प्रधानमंत्री ने एक बटन दबाकर इन फाइलों की प्रतियों को सार्वजनिक किया। जिस समय मोदी इन फाइलों को सार्वजनिक कर रहे थे उस समय नेताजी के परिवार के सदस्य, केंद्रीय मंत्री महेश शर्मा और बाबुल सुप्रियो मौजूद थे। बाद में मोदी और उनके मंत्रिमंडल के सहयोगियों ने सार्वजनिक की गई इन फाइलों को देखा और वहां राष्ट्रीय अभिलेखागार में आधे घंटे तक रहे। उन्होंने बोस के परिवार के सदस्यों से भी बात की।
गौरतलब है कि लोकसभा चुनाव से पहले नरेंद्र मोदी ने बंगाल में यह वादा किया था कि उनकी सरकार बनने पर नेताजी से जुड़ी फाइलें सार्वजनिक की जाएंगी। हालांकि सरकार बनने के बाद लंबे समय तक जब फाइलें सार्वजनिक नहीं हुईं तो उनके वादे पर सवाल उठने लगे थे। केंद्र सरकार पर इस मामले को लेकर पिछले वर्ष तब भारी दबाव बन गया था जब पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी सरकार ने अपने कब्जे वाली फाइलें सार्वजनिक कर दी थीं। इसके बाद नेताजी के परिजन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिले थे और तब पीएम ने उन्हें आश्वस्त किया था कि नेताजी की जयंती के दिन केंद्र सरकार अपने कब्जे वाली फाइलों को सार्वजनिक करेगी।
नेताजी के लापता होने से जुड़े विभिन्न पहलुओं की जांच के लिए गठित दो आयोगों ने यह निष्कर्ष निकाला कि बोस की मृत्यु 18 अगस्त, 1945 को ताइपेइ में विमान दुर्घटना में हुई जबकि न्यायमूर्ति एम के मुखर्जी के नेतृत्व में गठित तीसरे आयोग का यह निष्कर्ष नहीं था और उसका मानना था कि बोस इसके बाद भी जीवित थे। इस विवाद को लेकर नेताजी के परिवार में भी अलग अलग विचार सामने आए हैं। इस संबंध में चार दिसंबर को प्रधानमंत्री कार्यालय ने 33 गोपनीय फाइलों को सार्वजनिक किया था और उसे एनएआई को सौंपा था।
इसके बाद गृह और विदेश मंत्रालय ने नेताजी से जुड़ी फाइलों को सार्वजनिक करने की प्रक्रिया शुरू की और इसे बाद में एनएआई को हस्तांतरित कर दिया गया। नेताजी से जुड़ी गोपनीय फाइलों को सार्वजनिक करने के बारे समारोह में मौजूद रहे बोस के परिवार के सदस्य एवं प्रवक्ता चंद्र कुमार बोस ने कहा कि हम प्रधानमंत्री के इस कदम का तहे दिल से स्वागत करते हैं। यह भारत में पारदर्शिता का दिन है। इससे पहले चंद्र कुमार बोस ने पीटीआई भाषा से कहा, हम महसूस करते हैं कि कुछ महत्वपूर्ण फाइलों को कांग्रेस के शासनकाल में नष्ट कर दिया गया ताकि सत्य को छिपाया जा सके। हमारे पास इस बात को समझने के लिए दस्तावेजी सबूत हैं। इसलिए हम महसूस करते हैं कि भारत सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि रूस, जर्मनी, ब्रिटेन और अमेरिका में रखी गई फाइलों को जारी किया जा सके।
उन्होंने कहा कि हमने अभी सभी फाइलों का अध्ययन नहीं किया है। लेकिन अभी तक जो कुछ हमने देखा है, उससे विमान दुर्घटना के बारे में परिस्थितिजन्य साक्ष्य है लेकिन निष्कर्ष निकालने लायक साक्ष्य नहीं है। चंद्र कुमार बोस ने कहा कि यहां तक कि एक पत्र में हमने देखा, जो लाल बहादुर शास्त्री द्वारा सुरेश बोस को लिखा गया था, और उसमें विमान दुर्घटना का निष्कर्ष निकालने लायक साक्ष्य नहीं होने की बात है और केवल कुछ परिस्थितिजन्य साक्ष्य की बात है। उन्होंने कहा कि पहले की तुलना में इस सरकार के रुख में बदलाव आया है। सबसे पहले नेताजी के बारे में तथ्यों को दबाने के रुख को त्यागा गया। और यह नेताजी के बारे में सचाई सामने लाने में सबसे महत्वपूर्ण होगा।
समारोह में मौजूद नेताजी के भतीजे अरधेंदू बोस ने कहा कि बोस परिवार और संपूर्ण देश पिछले सात दशकों से इस पल की प्रतीक्षा कर रह था। हम महसूस करते हैं कि इन फाइलों से इस विषय पर कुछ प्रकाश पडेगा।