रेडियो पर प्रसारित प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘मन की बात’ कार्यक्रम पर आधारित किताब को लेकर विवाद खड़ा हो गया है। राजेश जैन नाम के जिस व्यक्ति को इस किताब का लेखक या संकलनकर्ता बताया गया था, खुद उन्होंने इससे इंकार किया है।
पिछले साल 25 मई को पत्र सूचना कार्यालय (पीआईबी) की ओर से जारी विज्ञप्ति में राष्ट्रपति भवन में दो किताबों के विमोचन की जानकारी दी गई थी। इसमें एक किताब मन की बात: अ सोशल रिवोल्यूशन ऑन रेडियो थी। सरकारी विज्ञप्ति में इस किताब को राजेश जैन द्वारा पीएम के 'मन की बात' कार्यक्रम में दिए भाषणों का संकलन बताया गया था। गौरतलब है कि राजेश जैन एक आईटी उद्यमी हैं, जिनके बारे में माना जाता है कि उन्होंने 2014 से पहले नरेंद्र मोदी के प्रचार अभियान में अहम भूमिका निभाई थी।
राजेश जैन का किताब से कोई लेना-देना नहीं: अरुण शौरी
हालिया विवाद ‘मन की बात’ पुस्तक के लेखक के बारे में पूर्व केंद्रीय मंत्री अरूण शौरी के दावे से खड़ा हुआ है। न्यूज चैनल एनडीटीवी के एक कार्यक्रम में शौरी ने कहा कि राजेश जैन का इस किताब (मन की बात) से कतई कोई लेना-देना नहीं था। राजेश जैन उनके मित्र हैं। जैन ने उन्हें बताया कि पुस्तक विमोचन कार्यक्रम में उन्हें बुलाया और एक भाषण पढ़ने के लिए थमा दिया था।
जैन ने की शौरी के दावे की पुष्टि
एनडीटीवी के अनुसार, राजेश जैन ने भी ‘मन की बात’ पुस्तक को लेकर शौरी के दावे की पुष्टि की है। जैन ने एनडीटीवी से कहा कि वे इस किताब के लेखक नहीं हैं और लेखक के तौर पर अपना नाम देखकर हैरान थे। जैन के मुताबिक, "वे 'मन की बात' कार्यक्रम के आयोजन से जुड़े ब्लूक्राफ्ट फाउंडेशन के साथ काम करते थे, लेकिन इस किताब से उनका कोई लेना-देना नहीं था। उन्हें प्रधानमंत्री कार्यालय की ओर से पुस्तक के विमोचन में बुलाया गया था। वहां उन्होंने कार्ड पर लेखक के रूप में अपना नाम लिखा देखा।" जैन का कहना है कि उस कार्यक्रम में ही उन्होंने स्पष्ट कर दिया था कि वे किताब के लेखक नहीं हैं। उन्हें नहीं मालूम कि यह किताब किसने लिखी और लेखक के तौर पर उन्हें क्यों पेश किया गया।
ताज्जुब की बात है कि राजेश जैन के खंडन के बावजूद पीआईबी की तीन अलग-अलग विज्ञप्तियों में 'मन की बात' पुस्तक के बारे में तीन अलग-अलग बातें लिखी हैं। 25 मई को जारी पहली विज्ञप्ति में 'मन की बात' पुस्तक को राजेश जैन द्वारा बताया गया, जबकि अगले दिन जारी दो विज्ञप्तियों में राजेश जैन को लेखक और संकलनकर्ता बताया गया है। जबकि किताब में लेखक के तौर पर किसी का उल्लेख नहीं है।