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तीन बार तलाक बोल कर संबंध तोड़ने को संविधान की कसौटी पर कसा जाए : न्‍यायालय

उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को कहा कि मुस्लिम समुदाय में तीन बार तलाक बोल कर वैवाहिक संबंध तोड़ना एक बहुत महत्वपूर्ण विषय है, जो लोगों के एक बड़े तबके को प्रभावित करता है। इसे संवैधानिक ढांचे की कसौटी पर कसे जाने की जरूरत है। न्यायालय ने पसर्नल लाॅ के मुद्दे की जांच करने पर सहमति जताते हुए यह विचार व्‍यक्‍त किए।
तीन बार तलाक बोल कर संबंध तोड़ने को संविधान की कसौटी पर कसा जाए : न्‍यायालय

शीर्ष न्यायालय ने कहा, हम सीधे ही किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंच रहे, क्योंकि दोनों ओर बहुत मजबूत विचार हैं। इसने कहा कि यह इस बात पर गौर करेगा कि मुद्दे का निबटारा करते वक्त पिछले फैसलों में क्या कोई गलती हुई है और इस बारे में फैसला करेगा कि क्या इसे और बड़ी या पांच सदस्यीय संविधान पीठ के पास भेजा जा सकता है।

प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति टीएस ठाकुर और न्यायमूर्ति एएम खानविलकर की सदस्यता वाली एक पीठ ने कहा, हम सीधे ही किसी निष्कर्ष पर नहीं जा रहे हैं। यह देखना होगा कि क्या संविधान पीठ द्वारा कानून पर कोई विचार किए जाने की जरूरत है। उन्होंने इसमें शामिल पक्षों से तीन बार तलाक बोले जाने :तीन बार तलाक: पर फैसलों की न्यायिक समीक्षा की गुंजाइश पर एक बहस के लिए तैयार होने को कहा।

पीठ ने कहा, पसर्नल लाॅ को संवैधानिक ढांचे की कसौटी पर परखना होगा। इसने इस बात पर जोर दिया, लोगों के एक बड़े तबके को प्रभावित करने वाला यह एक बहुत महत्वपूर्ण मुद्दा है और दोनों ओर से बहुत ही मजबूत विचार हैं। बहरहाल, पीठ ने मामले की अगली सुनवाई छह सितंबर के लिए मुल्तवी करते हुए कहा कि फैसले के लिए कानूनी पहलुओं पर विचार करना होगा। सुनवाई के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने बंबई उच्च न्यायालय के एक पुराने फैसले का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि पसर्नल लाॅ व्यवस्था को मूल अधिकारों से नहीं जोड़ा जा सकता।

पीठ ने कहा, सभी लोग अपने विचार जाहिर कर सकते हैं और बहस में हिस्सा ले सकते हैं। हम जान पाएंगे कि सभी पक्षों का क्या रूख है। आज की सुनवाई में तीन बार तलाक बोले जाने के विषय पर कुल चार याचिकाओं के जरिए सवाल उठाए गए, जिस पर पीठ ने उनमें से सभी को पक्षकार बनने की इजाजत दे दी और इस मुद्दे पर छह हफ्ते में केंद्र का रूख पूछा गया है।

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