राम मंदिर जन्म भूमि, कश्मीर में धारा 370 तथा समान नागरिक संहिता इन तीन मसलों पर भाजपा का कारवां देश में आगे बढ़ा है। सत्ता में आने के बाद इन तीनोंं मसलों पर भाजपा ने कुछ खास नहीं किया है। अभी हाल ही में दोबारा यूनिफार्म सिविल कोड का मसला केंद्र की भाजपा सरकार ने जनता के सामने रख दिया है।
कानून मंत्रालय ने लॉ कमीशन को चिट्ठी लिखकर कोड पर पड़ताल करने को कहा है। मोदी सरकार ने कमीशन से कोड से संबंधित सभी पहलुओं की जांच करने को कहा है। मीडिया और जनसमूह में इसे यूपी में होने वाले विधानसभा चुनाव को जोड़कर देखा जा रहा है। मुस्लिम समुदाय तो कह रहा है कि यूपी में विधानसभा चुनाव नजदीक आते ही भाजपा को यूनिफॉर्म सिविल कोड यानी समान नागरिक संहिता की याद आ गई? क्या वजह है कि मोदी सरकार को सत्ता में आने के बाद ये समझने में दो साल का वक्त लग गया कि अब यूनिफॉर्म सिविल कोड पर आगे बढ़ना है ? समुदाय ने कहा कि यह भाजपा का चुनावी चुग्गा है।
उल्लेखनीय है कि वर्तमान में देश में हर धर्म के लोगों के लिए शादी, तलाक और जमीन जायदाद के बंटवारे से संबंधित अलग-अलग कानून हैं। इन मामलों में धर्म विशेष के अपने पर्सनल लॉ हैं। ऐसा नहीं कि यूनिफॉर्म सिविल कोड का मसला पहली बार उछला है। इस मसले पर हमेशा से बहस होती रहती है। लेकिन अब तक इस पर कोई एक आम राय नहीं बन सकी है। साल 1985 में शाह बानो केस के बाद यूनिफॉर्म सिविल कोड सबसे ज्यादा चर्चा में आया। सुप्रीम कोर्ट ने शाह बानो के पूर्व पति को गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया लेकिन राजीव गांधी की तत्कालीन सरकार ने संसद में विवादास्पद कानून पेश कर दिया, जिसके बाद से यूनिफॉर्म सिविल कोड भारत की राजनीति में एक बड़ा मुद्दा बना। इस मसले पर विचार करते हुए तभी यूनिफार्म सिविल कोड बन जाना चाहिए था। हालांकि अब यह पूरी तरह राजनैतिक मसला बन चुका है। अपने फायदे के लिए राजनीतिक दल चुनाव के समय इसका चुग्गा फेंक देते हैं।