई।
एंबुलेंस नहीं मिलने से 3 साल के बच्चे ने मां की गोद में तोड़ा दम
वहीं, एक मामला बिहार के जहानाबाद जिले का है, जहां सरकारी अस्पताल में एंबुलेंस इमरजेंसी हालात में भी उपलब्ध नहीं हो पाई, जिसके कारण एक गरीब दंपति को अपना तीन साल का बच्चा खोना पड़ा। गरीब दंपत्ति अपने 3 साल के बच्चे की तबीयत खराब होने पर सबसे पहले जहानाबाद के सदर अस्पताल में उसे लेकर गया। जहां डॉक्टरों ने बच्चे की गंभीर हालत को देखते हुए जहानाबाद से पटना के सरकारी हॉस्पिटल में रेफर कर दिया।
जहानाबाद के सरकारी अस्पताल में किसी ने भी एम्बुलेंस उपलब्ध कराने में इनकी मदद नहीं की। आखिरकार दर-ब-दर भटकने के बाद मां बच्चे को गोद में लेकर ही दौड़ती रही। मासूम बच्चे के पिता ने कई लोगों से मदद करने की अपील की लेकिन किसी ने भी मदद के लिए हाथ आगे नहीं बढ़ाया। बच्चे की हालत और भी गंभीर होती गई, आखिरकार बच्चे ने अपनी मां की गोद में ही दम तोड़ दिया।
नौकरी गंवाने के कारण शख्स ने फांसी लगाकर की खुदकुशी
बिहार का ही एक दूसरा मामला है जहां लॉकडाउन के कारण नौकरी गंवाने वाले शख्स ने फांसी लगाकर खुदकुशी कर ली। दरअसल, लॉकडाउन के कारण नौकरी छूटने से परेशान युवक ने फांसी के फंदे से झूलकर अपनी जान गंवा दी। घटना पटना के रूपसपुर थाना क्षेत्र की है जहां के जानकी कुटीर अपार्टमेंट में शख्स ने इस घटना को अंजाम दिया। मृतक की पहचान धनंजय कुमार (35) के रूप में हुई है।
मृतक की पत्नी के मुताबिक, कोरोना वायरस के संक्रमण को देखते हुए लगाए गए लॉकडाउन की वजह से उसके पति की नौकरी चली गई थी। जॉब न रहने के कारण वह काफी परेशान रहा करता था। तनाव के कारण खाना-पीना भी कम हो गया था। सोमवार की दोपहर यानी 20 अप्रैल को जब वे अपने कमरे से काफी देर तक नहीं निकले तो शक हुआ। काफी दरवाजा खटखटाया पर कोई आवाज नहीं आई। मृतक की पत्नी के अनुसार जब सास, ससुर के साथ दरवाजा तोड़ा तो सीलिंग में फंदा फंसाकर पति लटके हुए थे, पर उनकी सांस चल रही थी। आनन-फानन में उन्हें इलाज के लिए पीएमसीएच में भर्ती कराया गया। जहां चिकित्सकों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया।
मोबाइल बेचकर भी नहीं भर पाया परिवार का पेट तो कर ली आत्महत्या
ऐसा ही एक मामला राजधानी दिल्ली से सटे गुरुग्राम का है, जहां एक मजबूर और साधनहीन मजदूर को अपने परिवार का पेट भरने के लिए केवल मोबाइल का ही सहारा दिखा। वह भी बेचकर जब परिवार का पेट नहीं भर पाया तो उसने आत्महत्या कर ली। मृतक अपने पीछे चार बच्चे और पत्नी को छोड़कर गया।
गुरुग्राम के सरस्वती कुंज इलाके में स्थित झुग्गियों में पत्नी और 4 बच्चों के साथ रहने वाले मुकेश ने गुरुवार दोपहर यानी 16 अप्रैल को अपने ही घर में फांसी लगाकर जान दे दी। काम नहीं होने के कारण मुकेश के पास पैसे नहीं थे। पत्नी और चार बच्चों को वह क्या खिलाएगा, यह सोच-सोचकर वह काफी समय से परेशान चल रहा था। परिवार की स्थिति ऐसी थी कि मुकेश के अंतिम संस्कार तक के लिए भी उनके पास पैसे नहीं थे। पड़ोसियों की मदद से ही परिवार मुकेश का अंतिम संस्कार कर सका।
इस तरह की स्थिति के बीच हाल ही में मुकेश ने अपना फोन बेच दिया, जो ढाई हजार में बिका था। उस रुपये से वह आटा, दाल, चीनी सहित राशन लेकर आया था। इसके अलावा गर्मी से बचने के लिए पंखा भी लेकर आया और बाकी बचे पैसे उसने अपनी पत्नी को दिए थे। उसके बाद वह झुग्गी में जाकर लेट गया और पत्नी बाहर नीम के पेड़ के नीचे बैठी हुई थी, लेकिन थोड़ी ही देर बाद जब वह झुग्गी के अंदर गई तो देखा मुकेश पंखें से लटका हुआ था।