उच्चतम न्यायालय के न्यायमूर्ति ए आर दवे और न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव ने मंगलवार क एक फैसले में यह व्यवस्था दी। न्यायालय ने कहा, प्रत्याशी की शैक्षणिक योग्यता के बारे में जानना प्रत्येक मतदाता का मौलिक अधिकार है। जनप्रतिनिधित्व कानून के प्रावधानों और फार्म 26 में भी यह स्पष्ट है कि यह प्रत्याशी का कर्तव्य है कि वह अपनी शैक्षणिक योग्यता के बारे में सही जानकारी प्रदान करे। शीर्ष अदालत ने यह भी व्यवस्था दी कि यदि चुनाव में दो प्रत्याशी हैं और यह सिद्ध हो गया कि विजयी उम्मीदवार का नामांकन पत्र गलत तरीके से स्वीकार किया गया है तो चुनाव हारने वाले प्रत्याशी के लिये ऐसा साक्ष्य पेश करने की जरूरत नहीं है कि चुनाव वास्तव में प्रभावित हुआ है। न्यायालय ने मणिपुर उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ मैरेम्बम पृथ्वीराज उर्फ पृथ्वीराज सिंह और पुखरेम शरतचंद्र सिंह की एक दूसरे के खिलाफ दायर अपील पर यह व्यवस्था दी।
उच्च न्यायालय ने मणिपुर में 2012 में मोयरंग विधान सभा क्षेत्र से कांग्रेस प्रत्याशी शरतचंद्र सिंह के खिलाफ राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ने वाले पृथ्वीराज का निर्वाचन निरस्त घोषित कर दिया था। इस मामले में आरोप लगाया गया था कि पृथ्वीराज ने अपने नामांकन पत्र में कहा था कि वह एमबीए हैं जो गलत पाया गया था। न्यायाधीशों ने उच्च न्यायालय के निर्णय को बरकरार रखते हुए कहा कि इस तथ्य पर कोई विवाद नहीं है कि अपीलकर्ता ने मैसूर विश्वविद्यालय में एमबीए की पढाई नहीं की थी और यह तर्क स्वीकार नहीं किया जा सकता कि यह मानवीय त्रुटि थी। पीठ ने कहा कि यह चूक एक बार नहीं हुई है। वर्ष 2008 से ही अपीलकर्ता यह वक्तव्य दे रहा था कि उसके पास एमबीए की डिग्री है और फार्म 26 के साथ दाखिल हलफनामे में की गई घोषणा गलत मानी जायेगी।