मंगलवार को कांग्रेस ने अपना घोषणा जारी कर दिया है। कांग्रेस ने इसमें वादा किया है कि सत्ता में आने के बाद वह राजद्रोह से संबंधित धारा 124-ए को समाप्त कर देगी। कांग्रेस के इस वादे पर कई तरह की प्रतिक्रियाएं आ रही हैं। कई विपक्षी दल इसका स्वागत कर रहे हैं तो वहीं सत्तासीन भारतीय जनता पार्टी इसे देश के लिए ‘खतरनाक’ बता रही है। हाल ही के चर्चित मामलों की बात करें तो काटूर्निस्ट असीम त्रिवेदी, हार्दिक पटेल, कन्हैया कुमार आदि को इस कानून के तहत ही गिरफ्तार किए गए थे।
केन्द्रीय वित्त मंत्री अरूण जेटली का कहना है, “कांग्रेस के घोषणापत्र के मुताबिक, अगर उनकी सरकार आई तो आईपीसी से सेक्शन 124-ए हटा दिया जाएगा। यानी अब देशद्रोह करना अपराध नहीं होगा। इस प्रावधान को जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, मनमोहन सिंह ने भी छूने का प्रयास नहीं किया। अब कांग्रेस कह रही है कि देशद्रोह का प्रावधान हटा दिया जाएगा। उन्होंने कहा, जो पार्टी ऐसी घोषणा करती है, वह एक भी वोट की हकदार नहीं हैं।”
कांग्रेस के घोषणा पत्र में क्या है?
कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में कहा है, 'भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए (जो कि देशद्रोह के अपराध को परिभाषित करती है) जिसका दुरुपयोग हुआ और बाद में नए कानून बन जाने से उसकी महत्ता भी समाप्त हो गई है, उसे खत्म किया जाएगा।
बता दें कि 124-ए को खत्म करने की बात कई बार उठती रही है। आइए, इसके प्रावधानों के बारे में जानते हैं-
क्या है धारा 124ए?
आईपीसी की धारा 124ए कहती है कि यदि कोई भी व्यक्ति भारत की सरकार के विरोध में सार्वजनिक रूप से ऐसी किसी गतिविधि को अंजाम देता है जिससे देश के सामने सुरक्षा का संकट पैदा हो सकता है तो उसे उम्रकैद तक की सजा दी जा सकती है। इन गतिविधियों का समर्थन करने या प्रचार-प्रसार करने पर भी किसी को देशद्रोह का आरोपी मान लिया जाएगा।
साथ ही यदि कोई व्यक्ति सरकार-विरोधी सामग्री लिखता या बोलता है, ऐसी सामग्री का समर्थन करता है, राष्ट्रीय चिन्हों का अपमान करने के साथ संविधान को नीचा दिखाने की कोशिश करता है तो उसके खिलाफ आईपीसी की धारा 124 ए में राजद्रोह का मामला दर्ज हो सकता है। इन गतिविधियों में लेख लिखना, पोस्टर बनाना, कार्टून बनाना जैसे काम भी शामिल होते हैं।
इस कानून के अंतर्गत दोषी पाए जाने पर दोषी को 3 साल से लेकर अधिकमत उम्रकैद की सजा का प्रावधान है।
लेकिन इससे भी बड़ी बात यह है कि इन गतिविधियों से पैदा होने वाले खतरे को कैसे मापा जाएगा, इसको लेकर धारा 124ए स्पष्ट तौर पर कुछ भी नहीं बताती।
क्या है इस कानून का इतिहास
135 साल पहले अंग्रेजी हुकूमत ने इसे आईपीसी में शामिल किया था। सन 1837 में लॉर्ड टीबी मैकॉले की अध्यक्षता वाले पहले विधि आयोग ने भारतीय दंड संहिता तैयार की थी। सन 1870 में ब्रिटिश औपनिवेशिक प्रशासन ने सेक्शन 124-ए को आईपीसी के छठे अध्याय में जोड़ा। 19वीं और 20वीं सदी के प्रारम्भ में इसका इस्तेमाल ज्यादातर प्रमुख भारतीय राष्ट्रवादियों और स्वतंत्रता सेनानियों के लेखन और भाषणों के खिलाफ किया गया था।
हालांकि 1962 में आया सुप्रीम कोर्ट का एक फैसला धारा 124ए के दायरे को लेकर कई बातें साफ कर चुका है, लेकिन तब भी इस धारा को लेकर अंग्रेजों वाली जमाने की रीत का पालन ही किया जा रहा है। माना जाता है कि तब आईपीसी में देशद्रोह की सजा को शामिल करने का मकसद ही सरकार के खिलाफ बोलने वालों को सबक सिखाना था। 1870 में वजूद में आई यह धारा सबसे पहले तब चर्चा का विषय बनी जब 1908 में बाल गंगाधर तिलक को अपने एक लेख के लिए इसके तहत छह साल की सजा सुनाई गई। तिलक ने अपने समाचार पत्र केसरी में एक लेख लिखा था जिसका शीर्षक था- देश का दुर्भाग्य। 1922 में अंग्रेजी सरकार ने महात्मा गांधी को भी धारा 124 ए के तहत देशद्रोह का आरोपी बनाया था। उनका अपराध यह था कि उन्होंने अंग्रेजी राज के विरोध में एक अखबार में तीन लेख लिखे थे। तब गांधी जी ने भी इस धारा की आलोचना करते हुए इसे भारतीयों का दमन करने के लिए बनाई गई धारा कहा था।