गोयल और बंडारू दोनों ही श्रम से जुड़े मुद्दों पर वित्त मंत्री अरुण जेटली की अगुआई वाली पांच सदस्यीय मंत्रियों की समिति का हिस्सा हैं। यह समिति ही केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के साथ बारह सूत्री मांगों पर बातचीत कर रही है। इस समिति ने हाल ही में आरएसएस से जुड़े भारतीय मजदूर संघ (बीएमएस) के साथ 16 और 24 अगस्त को दो दौर की वार्ताएं की थीं। वार्ता के दौरान मांगों पर सरकार के कुछ सकारात्मक रुख को देखते हुए बीएमएस ने दो सितंबर की राष्ट्रव्यापी हड़ताल (भारत बंद) से अलग होने का फैसला किया है। सरकार ने बीएमएस को 12 में से नौ मांगों पर काम करने का आश्वासन दिया है।
अन्य ट्रेड यूनियनों ने केवल एक संगठन के साथ इस तरह की बातचीत के लिए भी सरकार की जमकर खिंचाई की है। समिति ने सभी यूनियनों के साथ अंतिम बार पिछले साल 26-27 अगस्त को बैठक की थी। श्रम संगठनों ने इस साल 18 जुलाई को दत्तात्रेय से अनुरोध किया था कि यह समिति इन मांगों को लेकर उनके साथ बैठक करे। यह दीगर है कि अभी तक ऐसी कोई बैठक नहीं बुलाई गई है।
बीते दिन दत्तात्रेय ने पत्र लिखकर मजूदर यूनियनों से हड़ताल संबंधी अपने निर्णय पर पुनर्विचार करने की अपील की थी। यूनियनों ने शनिवार को इस अनुरोध को यह कह कर ठुकरा दिया है कि सरकार उनकी 12 सूत्री मांगों का समाधान करने में विफल रही है। इस पत्र के जवाब में एटक और सीटू ने कहा है कि हमारी मांग पर आपकी ओर से पेश स्थिति रिपोर्ट तकरीबन वही है, जो आप ने साल भर पहले आम हड़ताल की पूर्व संध्या पर 26-27 अगस्त को हमारे साथ बैठक में दी थी।
यूनियनों ने यह कहकर सरकार पर हमला बोला है कि यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि आवश्यक वस्तुओं की कीमतों पर नियंत्रण और वैधानिक रूप से न्यूनतम वेतन तय करने के मुद्दे पर कोई भी ठोस कदम नहीं उठाया गया है। सेंटर ऑफ इंडियन ट्रेड यूनियंस (सीटू) के महासचिव तपन सेन ने कहा कि हड़ताल से पीछे हटने का सवाल ही नहीं उठता है। इसी तरह इंडियन नेशनल ट्रेड यूनियन कांग्रेस (इंटक) के उपाध्यक्ष अशोक सिंह ने कहा कि दो सितंबर की हड़ताल के फैसले पर उनके रुख में रत्ती भर भी बदलाव नहीं आया है।